एनबीआरआई में फार्मेकोग्नोसी पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन
लखनऊ: एनबीआरआई, सोसायटी ऑफ फार्मेकोग्नोसी (भारत) और भारतीय फार्माकोपिया आयोग (आईपीसी) गाजियाबाद, के सहयोग से आयोजित‘23वें नेशनल कन्वेंशन ऑफ सोसायटी ऑफ फार्माकोग्नोसी’ और “फार्मास्युटिकल ड्रग विकास में गुणवत्ता, सुरक्षा और जीएमपी के लिए नवयुगीन अवसर और चुनौतियां” विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का रविवार को समापन हुआ .
इस दो दिवसीय सम्मेलन में देश एवं विदेश के विशेषज्ञों ने विभिन्न फार्मेकोग्नोसी विषयों पर अपने विशेष व्याख्यान भी दिए. सम्मेलन के संयोजक डॉ. शरद श्रीवास्तव ने बताया कि छात्रों और शोधकर्ताओं ने अपने अपने सम्बंधित विषयों पर चार वर्गों (शोधार्थी एवं सोसाइटी सदस्य, एकेडेमिया, परास्नातक एवं स्नातक वर्ग) में लगभग 150 पोस्टरों द्वारा शोध कार्यों को प्रस्तुत किया. प्रत्येक वर्ग के श्रेष्ठ पोस्टर प्रस्तुति को बेस्ट पोस्टर अवार्ड मिला जिसमे शोधार्थी एवं सोसाइटी सदस्यवर्ग में सीडीआरआई के सलिल वार्ष्णेय, एकेडेमियावर्ग में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के डॉ. सुनील कुमार, परास्नातकवर्ग में कुमाऊ विश्वविध्यालय की पूजा घोष एवं स्नातक वर्ग में गणपति विश्वविद्यालय, मेहसाना के टीबी जीतेन्द्रभाई विजयी रहे.
सम्मेलन के दौरान वैज्ञानिक सत्रों में डॉ रश्मि शर्मा (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार) ने कहा कि युवा वैज्ञानिक देश के विकास की रीढ़ होते हैं. उन्होंने युवा वैज्ञानिकों को सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली आर्थिक अनुदान परियोजनाओं की जानाकरी दी जिनका लाभ उठाकर युवा वैज्ञानिक विभिन्न क्षेत्रों में अपना सहयोग प्रदान कर सकते हैं. उन्नत भारत मिशन, दिल्ली के राष्ट्रीय संयोजक डॉ विवेक कुमार ने विभिन्न वैज्ञानिक परियोजनाओं में समाज की सीधी भूमिका के चलते उन परियोजनाओं को अधिक सफलता मिलने के विषय में उदाहरणों के माध्यम से बताते हुए अन्य वैज्ञानिक परियोजनाओं में भी समाज की सीधी भूमिका सुनिश्चित करने पर बल दिया. डॉ लाल सिंह (निदेशक, हिमालयन रिसर्च ग्रुप, शिमला) ने बताया कि उनका संगठन पहाड़ों केदुर्गम एवं कठिन इलाकोंमें जीवन यापन करने वाले गरीब लोगों के लिए आवश्यकता आधारित प्रौद्योगिकी विकसित करने पर कार्य कर रहा है. उन्होंने बताया कि ऐसे समाज के लिए इस तरह की प्रौद्योगिकियां विकसित किये जाने की आवश्यकता है जिससे उनके जीवन में आने वाली रोजमर्रा की समस्याओं का निदान किया जा सके. उन्होंने कहा कि औषधीय पौधों की खेती से ऐसे लोगों का जीवन स्तर सुधार जा सकता है किन्तु हमें ऐसी फसलोंके प्रसंस्करण एवं औषधि निर्माण की सुविधाएं भी वहीं पर विकसित करनी होंगी ताकि इस तरह की खेती से होने वाले लाभ को और अधिक बढ़ाया जा सके एवं साथ ही सीधे किसानों को दिया जा सके. डॉ चन्द्र मोहन (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, नई दिल्ली) ने कहा कि हमारे ग्रामीण एवं आदिवासी समुदाय के पास अपार पारंपरिक ज्ञान उपलब्ध है जिसका पुरानेसमय में बाहरी देशों ने फायदा उठाया है और अपने नाम से प्रस्तुत किया है ऐसे में आज इस अमूल्य पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित किये जाने की बहुत आवश्यकता है.