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भारतीय बागवान भी अपना सकेंगे जापानी प्रौद्योगिकी

लखनऊ: जापान के चार  सदस्यीयप्रतिनिधिमंडल ने भारत में उन्नत बागवानी तकनीकी उपलब्ध कराकर उद्यमिता विकास को बढ़ावा देने के लिए केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा,लखनऊ में बुधवार को भ्रमण किया. इसका मुख्य उद्देश्य जापान और भारत के बीच में स्थापित तकनीक सहयोग संबंधों को और सुदृढ़ करना है. यह प्रतिनिधिमंडल संस्थान के सहयोग से भविष्य में जापानी तकनीकी के बागवानी  के उत्थान में संभावनाओं को पता लगाने के लिए विमर्श करने आया था. प्रतिनिधिमंडल ने  संस्थान में वैज्ञानिकों से तकनीकी विचार-विमर्श करने के साथ प्रायोगिक स्थल में हो रहे कार्यों का भी जायजा लिया ताकि वे  उपलब्ध जापानी तकनीकों का चुनाव कर सके जिनका उपयोग संस्थान की सहायता से किसानो द्वारा बागवानी फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है. इन तकनीकियों के उपयोग से उत्पादन के साथ फलों एवं सब्जियों की  गुणवत्ता को भी सुधारा जा सकता है.

जापानी कंपनियों ने भारतीय कृषि स्टार्टअप में दिखाई रुचि

प्रतिनिधि मंडल ने जापान की विभिन्न प्रकार की नई कृषि प्रौद्योगिकी के बारे में विस्तृत चर्चा की तथा यह जानना चाहा कि इनका भारतीय कृषि इनका क्या महत्व एवं उपयोग की उम्मीद है. उन्होंने मृदा रहित खेती की तकनीकी ‘आईमैक’ के बारे में  वैज्ञानिकों को अवगत कराया जिसके उपयोग से कम लागत तथा बिना खेती योग्य जमीन के पौष्टिक सब्जियों की अधिक  उपज ली जा सकती है. यह तकनीकी पर्यावरण के लिए अनुकूल है. इस तकनीक में पौधों को एक विशेष फिल्म द्वारा पोषक तत्व उपलब्ध कराये जाते हैं. इस तकनीक द्वारा दूषित जल को भी कृषि उपयोग में लाया जा सकता है. इस पर्यावरण अनुकूल तकनीकी के उपयोग से सीमित खेती योग्य भूमि पर मूल्यवान फसलों का उत्पादन किया जा सकता है.

बागवानी में स्टार्टअप के लिए मिलेगा जापानी सहयोग

जापानी प्रतिनिधिमंडल का विश्वास है कि स्टार्टअप से कई तकनीकी भारत में उपयोगी सिद्ध हो सकती है. इन प्रौद्योगिकियों के उपयोग की संभावनाओं के बारे में सही निर्णय आपस में विचार करके ही लिया जा सकता है. इससे भारतीय दशाओं में कम लागत में अधिक सफलता प्राप्त करना है. इस कार्य के लिए केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान एक इनक्यूबेटर केंद्र की तरह कार्य कर सकता है जहां जापान द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी का उपयोग करके प्रशिक्षु व्यापक स्तर पर व्यवसाय के  रूप में अपनाने से पूर्व तकनीक को आजमा सकते है तथा प्रशिक्षण ले सकते है. जापानी कंपनियां ICAR-CISH की मदद से  प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन के लिए समझौता करना चाहती हैं. इससे आने वाले वर्षों में भारत में बागवानी के आधुनिकीकरण में  सफलता मिलेगी. इसके द्वारा बागवानी विकास के अतिरिक्त जापानी कंपनियों को व्यापार के लिए नए क्षेत्र मिलने की भी  संभावना है.

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