एनडीए का बढ़ता साम्राज्य : भगवा होता भारत

पूरे भारत पर भगवा रंग चढ़ने लगा है। दिल्ली जीत के साथ देश के 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भाजपा या गठबंधन की सरकार है। यानी देश की 70 फीसदी आबादी पर बीजेपी और उसके सहयोगी दलों का शासन है। बीजेपी के लिए पूरे देश में अपने एजेंडे ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ और ‘समान नागरिक संहिता’ को लागू करने की राह आसान होती जा रही है। धुर दक्षिणपंथी पार्टी मानी जाने वाली बीजेपी की स्वीकायर्ता बढ़ने के कारणों की पड़ताल कर रहे हैं ‘दस्तक टाइम्स’ के संपादक दयाशंकर शुक्ल सागर।
अमेरिकी लेखक होरेस जैक्सन ब्राउन ने कहीं लिखा है- ‘अवसर उन लोगों के साथ नृत्य करता है जो पहले से ही डांस फ्लोर पर हैं।’ 2014 में जब नरेन्द्र दामोदर दास मोदी पहली बार भारतीय राजनीति के डांस फ्लोर पर उतरे तब किसी ने कल्पना नहीं की थी कि अवसर उनके साथ ऐसे झूम के नाचेगा। 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में हुए आम चुनाव में केवल दो सीट जीतने वाली बीजेपी 31 (28 राज्य और 3 केन्द्र शासित राज्यों) में से 21 राज्यों में एकछत्र राज कर रही है। यह दिलचस्प इत्तेफाक है कि 1984 में कांग्रेस ने आखिरी बार देश जीता था। तब कांग्रेस के हिस्से 404 सीटें आई थीं। इसके बाद कांग्रेस के पतन का जो दौर शुरू हुआ, वो अगले 40 सालों तक नहीं थमा। 2017 में पंजाब, 2018 में छत्तीसगढ, मध्य प्रदेश, राजस्थान, 2022 में हिमाचल प्रदेश और 2023 में कर्नाटक व तेलंगाना को छोड़ दें तो बीते दस वर्षों में लोकसभा और विधानसभाओं के पचास से ज्यादा चुनाव हुए जिसमें 90 फीसदी चुनाव कांग्रेस हार गई। यानी इस समय केवल तीन राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री हैं। जबकि दिल्ली, अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ, गुजरात, गोवा, हरियाणा, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बीजेपी के मुख्यमंत्री ड्राइविंग सीट पर बैठे हैं। कुछ दिन पहले तक मणिपुर में भी बीजेपी का राज था। अब बीजेपी के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति शासन लगाया गया है।
ते साल 8 राज्यों- आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव हुए। ये सभी चुनाव ब्रांड मोदी के चेहरे पर लड़े गए। इसमें पांच राज्यों- आंध्रप्रदेश, अरुणाचल, ओडिशा, हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा या गठबंधन की सरकार बनी। सिक्किम में विधानसभा चुनाव से पहले ही भाजपा और सिक्किम क्रन्तिकारी मोर्चा (एसकेएम) के बीच गठबंधन टूट गया जबकि केंद्र में दोनों अब भी साथ हैं। जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और झारखंड में जेएमएम के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनी। 2025 में दिल्ली में मिली जीत के साथ 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भाजपा या गठबंधन की सरकार हो गई है। बीजेपी अगर हिमाचल प्रदेश और झारखंड में भी चुनाव जीत जाती तो 23 राज्यों में उसकी सरकार होती। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड होता।

लोकसभा नतीजों के संकेत
