कोविड-19 वैक्सीन: भारत को जल्द मिलने वाली है बड़ी सफलता
बाकी क्या कर रहे हैं दुनिया के देश
नई दिल्ली: पुणे में स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने कोविड 19 वैक्सीन को विकसित करने वाले ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ गठजोड़ कर इस वैक्सीन के उत्पादन का निर्णय किया है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी विश्व के उन 7 वैश्विक संस्थाओं में से एक है जो कोविड 19 वैक्सीन के विनिर्माण हेतु प्रयास कर रहे हैं। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने हाल ही में कहा है कि वह अलगे तीन माह में ऑक्सफोर्ड के कोविड 19 वैक्सीन को बनाना शुरू कर देगा और इसने यह भी योजना बनाई है कि यदि इस वैक्सीन का मानवों पर चिकित्सकीय परीक्षण सफल होता है तो इसे अक्टूबर माह में बाजार में लाया जा सकता है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की टीम ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के डॉक्टर हिल के साथ इस दिशा में गंभीरता से कार्य कर रहे हैं। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने यह भी कहा है कि वह इस बात के लिए प्रयासरत है कि अगले 3 माह में इस वैक्सीन के उत्पादन के साथ पहले 6 माह में वह प्रति माह इस वैक्सीन के 5 मिलियन डोज का उत्पादन करेगा। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अदर पूनावाला ने कहा है कि यह संस्थान इस वैक्सीन के प्रति माह 10 मिलियन डोज तक के उत्पादन की मंशा रखता है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि जो भी देश या संस्थान कोविड वैक्सीन का सबसे पहले विकास करेगा उसे वैश्विक स्वास्थ्य बाजार में भारी लाभ की स्थिति में होगा। वह विश्व समुदाय को यह विश्वास दिला पाने में सक्षम होगा कि पिछले एक दशक में विषाणु जनित जितनी भी महामारियां फैल रही हैं, उनके समाधान में वह देश सार्थक योगदान कर सकता है। अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पांपियों ने भी कहा है कि कोविड वैक्सीन को बनाने में अमेरिका भारत के साथ हाथ मिला चुका है। सस्ते दवाइयों और वैक्सीन (जेनेरिक ड्रग्स एंड वैक्सीन) का दुनिया का सबसे बड़ा निर्माता देश भारत ही है। भारत दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल स्थित इंटरनेशनल वैक्सीन इंस्टीट्यूट को प्रति वर्ष 5 मिलियन डॉलर का योगदान करता है जिसका उद्देश्य जेनेरिक दवाओं के विनिर्माण हेतु अपनी भूमिका निभाना है। वर्ष 2017 में भारत इसका पूर्ण सदस्य बना था।
नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने हाल ही में बताया है कि भारत में 6 कंपनियां पहले कोविड वैक्सीन को बनाने के प्रयास में जुटी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत विश्व में वैक्सीन विनिर्माण का एपिसेंटर (अधिकेन्द्र) है और भारत ग्लोबल वैक्सीन हब के रूप में उभरा है। हमें सस्ते दर वाली कोविड वैक्सीन बनाकर विश्व को कोरोनावायरस मुक्त करना होगा।
अमिताभ कांत ने ट्वीट कर उन छह कंपनियों के नाम भी बताए हैं जो कोविड-19 वैक्सीन बनाने के लिए गंभीरता से प्रयासरत हैं। इन कंपनियों में शामिल हैं –
- जाइडस कैडिला
- भारत बायोटेक
- इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड
- बायोलॉजिकल ई. लिमिटेड
- सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
- माइनवेक्स
The six Indian companies in race to make the 1st Covid vaccine.
