कोरोना काल में बच्चे भी उतने ही तनाव में हैं जितने हम
नई दिल्ली: कोरोना वायरस संकट काल में माता-पिता शायद यह समझते हैं कि बच्चों ने इस बदली परिस्थिति से सामन्जस्य बिठा लिया है पर आप ग़ौर करें कि ये बच्चे भी उतने ही तनाव में हैं जितना आप और हम।उनके मन में भी नकारात्मक ख़बरों का उतना ही असर पड़ रहा है, जितना बड़ों के।तो माता-पिता होने के नाते उनके मन से डर और नकारात्मकता को हटाने के लिए क्या कर सकते हैं जानते हैं यहां।
अमूमन जब हमारे पास जरूरत से ज्यादा जानकारियां हो जाती हैं तब हम नकारात्मक रूप से प्रभावित होने लगते हैं।हमारे बच्चों के साथ भी ये ही हो रहा है।इंटरनेट और टीवी की मदद से वे जानकारी ले रहे हैं जिसका उनके अवचेतन मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।इसकी वजह से रुटीन में बदलाव आना जैसे अधिक दर तक सोना, नींद न आना, व्यवहार में बदलाव, खाने में मन न लगना, बात न करना आदि लक्षण दिखने लगते हैं।अधिक उग्र हो जाते हैं या बिल्कुल ही शांत हो जाते हैं।हर वक्त भारीपन और थकान का अनुभव होता है।अपनी पसंद की गतिविधियों में मन नहीं लगता।अगर आपके बच्चे में भी कुछ ऐसा बदलाव आया है तो समझिए कि आपको बात करने की जरूरत है।ऐसे हालात में उन्हें इग्नोर बिलकुल भी न करें.कई बार ऐसा होता है कि हम बच्चों से कई बार पूछते हैं कि कोई प्रॉब्लम है क्या तो कई बार वो बोलते नहीं हैं।उनकी बात को सुनकर आप रिलैक्स न हो जाएं।उन्हें मॉनिटर करते रहें।
आपका रिश्ता भले ही कितना भी ओपन हो लेकिन बच्चों के लिए आप उनके पेरेंट ही हैं।ज्यादातर बच्चे माता-पिता को सारी बातें नहीं बताते।ऐसे में आप बच्चे में विश्वास पैदा करें।उन मुद्दों को न छेड़ें जिन पर आपकी राय एक जैसी न हो।आप उन्हें यह कह सकते हैं कि किसी भी हालात में आप उनके साथ हैं।बच्चों के साथ बेहतर टाइम बिताएं।बात करते-करते उनसे उनकी समस्या के बारे में पूछें।कहने का मतलब यह है कि बच्चों को उनकी हाल पर नहीं छोड़ना है।वे चाहे कितना भी मना क्यों न करें, उनकी समस्याओं को जानने की कोशिश करें और समाधान भी सुझाएं।उनकी समस्याओं को हल्के में न लें और न ही अपनी बड़ी प्रॉब्लम्स के साथ कम्पेयर करें।
यह याद रखें कि हर समस्या यूनीक होती है जिसका समाधान भी यूनीक होना चाहिए। बता दें कि दुनिया एक अभूतपूर्व महामारी के दौर से गुजर रही है।पिछले करीब दो साल से हम दिनभर नकारात्मकऔर विचलित करने वाली ख़बरें सुन रहे हैं।कई परिवार हैं जिन्होंने पिछले कुछ महीनों में बहुत कुछ खोया है, कई ऐसे भी हैं जो आर्थिक तनाव झेल रहे हैं।कई परिवार हैं जिनमें अवसाद ने घर बना लिया है। ऐसे में घर के अन्य सदस्यों के तरह ही बच्चे भी हैं जो इस माहौल में जी रहे हैं।