दस्तक-विशेष

मजहब के नाम पर विषमता अधर्म है, अक्षम्य भी !!

के. विक्रम राव

स्तंभ: प्रत्येक दानायी और प्रगतिशील महिला दिल्ली जामा मस्जिद प्रबंधन द्वारा आज से (शुक्रवार, 25 नवंबर 2022) उस अवांछनीय निर्देश को निरस्त करने का दिल से स्वागत करेगी। दो सप्ताह पूर्व मस्जिद के प्रवेश फाटक पर लगाए इस बोर्ड में लिखा था : “जामा मस्जिद में लड़की या लड़कियों का अकेला दाखिला मना है।” प्रबंधन समिति के सदस्य हैं : इमाम अहमद बुखारी और मियां अमानुतल्ला खान जो सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के विधायक तथा वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष हैं। यह पाबंदी बड़ी दक्यानूसी सोच की है। (एक रोमन सम्राट 349 ईसवी में हुआ। उसका नाम था दक्यानूस। बड़ा पुरातनपंथी था। उसी के नाम से इस शब्द की उत्पत्ति हुई है।)

मगर मस्जिद के जनसंपर्क अधिकारी सबिउल्ला खान ने “इंडिया एक्सप्रेस” के रिपोर्टर से कहा कि : “अकेली लड़कियां पुरुष को वक्त देती थीं कि गलत काम करें।” वे मस्जिद के परिसर का अभिसार के लिए उपयोग करते हैं। वरना किसी भी किस्म की पाबंदी प्रवेश पर आयद नहीं है। मस्जिद केवल इबादत हेतु है। उनका कहना था कि अगर कोई “अपने बॉयफ्रेंड से मिलने आए तो यह मुनासिब नहीं होगा।” अधिकारी ने कहा कि उनके पास वीडियो है यह दिखाने के लिए मस्जिद को डेटिंग स्थल बना दिया। गुलाब पेश कर स्वाविक करने की अनुमति दी नहीं जा सकती। कई अकीतदमदों ने इस पर एतराज किया था। हालांकि भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की जकिया सुमन ऐसी मानसिकता की भर्सना की है। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल ने इमाम को नोटिस जारी कर दिया कि मस्जिद में प्रवेश पर प्रतिबंध नहीं थोपा जा सकता है।” राज्यपाल वीके सक्सेना ने भी इमाम से अनुरोध किया था कि नोटिस वापस ले लें। बुखारी ने मान लिया था।

मसला यही है कि एक पखवाड़े से ऐसा प्रतिबंध लगा है पर महिला अधिकारी की रक्षा में हजारों स्वयंसेवी संगठन (एन जी ओ) बने हैं। कोई भी सामूहिक विरोध नहीं हुआ। राजनीतिक दलों की महिला इकाईयों ने भी आवाज नहीं उठाई। यूं जानकार लोग बताते हैं कि इस्लाम में महिलाओं द्वारा नमाज हेतु मस्जिद जाना उनका मूलाधिकार है। वरिष्ठ पत्रकार श्रीमती नाहिद फरजाना ने उदाहरण दिया कि लखनऊ में अकबरी गेट वाली मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश हेतु अलग से प्रवेश मार्ग है। तीन वर्ष पूर्व सर्वोच्च न्यायालय में पुणे के एक दंपत्ति ने याचिका दर्ज की थी (15 अप्रैल 2019) यह मांग हुये करते कि उन्हें मस्जिद में दाखिले का हक मिले। कुरान अथवा पैगंबरे इस्लाम ने कोई रोक नहीं लगाई है महिलाओं पर। नर-नारी में कोई विषमता नहीं रखी है। कोट्टायम (केरल) में अप्रैल 2016 से पुरानी जामा मस्जिद में केवल एक महिलाओं को प्रवेश दिया गया। हालांकि महिलाओं को यहां नमाज पढ़ने की इजाजत अब भी नहीं है। वे यहां बस आ सकती हैं। लेकिन देश में महिलाओं को पूजा स्थलों पर प्रवेश देने की मांग के बीच इसे अहम माना जा रहा है। ताड़तांगाड़े (केरल) के हेरिटेज जोन का हिस्सा है। देश की सबसे पुरानी मस्जिदों में शुमार कोट्टयम जिले की यह मस्जिद अपने आर्किटेक्चर के लिए मशहूर है। यहां एक रविवार को प्रवेश के लिए केरल और दुनिया भर से हजारों मुस्लिम महिलाएं उमड़ पड़ीं। इस दौरान पुरुषों का प्रवेश बंद रहा। इस मस्जिद में महिलाओं को प्रवेश दिलाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता अरसे से अभियान चला रहे थे।

दिल्ली के जामा मस्जिद के सिलसिले में एक और खास विचारणीय बिंदु है। यह भारत की पुरानी ऐतिहासिक इमारत है। पर्यटकों के लिए भी आकर्षण है। इस पर तो रोक लग ही नहीं सकती। प्रवेश तो हर गैरमुस्लिम का भी अधिकार है। यह मस्जिद मजहबी कट्टरता और ऐतिहासिकता का साक्षी रहा। यही क्रूर और कट्टर मुगल बादशाह औरंगजेब आलमगीर ने अक्षम्य हरकत की थी। अपने बड़े भाई शिया मतावलम्बी दारा शिकोह को मार डाला था। बादशाह शाहजहां के उत्तराधिकारी (वली अहद) पादशाहजादा –ए- बुजुर्ग मुर्तजा, शहजादी जघन्य बेगम के अनुज, दारा को जामा मस्जिद के समीप है, तख्त हथियाने वाले औरंगजेब ने हाथी के पैरों तले कुचलवाया था। उनके सर को काटकर ताजमहल के पास कैद बादशाह शाहजहां के पास नाश्ते की तश्तरी में परोसकर सुबह पेश किया था। जामा मस्जिद को देखने आने वाले पर्यटक वह स्थल देखने भी आते हैं।

तो इस मुद्दे का निष्कर्ष यह है कि धर्म जोड़ता है, तो मजहब से विभाजन हो सकता है ? यह कतई गवारा नहीं हो सकता है। मजलूम और पसमन्दा के संदर्भ मे तो बिल्कुल ही नहीं। अल्लाह का घर तो कभी भी किसी भी उपासक के लिए बंद किया ही नहीं जा सकता। जामा मस्जिद पर पाबंदी का बोर्ड लगाने वालो ने आस्था के प्रति घोर हिंसा की है। इसका उनको और मिल्लत को जवाब देना होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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