भारतीय कंपनी इंफोसिस पर अमेरिका में लगा चोरी का आरोप, जानिए क्या है मामला :
नई दिल्ली ( विवेक ओझा ) : प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी कॉग्निजेंट की अनुषंगी कंपनी ट्राइजेटो ( Cognizant’s TriZetto Healthcare software solutions) ने एक अमेरिकी संघीय अदालत में इन्फोसिस के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। कंपनी ने कहा है कि इंफोसिस ने बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन किया है और ट्रेड सीक्रेट्स की चोरी की है। ट्राइजेटो ने बेंगलुरू स्थित कंपनी पर कारोबारी गोपनीयता ( Trade secrets ) के अलावा स्वास्थ्य बीमा सॉफ्टवेयर से संबंधित जानकारी चुराने का आरोप लगाया है। कॉग्निजेंट ने अपने को हुए मौद्रिक क्षति की भरपाई के लिए भी कहा है। हालांकि इन्फोसिस (Infosys) ने एक बयान जारी कर सभी आरोपों को खारिज किया है। कंपनी ने कहा कि उसे मुकदमे की जानकारी है और वह अदालत में अपना पक्ष रखेगी। कॉग्निजेंट ने टेक्सास संघीय अदालत में दायर मुकदमे में इन्फोसिस पर ट्राइजेटो के सॉफ्टवेयर- फेसेट्स और क्यूएनएक्सटी से अवैध रूप से आंकड़ा प्राप्त करने तथा उसका उपयोग प्रतिस्पर्धी उत्पाद विकसित करने और विपणन करने के लिए करने का आरोप लगाया है।
ट्राइजेटो के सॉफ्टवेयर का दुरुपयोग कियाकॉग्निजेंट की पेशकशों में ट्राइजेटो के फेसेट्स और क्यूएनएक्सटी शामिल हैं। इनका उपयोग स्वास्थ्य बीमा कंपनियां कार्यों को स्वचालित करने के लिए करती हैं। न्यू जर्सी के टीनेक में स्थित कॉग्निजेंट के अधिकांश कर्मचारी भारत में हैं। कॉग्निजेंट ने कथित तौर पर आरोप लगाया है कि इन्फोसिस ने “टेस्ट केस फॉर फेसेट्स” बनाने के लिए ट्राइजेटो के सॉफ्टवेयर का दुरुपयोग किया। फेसेट्स ने उसके डेटा को इन्फोसिस उत्पाद में पुनः पैक कर दिया। इसके अलावा, इसने कथित तौर पर आरोप लगाया है कि इन्फोसिस ने क्यूएनएक्सटी से डेटा निकालने के लिए सॉफ्टवेयर बनाया, जिसमें ट्राइजेटो की गोपनीय जानकारी शामिल थी।
आपकोबता दे कि इन्हीं बौद्धिक संपदा अधिकारों की चोरी के आरोप लगा लगाकर अमेरिका द्वारा भारत जैसे विकासशील देशों पर दबाव बनाया जाता है। अमेरिका हर साल इसी मुद्दे पर स्पेशल 301 रिपोर्ट जारी करता है जिसमें भारत जैसे देशों पर बौद्धिक संपदा अधिकारों से खिलवाड़ करने की दलील देता है। अमेरिका हर साल जारी अपने अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार सूचकांक के जरिए भी विकासशील देशों को निशाना बनाता है। इसलिए जरूरत हो जाती है कि भले ही भारतीय कंपनियों ने कोई गड़बड़ी न की हो , लेकिन सतर्क रहकर कार्य करना जरूरी है।
1977 में जब मोरारजी देसाई सरकार ने अमेरिका की कोका कोला कंपनी से फॉर्मूला उजागर करने को कहा तो वह कारोबार समेट कर लौट गई थी। ट्रेड सीक्रेट न पूछे जाने का भरोसा मिलने पर कंपनी 1993 में लौटी। तभी से भारत के साथ कारोबार करते समय विदेशी कंपनियां अपने ट्रेड सीक्रेट और विभिन्न गोपनीय सूचनाओं के संरक्षण के लिए कानूनी कवच मांगती रही थीं। यह आखिरकार उन्हें मिलने जा रहा है।विधि आयोग ने केंद्र सरकार को 289वीं रिपोर्ट का मसौदा सौंप दिया है। इसमें ट्रेड सीक्रेट एक्ट और आर्थिक गुप्तचरी को लेकर अलग कानून का उल्लेख है।
आयोग ने व्यापक विचार-विमर्श कर जाना कि सीक्रेट उजागर करने के लिए किन मामलों को अपवाद माना जाना चाहिए। देश में अब तक ऐसा कानून नहीं है, जो किसी वस्तु को बनाने का राज सुरक्षित रखता हो। बौद्धिक संपदा कानून और कॉपीराइट एक्ट इस जरूरत को पूरा नहीं कर पाते। भारत डब्ल्यूटीओ के ट्रिप्स एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर कर चुका है। इसके तहत ट्रेड सीक्रेट को संरक्षण देना लाजिमी है।
मसौदे में क्या हैं प्रावधान : ट्रेड सीक्रेट गोपनीय जानकारी पर बौद्धिक संपदा अधिकार हैं, जिन्हें बेचा या लाइसेंस दिया जा सकता है। बौद्धिक संपदा अधिकार सीमित अवधि के लिए होते हैं। ट्रेड सीक्रेट अनिश्चित काल तक संरक्षित रह सकते हैं।नकारात्मक अनुबंध या जॉब के बाद व्यक्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा। यानी कर्मचारी किसी कंपनी को छोड़ेगा तो यह मानकर कि वह पूर्व कंपनी के सीक्रेट उजागर कर देगा, उसके प्रतिस्पर्धी कंपनी में जाने पर प्रतिबंध नहीं होगा।कानून में व्हिसिलब्लोअर, अनिवार्य लाइसेंसिंग, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक हित आादि अपवादों का भी उल्लेख हो।अगर दो कमर्शियल कंपनियों के बीच ऐसा कोई मामला सामने आएगा, तो विदेशी सरकार को शामिल होना पड़ेगा। लिहाजा आयोग की राय है कि आर्थिक गुप्तचरी के मामलों से अलग कानून बनाकर निपटा जाना चाहिए।