
शारीरिक ही नहीं मानसिक रूप से भी पूर्ण स्वस्थ होना बहुत जरूरी
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) पर विशेष ‘सेवाओं तक पहुंच-आपदाओं और आपात स्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य’ थीम पर मनाया जा रहा दिवस
–मुकेश शर्मा
समाज या समुदाय में जब भी लोग स्वास्थ्य की बात करते हैं तो शारीरिक स्वास्थ्य पर तो खूब बात होती है लेकिन मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बात करना हम सभी भूल जाते हैं जबकि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य एक सिक्के के दो पहलू के समान हैं। सुडौल और आकर्षक काया की असली सुन्दरता तभी है जब व्यक्ति मानसिक रूप से भी पूर्ण स्वस्थ हो। मानसिक स्वास्थ्य के प्रति पूरी तरह से ध्यान देने के बारे में याद दिलाने के लिए ही हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इस साल इस खास दिवस की थीम है-“सेवाओं तक पहुँच-आपदाओं और आपात स्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य” । इस थीम का मूल मकसद हर किसी को भी किसी भी परिस्थिति में बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराई जाए यानि किसी भी विषम परिस्थिति में भी मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच में किसी तरह की बाधा न आने पाए।
एक प्रसिद्ध कहावत है कि-‘मन के हारे हार है-मन के जीते जीत’ यानि जिन्दगी की बड़ी से बड़ी जंग मानसिक भरोसे के बल पर ही जीती जा सकती है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि जीवन शैली को नियमित करने के साथ ही योग, ध्यान, प्राणायाम और शारीरिक श्रम को दिनचर्या में अवश्य शामिल किया जाए। नकारात्मक विचारों को तिलांजलि देकर सकारात्मक बनिए। रोजमर्रा के कामकाज की व्यस्ततता के बाद भी परिवार के लिए समय अवश्य निकालें । खाना परिवार के साथ बैठकर खाएं और कुछ अपनी कहो और कुछ उनकी सुनो नियम का पालन करें। विकसित और पूर्ण स्वस्थ भारत की परिकल्पना देश के हर व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होने के बल पर ही की जा सकती है।
चिकित्सकों का मानना है कि मानसिक अस्वस्थतता के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हो सकते हैं, जैसे- नींद कम आना, उलझन, घबराहट, हीन भावना से ग्रसित होना, जिन्दगी के प्रति नकारात्मक सोच का विकसित होना, एक ही विचार मन में बार-बार आना, एक ही कार्य को बार-बार करने की इच्छा होना, अनावश्यक डर लगना, शक होना, कानों में आवाज आना, मोबाइल और नशे की लत होना आदि। इस तरह के लक्षण नजर आने पर चिकित्सक से परामर्श जरूर लेना चाहिए ताकि समस्या को जल्दी से जल्दी दूर किया जा सके। इसको लेकर कोई भ्रम या भ्रान्ति मन में नहीं पालनी चाहिए। झाड़-फूंक आदि से बचना चाहिए। चिकित्सकों का स्पष्ट कहना है कि चिंता और तनाव से सिर दर्द, माइग्रेन, उच्च या निम्न ब्लड प्रेशर, ह्रदय से जुड़ी समस्याएं, मोटापा और चिडचिडापन की समस्या पैदा हो सकती है। इसके लिए जरूरी है कि तनाव व चिंता पैदा करने वाले कारणों से दूर रहें। सामाजिक भेदभाव के कारण भी मानसिक विकार को लोग छिपाते हैं और मनोचिकित्सक के पास जाने से कतराते हैं, जबकि अस्पतालों में मनोचिकित्सक की व्यवस्था के साथ ही बेहतर परामर्श के लिए मनकक्ष आदि की व्यवस्था सरकार द्वारा की गयी है।
मानसिक अस्वस्थता के लक्षण किसी खास आयु वर्ग में ही नहीं बल्कि किसी भी आयु वर्ग के लोगों में देखने को मिल सकते हैं। बच्चे पढ़ाई में अव्वल आने को लेकर तो युवा करियर, रोजगार व तरक्की को लेकर किसी न किसी तरह के मानसिक दबाव में हैं। कम से कम समय में सब कुछ हासिल करने की होड़ आज बड़ी तादाद में लोगों को मानसिक रूप से अस्वस्थ बना रही है। विभिन्न प्रतियोगी और प्रवेश परीक्षाओं में परिवार वालों के मनमुताबिक अंक न हासिल कर पाना बच्चों पर मानसिक दबाव और चिंता को और बढ़ाता है। वह असफलता को इस तरह से देखते हैं जैसे जीवन में सब कुछ ख़त्म हो गया । उनकी यही सोच मानसिक अस्वस्थता की ओर धकेलने का काम करती है। ऐसी स्थितियों में कुछ लोग नशे का सहारा लेना शुरू कर देते हैं जो कि उनकी मुश्किल को आसान बनाने की बजाय और बढ़ा देती हैं। ऐसे में परिवार की भी बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि वह बच्चे पर अनावश्यक दबाव बनाने के बजाय उनको उनके मनमुताबिक दिशा में आगे बढ़ने में सहयोगी की भूमिका निभाएं। उनको इतना जरूर बताएं कि क्या उनके लिए जोखिम भरा हो सकता है। इस तरह कहा जा सकता है कि महज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर ही इस गंभीर मुद्दे पर जागरूकता की जरूरत नहीं बल्कि हर रोज इस पर चर्चा की जरूरत है। यह हमें समाज के हर वर्ग के मानसिक स्वास्थ्य की सही देखभाल के लिए भी प्रोत्साहित करने में मददगार साबित हो सकता है।
(लेखक पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल इंडिया के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं)