नई दिल्ली : देसी फ्रिज कहा जाने वाले मटके की लोकप्रियता एसी और रेफ्रिजरेटर के दौर में कम होने लगी है। लेकिन गर्मी के दिनों में फ्रिज का ठंडा पानी पीने की बजाए मटके का पानी पीना ही बेहतर रहता है। आजकल लोग शरीर का पीएच लेवल मैंटेन करने के लिए अलग-अलग तरीके से एल्काइन वाटर को पीने लगे है। जबकि मटके की मिट्टी में मौजूद नेचुरल एल्काइन गुण पानी की अम्लता के साथ प्रभावित होकर, शरीर को उचित PH संतुलन देता है। शरीर का पीएच लेवल मैंटेन रहने से कई तरह की बीमारियां शरीर को छू पी नहीं पाती है।
घड़े का पानी पीने से सर्दी-जुकाम जैसी समस्या नहीं होती, जबकि फ्रिज का पानी पीने से इम्यूनिटी कमजोर होती है। घड़े की पानी की एक खासियत ये भी है कि मिट्टी के घड़े का पानी पीने से बार-बार प्यास नहीं लगती। घड़े का पानी पीने से टॉक्सिक पदार्थ बाहर निकलते हैं।
मटके के पानी का वर्ष पर्यंत पी सकते है। सिर्फ गर्मियों में ही नहीं, आप चाहें तो मटके का पानी सर्दियों में भी पी सकते हैं। इससे जुकाम और गला खराब होने जैसी दिक्कतें नहीं होती है।
पानी के घड़े को तीन महीने से ज्यादा इस्तेमाल में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि मिट्टी में मौजूद मिनरल तीन महीनें में खत्म हो जाते हैं। तीन महीने बाद नया घड़ा इस्तेमाल लाना चाहिए।
खरीदते वक्त इन बातों का रखें ध्यान
- घड़ा खरीदते वक्त ध्यान दें कि घड़ा चिकना नहीं होना चाहिए और उस पर किसी प्रकार की पॉलिश नहीं होनी चाहिए। चमक के लिए रंग या वार्निश का प्रयोग किया जाता है, जो सेहत के लिए नुकसानदायक होता है।
- घड़ा जितना खुरदुरा, उतना ही खरा माना जाता है।
- जब भी मटका खरीदने जाएं तो ध्यान दें कि वह पक्की मिट्टी से बना है या नहीं। क्योंकि कच्ची मिट्टी से बने घड़ों में पानी ठंडा नहीं रहता है। पके घड़े की परख के लिए खरीदते समय उसे हल्का-सा बजाकर देखें, जितनी ज्यादा आवाज करेगा वो उतना ही पक्का होगा।
- अगर मटका बजाते हुए उसमें से आवाज आए तो समझ लेना कि मटका टूटा-फूटा नहीं है।