डिफेंस में दुनिया की बड़ी ताकत बनने की ओर भारत, ऊंची उड़ान के लिए प्राइवेट सेक्टर पर नजर
नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आज से 60 साल पहले यानी 8 नवंबर 162 को अरुणाचल प्रदेश औऱ लद्दाख में चीनी आक्रमण पर जारी बहस का जवाब देते हुए कहा था कि मुझे उम्मीद है कि ये संकट हमे हमेशा ये याद दिलाएगा कि एक आधुनिक सेना आधुनिक हथियारों से लड़ती है जो उसे उस देश में खुद बनाने पड़ते हैं. हालांकि ये बात अलग है कि इस भाषण के दशकों बाद बी भारत दुनिया में हथियारों के सबसे बड़े आयातकों में से एक है.
फैक्ट ये भी है कि पिछली सरकारों ने घरेलू हार्डवेयर उत्पादन को बढ़ाने में कितना भी जोर दिया हो, लेकिन 2014 तक इस लक्ष्य को काफी कम हद तक हासिल किया गया था. तब तक भारत ने अन्य देशों को 900 करोड़ रुपए के हथियार और गोला-बारूद का निर्यात किया था. ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिशों का ही असर है कि अब भारत स्वदेशीकरण की ओर बढ़ गया है और 14 हजार करोड़ के निर्यात तक पहुंच गया है.
इसके अलावा लगभग 300 चीजों को बिना आयात सूची में रखा गया. एयरो इंडिया 2023 के उद्घाटन के मौके पर, प्रधानमंत्री मोदी ने 2025 तक निर्यात के मामले में 25000 करोड़ से अधिक के आंकड़े को छूने की बात की. इस साल यह संख्या 19000 करोड़ तक पहुंच गई. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इसमें इतना समय क्यों लगा. इसका जवाब है कि ना तो डिफेंस सेक्टर, ना डिफेंस पब्लिक सेक्टर और ना ही प्राइवेट सेक्टर ने अपनी पूरी क्षमता के साथ काम किया था. इतना ही नहीं जब रक्षा क्षेत्र को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोलने पर विचार किया गया तो को कुछ राजनीतिक दलों ने इसे परिवार की विरासत को बेचने के रूप में देखा.
यहां तक की मोदी सरकार के अंदर भी कुछ इनहाउस एजेंसियों ने हाईलेवल अधिकारियों को पत्र लिखकर ये बताने की कोशिश की थी कि वह सिस्टम को डेवलप करने की कगार पर हैं, ऐसे में प्राइवेट सेकटर्स की तरफ देखने की कोई जरूरत नहीं है. यही कारण है कि तुर्की और ईरान जैसे देश सशस्त्र ड्रोन का निर्यात कर रहे हैं, जबकि भारत अभी भी इस मानव रहित स्टैंड-ऑफ हथियार तकनीक को पकड़ने की कोशिश कर रहा है.
इसके अलावा स्वदेशी हार्डवेयर उत्पादन, पेटेंट के रजिस्ट्रेशन में लंबी देरी और सरकार की थकाऊ खरीद प्रक्रियाओं से भी प्रभावित हुआ है. यही वजह है कि प्राइवेट सेक्टर रिसर्च और डेवलपमेंट पर इंवेस्ट नहीं करता. सीधे शब्दों में कहें तो अगर सरकार ही अपने निजी क्षेत्र से खरीदारी नहीं करेगी तो दुनिया क्यों करे?
पीएम मोदी की आत्मनिर्भर भारत के प्रति प्रतिबद्धता में कोई संदेह नहीं है, लेकिन ये पहल केवल भारतीय प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी से ही सफल हो सकती है. वर्तमान में भारत 75 देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात कर रहा है. पिछले 6 सालों में देश का डिफेंस इंपोर्ट 6 गुना बढ़ा है. भारत आने वाले समय में दुनिया के सबड़े डिफेंस मैन्यूफैक्चरर देशों में शामिल होने के लिए लगातार काम कर रहा है. इसमें प्राइवेट सेक्टर्स की काफी अहम भूमिका होगी. पीएम मोदी ने भी प्राइवेट सेक्टर्स से डिफेंस में बढ़ चढ़ कर निवेश करने की अपील की है.