अन्तर्राष्ट्रीय

‘जलवायु परिवर्तन’ पर अमेरिका के खिलाफ साथ आयेंगे भारत-चीन!

देहरादून (गौरव ममगाईं)। जलवायु परिवर्तन दुनिया में चिंता का सबसे बड़ा विषय बना हुआ है, लेकिन विडंबना है कि इस वैश्विक समस्या का समाधान खोजने की दिशा में ईमानदारी से प्रयास नहीं किये जा रहे हैं। तभी तो पश्चिमी देश व विकासशील देश एकमत न होकर हर बार आमने-सामने दिखाई देते हैं। खास बात है कि इस मुद्दे पर भारत-चीन भी पश्चिमी देशों के खिलाफ एकसुर में बोलते दिखाई देते हैं। एक बार फिर अमेरिका ने भारत-चीन के प्रयासों को नाकाफी बताते हुए आलोचना की है। अमेरिका के इस रूख के बाद भारत-चीन फिर से पश्चिमी देशों की विकासशील देशों को निशाना बनाने की मानसिकता का खुलकर विरोध कर सकते हैं।

  दरअसल, इन दिनों यूएई में जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा वैश्विक शिखर सम्मेलन ‘कॉप-28’ चल रहा है। इसमें अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि भारत में जलवायु परिवर्तन से महिलाओं के स्वास्थ्य व आर्थिक, सामाजिक जीवन पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने जलवायु नीतियों को लैंगिक रूप से उत्तरदायी बनाने की वकालत की। वहीं, चीन का नाम लिये बिना कहा कि कई देश महिलाओं को प्रोत्साहन देने के बजाय उनकी भूमिका को सीमित करना चाहते हैं।

India PM Narendra Modi in Cop-28 at UAE

इसके अलावा भी उन्होंने जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए विकासशील देशों से गंभीर प्रयास करने की अपील की। अमेरिका के इस रूख के बाद भारत व चीन एक बार फिर इस मुद्दे पर अमेरिका व पश्चिमी देशों के खिलाफ मुखर हो सकते हैं। ऐसा हुआ तो यह अमेरिका के लिए चिंता का कारण भी बन सकता है, क्योंकि अभी तक अमेरिका, चीन को रोकने के लिए भारत के साथ खड़ा नजर आता रहा है। अमेरिका की भी मंशा रही है कि भारत व चीन में संबंध पटरी पर न आयें, ताकि वह अपने हितों की पूर्ति कर सके।

 विकासशील देशों ने पश्चिमी देशों के खिलाफ उठायी आवाज

बारबाडोस की प्रधानमंत्री मिया मोटली ने कहा है कि पश्चिमी देश गरीब एवं विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए तेजी से कदम उठाने का दबाव बना रहे हैं, यह गरीब देशों के साथ अन्याय जैसा है। कहा कि वित्तीय सेवाओं, तेल-गैस, शिपिंग उद्योगों पर वैश्विक टैक्स से गरीब देशों को बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे में अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों को गरीब एवं विकासशील देशों की आर्थिक मदद करनी चाहिए। बता दें कि भारत भी इस मुद्दे पर विकासशील देशों का खुलकर साथ देता रहा है। भारत ने जलवायु परिवर्तन से हो रहे नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए विकासशील देशों को आर्थिक मुआवजा देने की मांग भी उठाई है।

usa president biden, britain pm rishi sunak and france president macron
usa president biden, britain pm rishi sunak and france president macron

कार्बन उत्सर्जन में पश्चिमी देश ज्यादा जिम्मेदार

भले ही आज अमेरिका व अन्य पश्चिमी देश ग्रीन एनर्जी को अपनाने में सबसे आगे हैं और कोयले पर निर्भर विकासशील देशों को पर्यावरण क्षति के लिए कोसते रहते हैं। लेकिन, आपको जानकर हैरानी होगी कि 19वीं शताब्दी से लेकर अब तक हुए कुल कार्बन उत्सर्जन में अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों का योगदान ही सबसे ज्यादा रहा है। पश्चिमी देशों में ही औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई थी, तब वहां उद्योग-कारखानों का संचालन कोयले पर ही निर्भर हुआ करता था। तब ये देश कई दशकों तक अधिक मात्रा में कार्बन उत्सर्जन करते रहे थे। अमेरिका व पश्चिमी देशों ने पारंपरिक ऊर्जा का जमकर दोहन करने के बाद अब ग्रीन एनर्जी को अपनाया है।

  जाहिर है कि जलवायु परिवर्तन को सभी देश गंभीर समस्या तो मान रहे हैं, लेकिन इसके समाधान की दिशा में ईमानदारी से प्रयास नहीं कर रहे हैं। अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों द्वारा गरीब देशों को आर्थिक सहायता देने के बजाय कोसना, उन्हें हतोत्साहित करने जैसा है। अच्छा होता कि विकसित देश इस मुहिम में गरीब देशों को आर्थिक मदद देकर उनके प्रयासों को प्रोत्साहन देते।

वहीं, भारत हमेशा से इस मुद्दे पर विकासशील देशों के पक्ष में आवाज उठाकर पश्चिमी देशों के रूख की आलोचना करता रहा है। साथ ही भारत तेजी से ग्रीन एनर्जी को अपनाने की दिशा में भी आगे बढ़कर अपनी समृध्दि सुनिश्चित कर रहा है और पर्यावरण के प्रति कर्तव्य को भी बखूबी निभा रहा है। यही कारण है कि अमेरिका व अन्य विकसित देशों को न चाहते हुए भी कई मौकों पर भारत की सराहना करने पड़ रही है।

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