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इंडिया गठबंधन: अखिलेश जयंत का नरम-गरम रवैया

समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने ‘इंडिया’ गठबंधन की परतें उधेड़ के रख दी हैं। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिए कोई भी सीट छोड़ने से इनकार कर दिया था। इससे अखिलेश यादव की त्योरियां चढ़ गईं। एक समय तो ऐसा लग रहा था कि जिस तरह से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच मनमुटाव बढ़ता जा रहा है, उससे इंडिया गठबंधन को खतरा हो सकता है।

संजय सक्सेना, लखनऊ

राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर बीजेपी को कड़ी चुनौती देने के लिए समाजवादी पार्टी,कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल ने जो ‘इंडिया’ गठबंधन तैयार किया है, उसकी तस्वीर अभी तक यूपी में साफ नहीं हो पा रही है। कभी इन दलों के नेता एक-दूसरे की टांग खिंचाई करने लगते हैं तो कभी नरमी अख्तियार कर लेते हैं। स्थिति यह है कि लोकसभा चुनाव सिर पर है और इंडिया गठबंधन अभी तक चुनाव कैसे लड़ा जायेगा, सीटों का बंटवारा किस आधार पर होगा, कौन होगा इंडिया गठबंधन में पीएम चेहरा यह तक नहीं तय कर पाया है। स्थिति यह है कि एक दिन समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव को ‘भावी पीएम’ बताते हुए बैनर लगाते हैं तो दूसरे ही दिन कांग्रेसी राहुल गांधी को ‘भावी पीएम’ और यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय को ‘भावी सीएम’ वाले बैनर पोस्टर टांग देते हैं, जबकि चाहे राहुल गांधी हों या फिर अखिलेश यादव, फिलहाल दोनों की ही प्रधानमंत्री की कुर्सी की दावेदारी दूर की कौड़ी है लेकिन इस तरह की बयानबाजी से दोनों दलों के नेताओं के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं परंतु बीजेपी का खौफ ऐसा है कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों ही एक तरफ लड़ते दिख रहे हैं तो दूसरी ओर गठबंधन धर्म निभाने की कसमें भी खा रहे हैं।

बात हाल ही की है जब समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने ‘इंडिया’ गठबंधन की परतें उधेड़ के रख दी हैं, ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिए कोई भी सीट छोड़ने से इनकार कर दिया था। इससे अखिलेश यादव की त्योरियां चढ़ गईं। एक समय तो ऐसा लग रहा था कि जिस तरह से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच मनमुटाव बढ़ता जा रहा है, उससे इंडिया गठबंधन को खतरा हो सकता है। मनमुटाव की शुरुआत मध्य प्रदेश में सीटों के बंटवारे को लेकर को हुई थी, तो इसमें घी डालने का काम उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने किया, जिसके बाद अखिलेश यादव का कांग्रेस और उसके नेताओं पर हमलावर होना किसी को अस्वभाविक नहीं लगा। ऐसा नहीं होता यदि कांग्रेस आलाकमान गठबंधन की महत्ता को समझते हुए अपने नेताओं को इस बात के लिए रोकता कि वह सपा के खिलाफ गलत बयानबाजी न करें। पहले उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय समाजवादी पार्टी के खिलाफ उलटी-सीधी बयानबाजी कर रहे थे, उसके बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और उसके सीएम प्रत्याशी कलमनाथ का मीडिया से यह कहना कि छोड़िये ‘अखिलेश-वखिलेश’ काफी शर्मनाक था। अखिलेश यादव एक बड़ी पार्टी के अध्यक्ष हैं और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। अखिलेश के बारे में अशोभनीय भाषा बोला जाना पूरे उत्तर प्रदेश का अपमान है।

कांग्रेस और कमलनाथ जैसे नेताओं को यह बात समझनी चाहिए थी, लेकिन इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया, कांग्रेस आलाकमान का ध्यान इस कलह पर तब गया जब अखिलेश यादव ने गुस्से का इजहार किया। इसके बाद कांग्रेस के एक बड़े नेता ने अखिलेश यादव से बातचीत करके पूरे मामले को रफादफा किया, जिसके बाद अखिलेश के भी गठबंधन को लेकर सुर हल्के पड़ गये। कांग्रेस को यह बात हमेशा ध्यान में रखनी होगी कि यदि वह मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी की हैसियत पर सवाल उठा सकते हैं तो कल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की औकात भी लोग पूछेंगे। कांग्रेस का यहां एक मात्र सांसद और दो विधायक हैं। यूपी में कांग्रेस का गिरता वोट प्रतिशत भी किसी से छिपा नहीं है। कांग्रेस को इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि वह यूपी में सपा के बिना ‘शून्य’ है। कांग्रेस की नेत्री प्रियंका वाड्रा के यूपी की फूलपुर या अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा चल रही है, यहां कांग्रेस नेत्री के लिए तब तक जीत की राह आसान नहीं हो सकती है जब तक कि उसे सपा का साथ नहीं मिलेगा।