भगवा होर्ते हिन्दुस्तान और लगातार तीन विधानसभा चुनावों में बीजेपी की शानदार जीत का आकलन करने से पहले कुछ तथ्यों पर गौर करना जरूरी है। 2024 के चुनावी नतीजे बीजेपी के लिए निराशाजनक रहे क्योंकि वो अंत तक 400 पार के जुमले पर अटकी रही और ऐसा नहीं हुआ। गौरतलब है कि सारे चुनावी विश्लेषण इसी तुलनात्मक संख्या के परिपेक्ष्य में लिखे गए। लेकिन इस शोर में बीजेपी की उपलब्धियों से जुड़े कई तथ्य छूट गए या उन पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई। जैसे पिछले साल एनडीए की वापसी का मतलब था-1962 के बाद पहली बार कोई गैर कांग्रेसी सरकार अपने दो कार्यकाल पूरे करने के बाद तीसरी बार सत्ता में वापस आई। यह अपने आप में बहुत बड़ी कामयाबी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीन कार्यकाल वाले जवाहर लाल नेहरू के बाद दूसरे प्रधानमंत्री बने। बीजेपी ने अकेले विपक्षी गठबंधन की कुल सीटों से अधिक सीटें जीतीं। जाहिर है देश की जनता का भरोसा उन पर कायम रहा। लोकसभा चुनावों में एनडीए को कुल 292 सीटें मिलीं, जो बहुमत के जादुई आंकडे 272 से 20 सीट ज्यादा हैं, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक को सिर्फ 233 सीटें ही मिली हैं। यानी इंडिया ब्लॉक मिलकर भी उतनी सीटें नहीं जीत पाया, जितनी बीजेपी अकेले जीतने में कामयाब रही।
बीजेपी ने इस चुनाव में कई राज्यों में अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराई है। मसलन 6 राज्यों में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया, जिसमें दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा शामिल थे। इसके अलावा पार्टी गुजरात में 26 में से 25, ओडिशा में 21 में से 20 और छत्तीसगढ़ में 11 में से 10 सीट जीतने में कामयाब रही। 2019 में बीजेपी को 37 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार सिर्फ 1 प्रतिशत से कम यानी 36.56 प्रतिशत वोट मिले हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात यह थी कि 10 साल की एंटी-इनकंबेंसी के बावजूद विपक्ष 234 सीटों के आंकड़े तक ही पहुंच सका। बीजेपी और कांग्रेस की सीटों के बीच का अंतर भी बहुत बड़ा है। कांग्रेस लगातार तीसरे चुनाव में 100 सीटों का आंकड़ा नहीं छू पाई। सीटों के लिहाज से बीजेपी को भले ही नुकसान हुआ है, लेकिन लगातार तीसरी बार वह देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। बीजेपी की दो बड़ी कामयाबियां और रहीं जो खराब प्रदर्शन के शोर और प्रोपेगेंडा में दबकर रह गईं। बीजेपी अगर पिछली बार की तरह इस बार भी अपने दम पर पूर्ण बहुमत का आंकडा छू भर लेती तो यकीन जानिए पूरा विपक्ष कोमा में चला जाता।
दक्षिण में दस्तक
2024 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण में दस्तक बीजेपी की सबसे बड़ी कामयाबी रही। पिछले दोनों टर्म के चुनावों में बीजेपी दक्षिण भारत में अपनी पहचान नहीं बना पाई थी। इस कमज़ोरी को दूर करने के लिए बीजेपी ने दक्षिण भारत में कड़ी मेहनत की। इसका असर भी दिखा। मोदी के नेतृत्व में दक्षिण में बीजेपी का जनाधार तेजी से बढ़ा। बीजेपी ने तेलंगाना में 17 में से 8 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया। तेलंगाना में वोट प्रतिशत 19.65 से बढ़कर 35.08 प्रतिशत हो गया। तमिलनाडु में बीजेपी का वोट प्रतिशत 3.62 से तीन गुना बढ़कर 11.24 प्रतिशत हो गया। आंध्र प्रदेश में वोट प्रतिशत 0.90 से 11 गुना बढ़कर 11.28 प्रतिशत हो गया है। पार्टी ने आंध्र प्रदेश में 3 सीटें भी जीतीं। केरल हमेशा से कम्युनिस्टों और कांग्रेसियों का गढ़ रहा है। दक्षिण भारत में अपनी स्थिति को और मजबूत करते हुए बीजेपी पहली बार केरल में अपना खाता खोलने में सफल रही। बीजेपी उम्मीदवार सुरेश गोपी त्रिचूर से जीते। केरल में बीजेपी का वोट प्रतिशत भी 12.99 से बढ़कर 16.68 प्रतिशत हो गया। आंध्र प्रदेश में तेलुगुदेशम के साथ गठबंधन में मिले 12 प्रतिशत वोटों के साथ तीन सीटें और तेलंगाना में लगभग 35 प्रतिशत वोटों के साथ पहले से दोगुनी सीटों पर जीत स्वीकार्यता के लिहाज से बीजेपी के लिए बड़ी घटना थी।

