शरद पूर्णिमा के दिन ही भगवान कृष्ण ने तोड़ा था ‘इस’ देवता का घमंड, इस दिन ‘इस’ मंत्र का करें पाठ, मिलेगी असीम कृपा
नई दिल्ली: सनातन धर्म में आश्विन मास की पूर्णिमा को ‘शरद पूर्णिमा’ (Sharad Purnima 2023) के रूप में मनाया जाता है। इस बार यह पूर्णिमा आज यानी 28 अक्टूबर शनिवार को है। शास्त्रों में इसे शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा, कौमुदी पूर्णिमा व रास पूर्णिमा कहा गया है।
ज्योतिषियों के अनुसार, आश्विन मास की इस पूर्णिमा को न सिर्फ चंद्र देवता और लक्ष्मी की पूजा के लिए ही नहीं बल्कि भगवान श्री कृष्ण की पूजा के लिए भी बहुत ज्यादा शुभ माना गया है। मान्यता के अनुसार, इसी शरद पूर्णिमा की रात को भगवान श्री कृष्ण ने रासलीला रचाई थी। कान्हा की इस लीला के पीछे के क्या कारण था और क्या है इसका धार्मिक महत्व, आइए जानें इस बारे में-
धार्मिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को भगवान श्री कृष्ण ने महारास लीला रचाई थी और कामदेव का घमंड तोड़ा था। पौराणिक मान्यता है कि, कामदेव को एक बार खुद की शक्तियों पर अत्यधिक घमंड हो गया कि वे किसी को भी काम के प्रति आसक्त कर सकते हैं। कामदेव में यह अभिमान तब आया, जब उन्होंने अपना कामबाण महादेव पर चलाकर माता पार्वती की ओर आकर्षित कराया था। अब उनके अभिमान की बात भगवान कृष्ण को पता चली तो उन्होंने कामदेव का घमंड तोड़ने के लिए वृंदावन में सभी गोपियों के साथ महारास लीला बुलाई।
शरद पूर्णिमा की रात को कान्हा ने कई रूप रखकर गोपियों के साथ में अलग-अलग नृत्य किया था। लेकिन, कामदेव की लाख कोशिश के बाद भी किसी भी गोपी के मन में वासना के भाव नहीं आए। इससे कामदेव का घमंड टूट गया। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात को ब्रह्म रात के बराबर कर दिया था। पौराणिक मान्यता है कि बह्म रात पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों की करोड़ों रात के बराबर होती है।
शास्त्रों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को भगवान श्रीकृष्ण की गोपियों संग विधि-विधान पूजा करना चाहिए और मंत्र जाप करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। शरद पूर्णिमा की रात को वैजयंती की माला से ‘श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री’ मंत्र का जाप करना चाहिए।