खैर, मध्य प्रदेश में एक विधायक वाली समाजवादी पार्टी के बारे में बात की जाये तो सपा मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन का हिस्सा होने के नाते करीब एक दर्जन सीटों पर गंभीरता के साथ अपनी दावेदारी पेश कर रही थी। वह उन सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी, जहां पिछले विधानसभा चुनाव में उसके प्रत्याशी को कांग्रेस उम्मीदवार से अधिक वोट मिले थे लेकिन कांग्रेस ने अपने गठबंधन सहयोगी को ठेंगा दिखा दिया। गठबंधन के तहत एक भी सीट नहीं मिलने पर अखिलेश यादव का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया, जो स्वभाविक भी था। समाजवादी पार्टी के साथ ही नहीं, कांग्रेस गठबंधन के सभी सहयोगी दलों के साथ ऐसा ही व्यवहार कर रही है। वह गठबंधन सहयोगियों को कुछ देने की बजाये, उनकी पीठ पर सवार होकर अपना चुनावी रिकार्ड ठीक करने का सपना पाले हुए है। अब कांग्रेस कह रही है इंडिया गठबंधन तो लोकसभा चुनाव के लिए बना है, राज्यों के विधानसभा चुनाव से इसका कोई लेना-देना नहीं है। इस पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सही कहा कि अगर उन्हें पता होता कि विपक्ष का गठबंधन विधानसभा स्तर के चुनाव के लिए नहीं है तो उनकी पार्टी मध्य प्रदेश में गठबंधन के लिए बातचीत ही नहीं करती। उन्होंने कहा कि अगर सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए तालमेल की बात होगी तो उस पर ही विचार किया जाएगा।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गत दिनों शाहजहांपुर में पार्टी के कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए लिए जाते वक्त रास्ते में सीतापुर में यह बातें कही थीं, लेकिन सवाल यह है कि अखिलेश इतने अपरिपक्व नेता कैसे हो सकते हैं कि उन्हें यही नहीं पता था कि इंडिया गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए बना है। (जैसा कि कांग्रेसी कह रहे हैं)। विधानसभा चुनाव सभी दल अपने चुनाव चिन्ह पर किस्मत अजमाएंगे। अखिलेश का कहना है कि अगर यह मुझे पहले दिन पता होता कि विधानसभा स्तर पर ‘इंडिया’ का कोई गठबंधन नहीं है तो हमारी पार्टी के लोग उस बैठक में नहीं जाते, न हम सूची देते और न ही कांग्रेस के लोगों का फोन उठाते। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री यादव ने कहा कि अगर उन्होंने (कांग्रेस वालों ने) यही बात कही है कि गठबंधन नहीं है तो हम स्वीकार करते हैं। जैसा व्यवहार समाजवादी पार्टी के साथ होगा, वैसा ही व्यवहार उन्हें यहां (उत्तर प्रदेश) पर देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश स्तर पर कोई गठबंधन नहीं है तो नहीं है। हमने इसे स्वीकार कर लिया, इसीलिए हमने पार्टी के टिकट घोषित कर दिए। इसमें हमने क्या गलत किया है? सपा अध्यक्ष यहीं नहीं रुके, उन्होंनें किसी का नाम लिये बिना यहां तक कहा कि मैं कांग्रेस के बड़े नेताओं से अपील करूंगा कि अपने छोटे नेताओं से इस तरह के बयान न दिलवाएं।

