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भारत कर रहा ब्रिटेन की तर्ज पर फ्लूरोक्विनोलोन एंटीबायोटिक के उपयोग पर नियंत्रण लगाने का विचार

नई दिल्ली (विवेक ओझा): भारत ब्रिटेन की तर्ज पर फ्लूरोक्विनोलोन एंटीबायोटिक ( Fluoroquinolone antibiotic ) के उपयोग पर नियंत्रण लगाने का विचार कर रहा है। यूके मेडिसिंस एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी ( MHRA) ने इस एंटीबायोटिक्स के प्रयोग पर नियंत्रण लगाया था। अब भारतीय स्वास्थ्य विनियामक इस बात पर विचार कर रहे हैं कि इस एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल पर कहां तक छूट दी जाय या कितना नियंत्रण लगाया जाय।

एमएचआरए ब्रिटेन में दवाइयों और मेडिकल डिवाइसेज को रेगुलेट करने के लिए जिम्मेदार है और उसने क्रिटिकल अलर्ट जारी करते हुए कहा है कि जब सभी अन्य रिकमेंड की गई एंटीबायोटिक्स काम न करें, तभी अंत में फ्लूरोक्विनोलोन एंटीबायोटिक का प्रयोग किया जाना चाहिए।

भारत में भी एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर डायरेक्टरेट जनरल ऑफ हेल्थ सर्विस (DGHS) ने भारत के फार्मासिस्ट एसोसिएशन को पत्र लिखा है। साथ ही दवा को लेकर कुछ जरूरी आदेश जारी किए गए हैं। इस लेटर के जरिए केमिस्ट से यह अपील की गई है कि आम नागरिक को एंटीबायोटिक दवा देने से पहले डॉक्टर्स के प्रिस्क्रिप्शन जरूर देंखे। और प्रिस्क्रिप्शन के आधार पर ही दवा दें। इस आदेशों को जल्द से जल्द प्रभाव में लाया जाए। इस लिस्ट में एंटी माइक्रोबायल्स में एंटी सेप्टिक, एंटी बायोटिक,एंटी वायरल, एंटी फंगल और एंटी पेरासाइटिक दवाएं शामिल हैं।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि एंटीमाइक्रोबॉयल रेजिस्टेंस (AMR) पूरी दुनिया में स्वास्थ्य के हिसाब से खतरनाक है। एक डेटा के मुताबिक साल 2019 में लगभग 13 लाख लोगों की मौत बैक्टीरियल AMR के कारण हुआ है। इसके अलावा 50 लाख मौतें ड्रग रेजिस्टेंट इंफेक्शन के कारण हुई है। 20वीं सदी की शुरुआत में किसी भी बीमारी से ठीक होने में एक महीने का वक्त लगता था. लेकिन अब एंटीमाइक्रोबियल ड्रग्स (एंटीबायोटिक, एंटीफंगल, और एंटीवायरल दवाएं) का इस्तेमाल इस तरीके से होने लगा कि अब इन बीमारियों का इलाज तुरंत हो जाता है।

एंटीबायोटिक्स के बहुत ज्यादा इस्तेमाल करने से बैक्टीरिया सुपरबग बन रहे हैं जिसके कारण मामूली सी बीमारी भी ठीक होने में वक्त लगता है। इसका साफ अर्थ है कि एक मामूली सी बीमारी भी अब खुद से जल्दी ठीक नहीं होती है। WHO के मुताबिक इस कारण न्यूमोनिया, टीबी, ब्लड पॉइजनिंग और गोनोरिया जैसी बीमारियों का इलाज काफी ज्यादा कठिन हो रहा है और लोगों की मौत हो जा रही है। ICMR के मुताबिक यही कारण है कि निमोनिया, सेप्टीसीमिया में दी जाने वाली दवाएं कार्बेपनेम पर रोक लगा दी गई है क्योंकि यह बैक्टीरिया को ठीक करने में बेअसर हो रहे हैं।

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