India is the epicentre for vaccine manufacturing in the world. India has emerged as the global vaccines hub. We must crack this to enable the world to get vaccine at low price points & make world Covid free. pic.twitter.com/Ilqm7E0oo2— Amitabh Kant (@amitabhk87) April 20, 2020
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महामारी एवं संचारी रोग-I (ईसीडी-I) प्रभाग के प्रमुख रमन आर. गंगाखेड़कर ने बताया कि पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) वायरस को पृथक करने में सफल हुआ है।
उन्होंने कहा, ‘टीका बनाने के दो रास्ते हैं पहला, या तो आप वायरस की आनुवांशिकी संरचना का पता लगाएं और उसके आधार पर रोग प्रतिकारक विकसित किया जाए या दूसरा वायरस को अलग कर उसके खिलाफ टीका विकसित करने का प्रयास किया जाए जो हमेशा आसान विकल्प होता है। ‘
गंगाखेड़कर ने कहा, ‘कोरोना वायरस को पृथक करना मुश्किल है लेकिन एनआईवी पुणे के वैज्ञानिकों की कोशिश सफल रही है और कोरोना वायरस के 11 नमूने अलग किए गए हैं जो किसी भी शोध की प्राथमिक जरूरत होती है। हालांकि, टीका विकसित करने और प्रायोगिक परीक्षण करने और मंजूरी देने में भी डेढ़ से दो साल का समय लगेगा।
विश्व समुदाय और कोविड -19 वैक्सीन :
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में व्हाइट हाउस को संबोधित करते हुए कहा है कि अमेरिका इस वैक्सीन के विकास के बहुत करीब है। दि कोरोनावायरस एड, रिलीफ़, एंड इकोनॉमिक सिक्योरिटी (केयर्स एक्ट), 2020 के तहत अमेरिका ने इस महामारी से निपटने के लिए 140.4 बिलियन डॉलर धनराशि का आवंटन डिपार्टमेंट फॉर हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेस को की है। वैक्सीन निर्माण और डायग्नोस्टिक फंडिंग के लिए इस धनराशि में से 3.5 बिलियन डॉलर का आवंटन अमेरिका के बायोमेडिकल एडवांस्ड रिसर्च एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी को वैक्सीन के विनिर्माण, उत्पादन, वैक्सीन्स की खरीद, डायग्नोस्टिक और उपचार के लिए आवंटित किया है। केयर्स एक्ट के तहत अमेरिका ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ रिसर्च को 945.5 मिलियन का आवंटन वैक्सीन के विकास के लिए किया है ।
अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन और चीन में वैक्सीन का परीक्षण शुरू हो चुका है। 26 अप्रैल को वाल स्ट्रीट जर्नल ने ‘ अमेरिका नीड्स टू विन दि कोरोनावायरस वैक्सीन रेस ‘ नामक लेख प्रकाशित किया है। इसमें कहा गया है कि कोविड-19 वैक्सीन को विकसित करने वाला पहला देश आर्थिक रूप से लाभ की स्थिति में रहेगा और यह उसके लिए एक अभूतपूर्व पब्लिक हेल्थ अचीवमेंट होगा। चीन तीन वैक्सिनों के उन्नत चरण में पहुंचने के चलते इस रेस में तेज गति से प्रगति कर रहा है। वहीं चीनी अधिकारियों का कहना है कि चीन के पास व्यापक उपयोग के लिए वैक्सीन अगले वर्ष तक उपलब्ध हो सकेगा। यूरोपीय देश भी इस दिशा में प्रगति कर रहे हैं।
वहीं यूरोप की बात करें तो ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड में यूरोप का पहला मानव परीक्षण शुरू हो चुका है। दो वॉलंटियर्स को वहां वैक्सीन इंजेक्ट किया गया है। एलिसा ग्रेनाटो पहली महिला हैं जिनपर ऑक्सफोर्ड में परीक्षण किया गया।
जर्मनी में बायोनटेक के बीएनटी162 वैक्सीन प्रोग्राम को कोरोनावायरस के संक्रमण से बचने के लिए मंजूरी दी गई है। इसके साथ ही जर्मनी में वैक्सीन का मानव पर पहला चिकित्सकीय परीक्षण भी शुरू हो चुका है। बायोनटेक और फाइजर मिलकर जर्मनी में इस वैक्सीन को विकसित कर रहे हैं। गौरतलब है कि अमेरिका और ब्रिटेन में सीधे इंसानों पर चिकित्सकीय परीक्षण शुरू हुआ है तो वहीं चीनी वैज्ञानिक पहले जानवरों (चूहों-बंदरों) परीक्षण कर रहे हैं और इंसानों पर पर करेंगे। चीन की कम्पनी सिनोवैक बायोटेक ने रीसस बंदरों पर वैक्सीन का परीक्षण करके संक्रमण को रोकने में सफलता पाई है। वहीं, ब्रिटेन में दुनिया में सबसे तेज गति से वैक्सीन बनाने में जिस वायरस का इस्तेमाल हो रहा है वह भी इंसानों के पूर्वज कहे जाने वाले चिम्पैंजी से लिया गया है। इजराइल में इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोलोजिकल रिसर्च के 50 से अधिक अनुभवी वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने में जुटे हैं। फ्रांस की सेनोफी पाश्चर कंपनी कोरोना वैक्सीन तैयार करने में दुनिया सबसे बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही है। इसमें अमेरिका की एलि लिली, जॉनसन एंड जॉनसन और जापान की टाकेडा भी शामिल है।
यहां यह भी जानना जरूरी है कि भारत में भी कोरोनावायरस की वैक्सीन का जानवरों पर प्रयोग शुरू हो गया है। गुजरात की जायडस कैडिला कंपनी यह वैक्सीन बना रही है और नतीजे आने में 4 से 6 महीने का वक्त लगेगा। इसी कंपनी ने 2010 में देश में स्वाइन फ्लू की सबसे पहली वैक्सीन तैयार की थी।
(लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ है)