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महंगाई अब ‘बड़ा मुद्दा’ नहीं, सरकार का ध्यान रोजगार सृजन, आर्थिक वृद्धि पर: निर्मला सीतारमण

नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने बुधवार को कहा कि महंगाई के रिकॉर्ड उच्चस्तर से नीचे आने के साथ यह मुद्दा अब बहुत महत्वपूर्ण नहीं रह गया है और अब सरकार के लिये प्राथमिकता रोजगार सृजन और आर्थिक वृद्धि को गति देना है। यहां ‘इंडिया आइडियाज’ शिखर सम्मेलन में वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि रोजगार सृजन और धन का समान वितरण वे अन्य क्षेत्र हैं जिन पर सरकार का ध्यान है।

उन्होंने कहा, ‘‘कुछ निश्चित प्राथमिकताएं हैं और कुछ उतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं। प्राथमिकताओं में निश्चित रूप से रोजगार सृजन, धन का समान वितरण के साथ यह सुनिश्चित करना है कि देश वृद्धि के रास्ते पर बढ़े।” सीतारमण ने कहा, ‘‘इस लिहाज से मुद्रास्फीति फिलहाल प्राथमिकता में नहीं है। आपको इस बात से हैरानी नहीं होनी चाहिए। बीते कुछ महीनों में हम इसे नीचे लाने में कामयाब रहे हैं।”

उल्लेखनीय है कि खुदरा मुद्रास्फीति इस साल अप्रैल में 7.79 प्रतिशत के उच्चस्तर पर पहुंच गयी थी। उसके बाद से इसमें गिरावट जारी है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई में खाद्य वस्तुओं के दाम में नरमी से मुद्रास्फीति कम होकर 6.71 प्रतिशत पर आ गई। हालांकि यह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के संतोषजनक स्तर की उच्च सीमा छह प्रतिशत से लगातार सातवें महीने ऊपर बनी हुई है। जून, 2022 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति 7.01 प्रतिशत थी।

रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति दो से छह प्रतिशत के बीच रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है। वित्त मंत्री ने भरोसा जताया कि अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व और यूरोपीय केंद्रीय बैंक के ब्याज दरों में तेज वृद्धि से उत्पन्न अस्थिरता से रिजर्व बैंक निपट लेगा। उन्होंने कहा, ‘‘सभी चुनौतियों के बावजूद … हमें विश्वास है कि दुनियाभर के केंद्रीय बैंक अपनी अर्थव्यवस्था की रक्षा के लिये जो कुछ भी कदम उठाएंगे …यूएस फेड या ईसीबी जो कदम उठा सकते हैं, आरबीआई को उसका अंदाजा है और वे बिना किसी बड़े उतार-चढ़ाव के मौद्रिक नीति को संभालने को लेकर आश्वस्त हैं।”

पिछले महीने फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पावेल ने मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिये आक्रामक रूप से नीतिगत दर बढ़ाने का संकेत दिया था। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण पैदा हुए वैश्विक ऊर्जा संकट का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की उपलब्धता को लेकर अनिश्चितता अब भी बनी हुई है। उन्होंने भुगतान प्रौद्योगिकी समेत हर क्षेत्र में भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने की जरूरत की बात कही।

सीतारमण ने कहा, ‘‘अगर भारत और अमेरिका साथ मिलकर काम करें, मेरा अनुमान है कि हम वैश्विक अर्थव्यवस्था के कुल आकार का 30 प्रतिशत हो जाएंगे और हम अगले 20 साल में हम वैश्विक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में 30 प्रतिशत का योगदान देंगे।” इस साल के अंत में भारत के जी-20 की अध्यक्षता संभालने के बारे में उन्होंने कहा कि भारत बहुत ही चुनौतीपूर्ण समय में यह जिम्मेदारी संभालेगा।

वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘यह उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर ध्यान केंद्रित करने और इन अर्थव्यवस्थाओं के माध्यम से वैश्विक चिंता के मुद्दों को संबोधित करने का सही समय है…।” भारत इस साल एक दिसंबर से 30 नवंबर, 2023 तक जी-20 की अध्यक्षता करेगा। देश अगले साल जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा।

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