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भारतीय वायुसेना के पास फिलहाल 31 स्क्वाड्रन की है स्ट्रेंथ, 1965 के बाद सबसे कम हुई एयरफोर्स की फाइटर ताकत!

नई दिल्ली : वायुसेना के पास फाइटर प्लेन की ताकत ऐतिहासिक रूप से कम हो गई है। स्थिति यह है कि भारत के फाइटर प्लेन की क्षमता साल 1965 से भी कम हो गई है। इस पर एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह का कहना है कि ‘जो कुछ भी हमारे पास है, उसी से लड़ने’ को प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि हमारा ध्यान मौजूदा असेट्स के संरक्षण और कर्मियों को उनके सही तरीके से उपयोग करने के लिए ट्रेनिंग देने पर है।

हालांकि एयरफोर्स के पास 42 स्क्वाड्रन की स्वीकृत क्षमता है। यह संख्या सीमा पर खतरे की स्थिति को देखते हुए विस्तृत विचार-विमर्श के बाद स्वीकृत की गई है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसमें लगातार कमी आई है। इसकी वजह है कि पुराने सोवियत युग के फाइटर प्लेन रिटायर हो गए हैं और उनकी जगह नए प्लेन को लाने का आदेश नहीं दिया गया है।

अपने वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में वायुसेना प्रमुख ने कहा कि स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमानों (एलसीए) का उत्पादन, जो समय से पीछे चल रहा है, को तेज करने की जरूरत है। इसके साथ ही नए मल्टी रोल वाले वाले फाइटर प्लेन विमानों की जरूरत “कल से ही” है, लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। गौरतलब है कि वायुसेना ने 2018 में मेक इन इंडिया योजना के तहत 114 मल्टीरोल फाइटर प्लेन खरीदने की प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन पिछले छह साल से कोई प्रोग्रेस नहीं दिख रही है।

वायुसेना प्रमुख ने लड़ाकू विमानों की कमी को स्पष्ट रूप से बताते हुए कहा कि यह कोई थोड़े समय की बात नहीं है कि हम रातों-रात सामान खरीद सकते हैं। इसमें समय लगता है, सिर्फ सेलेक्शन ही नहीं, बल्कि शामिल करने में भी समय लगता है। इसके साथ ही, अगर हम दो या तीन स्क्वाड्रन शामिल भी करते हैं, तो निश्चित रूप से उनका उपयोग करने में सक्षम होने के लिए ट्रेनिंग में समय लगता है। इसलिए हम इस समय जिस चीज पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, वह यह है कि हमारे पास जो कुछ भी है, हम उससे तुरंत लड़ने में सक्षम हों।

रिकॉर्ड बताते हैं कि 31 स्क्वाड्रन की मौजूदा ताकत 1965 के बाद से भारत की सबसे कम ताकत है, जब पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ा गया था। 1965 के युद्ध के बाद यह संख्या लगातार बढ़ती गई और 1996 में 41 स्क्वाड्रन तक पहुंच गई। जैसे-जैसे विमान की रूपरेखा बदलती गई, 2013 में यह संख्या घटकर 35 रह गई और तब से लगातार कम होती गई।

सर्विस में मौजूद 31 स्क्वाड्रन में से दो स्क्वाड्रन कम से कम उड़ान भर रहे हैं। ये अपने मिग 21 लड़ाकू विमानों को बचा रहे हैं, जिन्होंने पहली बार 1971 के युद्ध में हिस्सा लिया था। ये विमान लंबे समय से अपने लाइफ के अंत तक पहुंच चुके हैं। उनकी रिटायरमेंट को कई सालों के लिए टाला जा रहा है। इसकी वजह है कि वायुसेना एलसीए एमके1ए लड़ाकू विमानों की डिलीवरी का इंतजार कर रही है।

एलसीए परियोजना से करीब से जुड़े रहे वायुसेना प्रमुख ने चेतावनी दी कि अतीत से सबक लेने की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आगे कोई देरी न हो। उन्होंने यह भी कहा कि जेट विमानों के उत्पादन में प्राइवेट सेक्टर को बड़े पैमाने पर शामिल करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अगर एलसीए डिलीवरी की समयसीमा पूरी हो जाती है और मल्टी-रोल फाइटर कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर हो जाते हैं, तो वायुसेना ‘बुरी स्थिति में’ नहीं होगी।

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