ओडिशा और अरुणाचल में बड़ी जीत
ओडिशा विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 24 साल से मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को हराकर इतिहास रच दिया। बीजेपी ने पहली बार 147 सीटों में से 78 सीटों पर जीत हासिल कर पूर्ण बहुमत हासिल किया और ओडिशा में अपने बूते पर सरकार बना ली। अरुणाचल प्रदेश में भी बीजेपी ने 60 विधानसभा सीटों में से 46 पर जीत दर्ज कर सभी को हैरत में डाल दिया। पार्टी अयोध्या और आसपास की सीटें भले ही हार गई हो, लेकिन इससे राम मंदिर के सरोकारों के विस्तार का महत्व कम नहीं हो जाता है। दक्षिण में कर्नाटक से बाहर बीजेपी की स्वीकार्यता बढ़ने के मूल में राम ही हैं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पंजाब में बीजेपी को कोई सीट नहीं मिली लेकिन वोट प्रतिशत 2019 के 9.63% से बढ़कर दोगुना यानी 18.5% हो गया है, जो बड़ी कामयाबी है। इन नई कामयाबियों के बावजूद बीजपी को बीते आम चुनाव में बड़ा नुकसान हुआ। 2019 में अकेले 300 पार जाने वाली बीजेपी 240 पर अटक गई, यानी पार्टी ने 63 सीटें गंवाई। इसमें 53 सीटें उसके अपने गर्ढ़ ंहदी पट्टी में घटीं। 2019 में बीजेपी ने यूपी में 62 और राजस्थान में 24 सीटें जीती थीं। 2024 में बीजेपी यूपी में 36 और राजस्थान में 14 सीटों पर सिमटकर रह गई। यूपी में उसे 26 और राजस्थान में 10 सीटों का नुकसान हुआ। बीजेपी अगर इन 36 सीटों को बचा लेती तो वह अपने दम पर बहुमत हासिल कर 272 का जादुई आंकड़ा पार कर लेती। हालांकि चुनाव जीत कर बीजेपी र्डांंसग फ्लोर पर वापस आई और उसे र्डांंसग फ्लोर पर रहने का फायदा भी मिला।
परदे के पीछे आरएसएस
आंकड़े बताते हैं कि भगवा का रंग किस तरह पूरे देश में फैलता जा रहा है। हर प्रान्त, हर वर्ग, हर धर्म, हर सम्प्रदाय के लिए बीजेपी स्वीकार्य होती जा रही है। राष्ट्रीय फलक पर जिस तरह बीजेपी ने अपने पांव पसारे हैं, उसमें मोदी मैजिक के अलावा आरएसएस की देशव्यापी नेटवर्किंग का भी बड़ा योगदान है। इन तीनों राज्यों में बीजेपी की जीत केवल पारंपरिक राजनीतिक पैंतरेबाजी का नतीजा नहीं थी, बल्कि एक सूक्ष्म और बहुआयामी रणनीति का परिणाम थी, जिसमें वैचारिक प्रभाव, कल्याणकारी योजनाएं और राज्य के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य की गहरी समझ शामिल थी। भाजपा को जमीनी स्तर के संगठनों और आम लोगों से जोड़ने में आरएसएस की अहम भूमिका रही है। दशकों की मेहनत से आरएसएस ने स्वयंसेवकों और सहयोगियों का एक बड़ा और सशक्त नेटवर्क तैयार किया है, जिन्होंने जमीनी स्तर पर अथक परिश्रम किया है और जिसके चलते पार्टी की एक मजबूत संगठनात्मक उपस्थिति लोगों के सामने है।
सटीक रणनीति
बीजेपी ने लोकसभा चुनाव की गलतियों से सीख लेकर हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली के लिए चुनावी रणनीति तैयार की। जबकि विपक्ष आम चुनाव में हारने के बावजूद अंत तक इस बात का जीत का जश्न मनाता रहा कि उन्होंने मिलकर मोदी को 240 पर रोक लिया। राज्यों के चुनाव में बिना सीएम चेहरे के उतरने की बीजेपी की रणनीति कारगर साबित हुई। वह चाहे एमपी, राजस्थान या छत्तीसगढ़ हो या हरियाणा, महाराष्ट्र या दिल्ली। सारे चुनाव बीजेपी ने मोदी के चेहरे पर लड़ा। इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि राज्य के सभी वरिष्ठ नेता मुख्यमंत्री बनने की आस में अपना सौ फीसदी परिश्रम और ऊर्जा लगाते दिखे। बीजेपी की जीत का दूसरा