बाघ संरक्षण में भारत की भूमिका
बाघ दिवस पर विशेष
पटना: गत दो दिन पहले 29 जुलाई को पूरे विश्व में ग्लोवल बाघ दिवस मनाया गया। आज से दस साल पहले 2010 मे रुस के सेंट पीट्सवर्ग से आरंभ हुए इस आंदोलन को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के नाम से भी जाना जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस को मनाये जाने का उद्येश्य है बाघों को संरक्षित करना। सेंट् पीट्सवर्ग में यह निश्चय किया गया था कि सम्मेलन में भाग लेने वाले सदस्य देश 2022 तक अपने – अपने देशों में बाघों की संख्या दुगनी करेंगे।
भारत भी इस सम्मेलन के सदस्य देशों में एक सदस्य था। 2018 में भारत ने निर्धारित समय से पहले हीं अपने यहाँ बाघों की संख्या को दुगनी से भी अधिक कर अपने दायित्व का बखूबी निर्वाह किया। भारत द्वारा प्राप्त की गयी उपलब्धि का विशिष्ट महत्त्व है।
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर भारत सरकार के केन्द्रिय पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने संदेश दिया। संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि ताजा गणना के अनुसार देश में बाघों की संख्या 2967 हैं। देश में चार वर्षों में इनकी संख्या 741 बढ़ी है। उन्होंने संदेश में यह भी कहा कि 1973 में जब बाघ परियोजना शुरु की गयी थी,उस समय देश में मात्र 9 बाघ अभ्यारण्य थे जिनकी संख्या अब बढ़कर 50 हो गई है। उन्होंने इस उपलब्धि के लिए वन्य प्रवंधन कर्मियों को नमन किया। साथ हीं उन्होंने इस अवसर पर कहा कि बाघ संरक्षण प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भरता के संकल्प का उत्कृष्ट उदाहरण है।
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के पूर्व संध्या पर केन्द्रीय मंत्री ने अखिल भारतीय बाघ अनुमान रिपोर्ट 2018 जारी की। साथ हीं बाघों पर आधारित एक पोस्टर भी जारी की। अखिल भारतीय बाघ अनुमान रिपोर्ट 2018 को गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल कर लिया गया है। वर्तमान में विश्व के बाघों की संख्या का 70 प्रतिशत भारत में है।
गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड की वेबसाइट में कहा गया है कि 2018 – 2019में किया गया सर्वेक्षण का यह चक्र बहुत व्यापक था, इसमें एक सौ 41 भागों में 26 हजार आठ सौ 38 जगहों पर कैमरे लगाए गए थे और एक लाख 21 हजार 3 सौ 37 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का सर्वेक्षण किया गया। सेंट पीटर्सबर्ग चर्चा के समय भारत में लगभग 1411 बाघ थे जो कि अखिल भारतीय बाघ अनुमान 2014 के तीसरे चक्र के बाद दोगुना होकर 2226 हो गया है। अब बाघों की कुल संख्या देश में 2967 हो गयी है।
बाघों के संरक्षण में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की महत्वपूर्ण भूमिका है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है। इस निकाय की स्थापना वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के सक्षम प्रावधानों के तहत गठित किया गया है। 2006 में अधिनियम को संशोधित किया गया।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अंतर्गत अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करता है। बाघों की स्थिति, चल रहे संरक्षण की पहलों के मूल्यांकन के आधार पर सलाहकारों अथवा मानक दिशा-निर्देशों के माध्यम से देश में बाघ संरक्षण को मजबूत बनाने का कार्य करती है।
जिम कार्बेट नेशनल पार्क बाघों को समर्पित प्रथम और पुराना बाघ अभ्यारण्य है। इसकी स्थापना 1936 ई. मे की गई थी। इसका पूर्व नाम हैंली नेशनल पार्क है। अंग्रेज गवर्नर मॉलकम हैली के नाम पर पार्क का नाम रखा गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसका नाम रामगंगा नेशनल पार्क रखा गया। 1957 ईं में इसका वर्तमान नाम दिया गया।