चाइनीज नहीं भारतीय राखियों की धूम, 7,000 करोड़ रुपए का हुआ कारोबार
मुंबई: इस साल रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) पर बाजारों में चाइनीज (Chinese) नहीं, बल्कि भारत (India) में बनी राखियों की धूम रही। भारतीय व्यापारियों और नागरिकों ने मुंबई सहित देश भर में गुरुवार को रक्षाबंधन के त्योहार पर किसी भी प्रकार की चीनी राखी का उपयोग करने की बजाय ‘भारतीय राखी’ का विकल्प चुनकर चीन को राखी के व्यापार का एक तगड़ा झटका दिया।
व्यापार महासंघ ‘कैट’ के मुताबिक, इस साल पूरे देश में लगभग 7,000 करोड़ रुपए मूल्य की राखियों का व्यापार होने का अनुमान है। व्यावहारिक रूप से इस वर्ष बाजारों में केवल भारतीय राखी की ही मांग अधिक देखी गयी। लोगों के इस बदलते रूख से यह स्पष्ट होता है कि धीरे-धीरे भारतीय अपने दैनिक जीवन में चाइनीज सामानों का उपयोग कम करते जा रहे हैं।
भारत में बनी राखियां ही ज्यादा पसंद
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि वह समय चला गया है, जब भारतीय लोग चीनी राखी के डिजाइन और लागत प्रभावी होने के कारण उसको खरीदने के लिए उत्सुक रहते थे। समय और मानसिकता के परिवर्तन के साथ लोग अब भारत में बनी राखियां ही ज्यादा पसंद कर रहे हैं। भारत के हर त्योहार देश की पुरानी संस्कृति और सभ्यता से जुड़े हुए हैं, लेकिन तेजी से पश्चिमीकरण होना चिंताजनक है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए और चीन पर भारत की निर्भरता को कम करके भारत को एक ‘आत्मनिर्भर देश’ बनाना बेहद जरूरी है।
महासंघ के मुंबई अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने कहा कि भारतीय त्योहारों के गौरवशाली अतीत को पुनः प्राप्त करने की दृष्टि से इस साल ‘कैट’ ने लोगों से ‘वैदिक राखी’ के उपयोग का भी आह्वान किया था। इसका भी लोगों ने काफी उपयोग किया। वैदिक राखी स्वयं निर्मित राखी है। व्यापारी संगठनों ने इस वर्ष वैदिक रक्षा राखी की तैयारी पर अधिक जोर दिया। इसमें अनिवार्य रूप से 5 चीजें हैं, जिनकी अपनी प्रासंगिकता है, जिनमें दूर्वा यानी घास, अक्षत यानी चावल, केसर, चंदन और सरसों के दाने। इन्हें रेशम के कपड़े में सिलकर कलावा से पिरो कर वैदिक राखी तैयार की जाती है। इन पांच चीजों का विशेष वैदिक महत्व है जो परिवार की रक्षा और उपचार से संबंधित है।