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अथश्री मजदूर कथा: संवेदनशील सीएम के संवेदनहीन अफसर

योगी कर रहे ‘जागरूक कर रोकने के निर्देश’ जारी और सीमा में ‘घुसने पर प्रतिबन्ध’ लगा रहे ‘तिवारी’

मुख्यमंत्री का निर्देश, पुलिस जागरूक करे और रोके : मुख्य सचिव का आदेश, सीमा में किसी भी प्रवासी व्यक्ति को प्रवेश न करने दिया जाए

लखनऊ (अमरेन्द्र प्रताप सिंह): उत्तर प्रदेश के अंदर प्रवासी श्रमिकों और कामगारों के साथ कई दुर्घटनाएं घट चुकी हैं। इन मामलों में सड़क पर कई जाने भी गयी हैं और कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विपत्ति और मजबूरी में सड़कों पर जान दे रहे इन मजदूरों के प्रति पूरी संवेदना दिखाते हुए, इन्हे समझाने, जागरूक करने और रोकने के निर्देश दे रहे हैं। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री ने प्रदेश की सीमा में प्रवेश करते ही प्रवासी कामगारों और श्रमिकों को भोजन व पानी उपलब्ध कराये जाने के आदेश भी जारी किये हैं। इसी के साथ मुख्यमंत्री यह भी चाहते हैं कि अधिकारी ऐसी व्यवस्था करें कि राज्य के बाॅर्डर क्षेत्रों में कोई भी प्रवासी कामगार और श्रमिक पैदल अथवा बाइक या ट्रक आदि अवैध तथा असुरक्षित वाहनों से न आने पाए।

उपरोक्त सभी निर्देशों में मुख्यमंत्री की मजबूर, परेशान हाल, विपत्ति के मारे, थके हारे और भूखे प्यासे प्रवासी श्रमिकों के प्रति संवेदना सर्वोपरि है। वरना वे पुलिस को ‘जागरूक करके रोकने’, सीमा में प्रवेश करने पर ‘भोजन पानी की व्यवस्था करने’, और इन सब बातों के आगे बाॅर्डर क्षेत्र के प्रत्येक जनपद में जिलाधिकारी के निवर्तन पर 200 बस रखने के आदेश पहले ही निर्गत करने की बात न कहते। मुख्यमंत्री के निर्देशों के अनुसार प्रवासी कामगारों और श्रमिकों को बस से भेजने के लिए धनराशि भी स्वीकृत है।

मुख्य सचिव का ये कैसा आदेश ? “न घुसने दें, न सड़क पर चलने दें,

अब बात करें ऐसे संवेदनशील मुख्यमंत्री के संवेदनहीन अफसरों की, तो मुख्यमंत्री की उपरोक्त संवेदनशीलता के विपरीत प्रदेश की अफसरशाही के सर्वोच्च पद पर बैठे मुख्य सचिव को ही इससे कोई वास्ता नहीं है।

मुख्यमंत्री के ‘जागरूक करके रोकने, ‘सीमा में प्रवेश पर भोजन पानी देने, और बार्डर जनपदों पर बसों की व्यवस्था कर इन्हे घर पहुंचाने के निर्देशों के विपरीत उन्होंने सीधे “प्रदेश की सीमा में किसी भी प्रवासी व्यक्ति को प्रवेश न करने दिया जाए” जैसा आदेश दे दिया है। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा है कि “किसी भी प्रवासी को सड़क अथवा रेलवे लाइन पर न चलने दिया जाए”। बात जहां तक रेलवे लाइन की है, तो उस पर चलना गलत है और किसी को चलना भी नहीं चाहिए। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसे गलत माना है। परन्तु सड़क तो चलने के लिए ही बनी है, और यदि मनुष्य इस पर नहीं चलेगा तो क्या आसमान में उड़कर यात्रा करेगा।

सड़क पर चलने से रोकना मसले का हल नहीं

निश्चित रूप से मुख्य सचिव ने आफत के मारे, मजबूर-मजदूरों के प्रति अपने इन निर्मम और अति कठोर आदेशों से संवेदनहीनता दर्शायी है। प्रवासी श्रमिकों के पलायन की समस्या को बेहद गम्भीर और इंसानियत के नजरिये से देखे और संभाले जाने की जरूरत है।

‘किसी को प्रवेश न करने दिया जाए’ और ‘सड़क पर न चलने दिया जाए’ जैसे आदेशों से यह मसला संभलने वाला नहीं है। इस मसले को मुख्यमंत्री के संवेदनशीलता भरे निर्देशों के क्रम में ही हल किये जाने की जरूरत है। जिसमे उन्होंने “जागरूक करने, भोजन-पानी देने और बार्डर के हर जिले में मौजूद बसों से घर भिजवाने जैसी बात कही है।

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