नई दिल्ली:विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 5 जून को विज्ञान भवन में ‘मिट्टी बचाओ आंदोलन’ पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होंगे। इस कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री उपस्थित लोगों को भी संबोधित करेंगे। मिट्टी बचाओ आंदोलन’ मिट्टी के बिगड़ते स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसे सुधारने के लिए जागरूक दायित्व कायम करने के लिए एक वैश्विक आंदोलन है। सद्गुरु ने मार्च 2022 में इस आंदोलन की शुरुआत की थी, जिन्होंने 27 देशों से होकर 100 दिन की मोटरसाइकिल यात्रा शुरू की थी। 5 जून 100 दिन की यात्रा का 75वां दिन है। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री की भागीदारी भारत में मृदा स्वास्थ्य में सुधार के प्रति साझा चिंताओं और प्रतिबद्धता को प्रतिबिंबित करेगी।
गौरतलब है कि मिट्टी बचाओ आंदोलन आध्यात्मिक व्यक्तित्व सद्गुरु द्वारा शुरू किया गया एक वैश्विक अभियान है, जो मिट्टी के संकट को दूर करने के लिए दुनिया भर के लोगों को एकजुट कर रहा है। सद्गुरु तीन दशकों से लगातार मिट्टी के महत्व और मिट्टी के विनाश होने के खतरे के बारे में लोगों को जागरूक कर रहे हैं। उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार कहा है: “मिट्टी हमारा जीवन है, हमारा शरीर मिट्टी ही है। और अगर हम मिट्टी पर ध्यान देना छोड़ देते हैं, तो इसका मतलब है हमने धरती पर भी ध्यान देना छोड़ दिया है।
यह अभियान, खेती की मिट्टी में जैविक (ऑर्गेनिक) सामग्री को बढ़ाने के लिए सभी देशों के नेताओं को राष्ट्रीय नीतियां बनाने और कार्रवाई करने में मदद कर रहा है। मिट्टी बचाओ आंदोलन के मुख्य उद्देश्य या कार्यवाहियो में शामिल है :
– दुनिया का ध्यान मरती हुई मिट्टी की ओर मोड़ना और
लगभग 350 करोड़ लोगों (दुनिया के 526 करोड़ मतदाताओं का 60%) को प्रेरित करना, ताकि वे मिट्टी के पोषण और उसे जीवंत बनाए रखने के लिए नीतियाँ बनाने में अपना समर्थन दें।
- 193 देशों में मिट्टी की जैविक (ऑर्गेनिक) सामग्री को कम से कम 3-6% तक बढ़ाने, और इस मात्रा को बनाए रखने की दिशा में राष्ट्रीय नीतियों में बदलाव लाना।
सदगुरू ने इस आंदोलन को कैसे दिशा दी :
1990 के दशक में, ग्रामीण तमिलनाडु में लोगों का एक समूह एक उदार पत्तेदार पेड़ की छाया में आंखें बंद किए बैठा था। कुछ समय पहले वे खुले में बैठे थे। वे दक्षिण भारतीय सूर्य के सभी तीव्र प्रभावों को महसूस कर रहे थे, और उनके शरीर से पसीना बह रहा था। पर फिर ठंडी हवा के झोंके में, और सुरक्षात्मक हरी छाँव में, उन्हें उस बड़े पेड़ के महत्व और आशीर्वाद का एहसास हुआ।
सद्गुरु ने उन्हें एक भीतरी प्रक्रिया करवाई, जिसमें उन्होंने वाकई पेड़ के साथ सांस के आदान-प्रदान (लेन-देन) का अनुभव किया। यानि वे देख पा रहे थे कि जो कार्बन डाइऑक्साइड वे बाहर छोड़ रहे हैं, उसे पेड़ अंदर ले रहा है, और पेड़ ऑक्सीजन छोड़ रहा है, जिसे वे अपने अंदर ले रहे हैं। यह एक अनुभवात्मक प्रक्रिया थी, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से देखा कि उनके सांसों के सिस्टम का आधा हिस्सा बाहर पेड़ों पर था। ये वे शुरुआती दिन थे, जब सद्गुरु ने ‘सबसे कठोर ज़मीन’ यानि ‘लोगों के मन’ में पौधे लगाना शुरू किया था। हर प्राणी या जीवन के हर रूप के साथ एकता के इस पहले अनुभव ने, उत्साही वॉलंटियर्स के पहले समूह को प्रेरित किया, और उन्होंने हमारी धरती को फिर से जीवंत बनाने के लिए इस अभियान की शुरुआत की।
यह अभियान 1990 के दशक में एक इको-ड्राइव वनश्री के रूप में कुछ हज़ार वॉलंटियर्स के साथ शुरू हुआ था। उस इको-ड्राइव का उद्देश्य था – वेल्लियांगिरी पहाड़ियों को फिर से हरा-भरा करना। यह अभियान जल्द ही प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स में बदल गया, जो 2000 के पहले दशक में तमिलनाडु में लाखों वॉलंटियर्स वाला एक बहुत बड़ा राज्यव्यापी अभियान बन गया था। 2017 में सद्गुरु ने नदियों के लिए एक ज़बरदस्त रैली, नदी अभियान (रैली फॉर रिवर्स) का नेतृत्व किया। इस अभियान को 16 करोड़ भारतीयों का समर्थन मिला और यह दुनिया का सबसे बड़ा पर्यावरण से जुड़ा अभियान बन गया। इसी अभियान को एक व्यावहारिक ‘प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट’ प्रोजेक्ट कावेरी कॉलिंग (कावेरी पुकारे) की मदद से, ज़मीनी स्तर पर आगे बढ़ाया। अब इसमें दुनिया के अरबों नागरिक शामिल होंगे। यह एक अभूतपूर्व अभियान होगा – जिसकी मदद से धरती को ज़्यादा जागरूक बनाया जाएगा, और मिट्टी को बचाने की नीतियाँ बनाई जाएंगी। सद्गुरु का मिशन है – 350 करोड़ लोगों तक पहुंचना। यह मिशन तीन दशकों के कार्य और विकास का परिणाम है।
सद्गुरु को तीन राष्ट्रपति पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें राष्ट्र की विशिष्ट सेवा के लिए पद्म विभूषण और 2010 में भारत का सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार, इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार शामिल हैं।