फार्मूला है महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजनाएं। दिल्ली के चुनाव में बीजेपी ने पहले ही दिन से साफ कर दिया था कि उनकी सरकार बनी तो केजरीवाल सरकार की चल रही कोई पुरानी योजना बंद नहीं की जाएगी। इसमें कोई शक नहीं कि लोकसभा में केवल बीजेपी को वोट देने वाली दिल्ली की अधिकांश जनता सस्ती बिजली और अन्य सुविधाओं के लिए ही आम आदमी पार्टी को वोट देती थी। मुफ्तवाद का यह टोटका भी बीजेपी ने आप से छीन लिया। बीजेपी की जीत का तीसरा फार्मूला है विपक्ष के नेताओं पर आक्रामक हमला। उन्हें इतना बदनाम कर दो कि वे जनता के मन से उतर जाएं।

एजेंडे पर काम हुआ आसान
‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ और ‘समान नागरिक संहिता पूरे देश में लागू करना’ ये दोनों मुद्दे बीजेपी के दीर्घकालिक एजेंडे में शामिल हैं और एक लंबे अर्से से उनके चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा रहे हैं। अब 21 राज्यों में सरकारें होने से बीजेपी को अपना एजेंडा पूरा करना आसान होगा। दिल्ली हारने के बाद केवल आठ राज्यों में इंडिया ब्लॉक के सहयोगी दलों की सरकार है। ये राज्य हैं- कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल। उत्तराखंड समान नागरिक संहिता सफलतापूर्वक लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन चुका है। केन्द्र ने यह जिम्मेदारी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर्र ंसह धामी को दी जो उन्होंने बखूबी निभाई। उत्तराखंड राज्य यूसीसी लागू करने की प्रयोगशाला बना क्योंकि यहां मुस्लिम आबादी सबसे कम है। यूसीसी को सारे देश में लागू करने की केन्द्र सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा कि वह सभी भाजपा शासित राज्यों में समान नागरिक संहिता को लागू करेंगे। उन्होंने संसद में दिए गए भाषण में कहा, ‘अनुच्छेद 44 के तहत, हमारा संविधान समान नागरिक संहिता की बात करता है। जवाहरलाल नेहरू द्वारा मुस्लिम पर्सनल लॉ लाए जाने के कारण यह वास्तविकता नहीं बन पाया।’
उत्तराखंड के बाद एक अन्य भाजपा शासित राज्य गुजरात है जहां इस पर तेजी से काम शुरू हो गया है। गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने घोषणा की है कि राज्य में ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ लागू किया जाएगा। गुजरात में 45 दिनों के भीतर विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए सेवानिवृत्त सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हुआ है। उत्तर प्रदेश, असम और मध्य प्रदेश जैसे अन्य भाजपा शासित राज्यों ने भी उत्तराखंड को मॉडल मानते हुए समान नागरिक संहिता लागू करने की मंशा जाहिर की है। बीजेपी का दूसरा एजेंडा लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने का है। इसके लिए कई राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को कम या बढ़ाया जाना जरूरी है। सभी विपक्षी दल इस विधेयक का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि यह संघीय सिद्धांतों के लिए हानिकारक होगा। हालांकि, जितने राज्यों में बीजेपी या उसके सहयोगी दलों की सरकार बनेगी, इसे लागू कर पाना उतना ही आसान हो जाएगा। बहरहाल अगले लोकसभा चुनाव से पहले कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। दो दर्जन से अधिक राज्यों के चुनाव 2026 और 2027 में होंगे। बिहार में विधानसभा चुनाव इसी साल होने वाले हैं। अगले आम चुनावों से पहले ही यह साफ हो जाएगा कि पूरे भारत पर भगवा फहराने वाला बीजेपी अश्वमेध यज्ञ पूरा होता है या नहीं।