बहरहाल, समाजवादी पार्टी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब तक कुल 31 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर चुकी है। उसके यह प्रत्याशी यदि ठीकठाक प्रदर्शन करते हैं तो कांग्रेस को उन सीटों पर बड़ा नुकसान हो सकता है जो वह पिछली बार कम अंतर से जीती थी। वहीं उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से किसी एक पर भी कांग्रेस का खाता खुलना मुश्किल हो जायेगा, ऐसे में कांग्रेस स्वत: दिल्ली की सत्ता से दूर चली जायेगी क्योंकि उत्तर प्रदेश में आज की तारीख में मोदी और बीजेपी का कम या ज्यादा मुकाबला करने की हैसियत समाजवादी पार्टी के अलावा किसी की नहीं है। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ही इंडिया गठबंधन की प्रमुख हिस्सेदार कांग्रेस को आंख नहीं दिखा रहे हैं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी ठीकठाक पकड़ रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख जयंत चौधरी भी कांग्रेस को लेकर नरमी-गरमी वाला व्यवहार कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में सीटों की दावेदारी को लेकर अखिलेश कांग्रेस से नाराज थे तो राजस्थान विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के एक और सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी ने अपनी दावेदारी ठोंक कर कांग्रेस को और भी दुविधा में डाल दिया है। बता दें कि इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनी समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) का उत्तर प्रदेश में पहले से ही चुनावी गठबंधन है। बीते वर्ष 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव में सपा-रालोद मिलकर चुनाव लड़े थे। इन दोनों दलों में से सपा ने मध्य प्रदेश की 9 सीटों के अलावा राजस्थान में आरएलडी ने 6 सीटों की मांग कर दी है। आरएलडी ने राजस्थान में टिकट की दावेदारी करके वहां (राजस्थान) खुद को मजबूत करने की दलील दी है। गौरतलब हो कि साल 2018 के राजस्थान चुनावों में आरएलडी ने दो सीटों-भरतपुर और मालपुरा में चुनाव लड़ा था। इसमें से भरतपुर में उसे जीत हासिल हुई थी। यहां आरएलडी के सुभाष गर्ग ने भाजपा के विजय बंसल को 15,000 वोटों से हराया था।

गर्ग को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी कैबिनेट में मंत्री बनाया था। दूसरी ओर मालपुरा में आरएलडी के रणवीर पहलवान बीजेपी के कन्हैय्या लाल से करीब 30,000 वोटों से हार गए थे। आरएलडी को दोनों सीटों पर पड़े कुल वोटों में से 33 फीसदी वोट मिले थे। इस बार, आरएलडी राजस्थान में कांग्रेस के सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ रही है। पार्टी ने झुंझुनू, चूरू, हनुमानगढ़, भरतपुर, बीकानेर और सीकर जैसे जाट बहुल जिलों में सीटों की मांग की है। सर्वेक्षण के अनुसार राजस्थान के जिन जिलों से रालोद अपना प्रत्याशी उतारना चाहती है, वहां जाट मतदाताओं का 10 फीसदी से अधिक हिस्सा है और राजस्थान की 200 सीटों में से लगभग 40 पर जाट वोटरों का प्रभाव है। राजस्थान विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी पहले ही जयपुर और भरतपुर समेत पांच विधानसभा सीटों पर प्रचार कर चुके हैं, वहीं, आने वाले दिनों में कुछ और सीटों पर उनकी रैलियों की योजना है। सूत्र बताते हैं कि आरएलडी राजस्थान में जाट के अलावा दलित मतदाताओं को अपने पक्ष में जुटाने के लिए भीम आर्मी प्रमुख चन्द्रशेखर आजाद से हाथ मिला सकते हैं। बहरहाल, यूपी में इंडिया गठबंधन को लेकर अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने जो तेवर अपनाए हैं, उससे तो यही लगता है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान समेत पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को इंडिया गठबंधन की परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है। इन चुनावी राज्यों में यदि कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा तो इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों पर दबाव आ जायेगा, लेकिन इसका उलटा हुआ तो कांग्रेस को झुकना पड़ेगा मगर ऐसा हो पाये।

इससे पूर्व ही गठबंधन के दल आपसदारी में सेंध लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। मध्य प्रदेश में सपा को सीटें न देने पर जहां अखिलेश ने कांग्रेस को चेतावनी दी है, वहीं अब जयंत चौधरी ने भी राजस्थान में 6 सीटें मांगकर इंडिया गठबंधन को टेंशन दे दी है। अखिलेश ने बीते दिनों साफतौर पर कह दिया कि इंडिया के तहत अगर राज्य स्तर पर गठबंधन नहीं हुआ तो बाद में भी नहीं होगा। उन्होंने मध्य प्रदेश के चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस से बात न बनने पर यह चेतावनी दी है। पूरे सियासी घटनाक्रम की तह में जाया जाये तो पता चलता है कि सपा ने गत दिनों मध्य प्रदेश की 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित किए थे। इसमें पांच सीटें ऐसी हैं, जिन पर कांग्रेस ने भी अपने उम्मीदवार घोषित कर रखे हैं। सपा ने पहले ही अपने लिए संभावित सीटों की सूची कांग्रेस को दी थी, जिसे तवज्जो नहीं मिली। इसके बाद जब अखिलेश यादव से कांग्रेस से गठबंधन को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह कांग्रेस को बताना होगा कि ‘इंडिया’ गठबंधन भारत के स्तर पर होगा या नहीं। अगर देश के स्तर पर है तो देश के स्तर पर है, अगर प्रदेश स्तर पर नहीं है तो भविष्य में भी प्रदेश स्तर पर नहीं होगा।

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