अन्तर्राष्ट्रीय

UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए जयशंकर ने उठाई आवाज, हमें शामिल किए बिना न हों हमारे बारे में फैसले

नई दिल्ली: भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए मजबूती के साथ आवाज उठाई है। उन्होंने भारत के अलावा अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका के देशों के हितों का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि इन देशों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जगह मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इन देशों के बारे में कोई भी फैसला उनकी सहभागिता के बिना नहीं होना चाहिए। हमें शामिल किए बिना हमारे बारे में कोई भी फैसला नहीं लिया जाना चाहिए।

उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि सुधारों की बात लगातार हो रही है, लेकिन इसका कोई लक्ष्य हासिल नहीं हो सका है। वास्तव में दुनिया बहुत तेजी से बदल गई है। हम इसे आर्थिक समृद्धि, तकनीकी क्षमता, राजनीतिक भाव और विकास के तौर पर देख सकते हैं। उन्होंने कोरोना काल का जिक्र करते हुए कहा कि इस दौरान कई देशों को वहां से टीका मिला, जहां से उन्हें उम्मीद नहीं थी। परंपरागत तौर पर उन्हें जहां से मदद मिलती रही है, वहां से कुछ नहीं मिला। उन्होंने कहा कि दुनिया में प्रोडक्शन का ढांचा पहले जैसा नहीं रहा है। इससे ही पता चलता है कि वर्ल्ड ऑर्डर किस तरह से बदला है। इस दौरान उन्होंने यूक्रेन युद्ध का जिक्र नहीं किया, लेकिन साफ कहा कि युद्धों के दौरान ग्लोबल गवर्नेंस की अहमियत बढ़ जाती है। जयशंकर ने कहा कि खाद्यान्न, फर्टिलाइजर और फ्यूल सिक्योरिटी के मामले में सभी की सुरक्षा पर बात करने की जरूरत है।

विदेश मंत्री ने कहा कि कई बार छोटे देशों की चिंताओं पर फोकस ही नहीं किया जाता। ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए। यही नहीं इस दौरान जयशंकर ने आतंकवाद के पोषक और उसका बचाव करने वाले देशों पर भी हमला बोला। उन्होंने पाकिस्तान और चीन का नाम नहीं लिया, लेकिन इशारा साफ था। विदेश मंत्री ने कहा कि आतंकवाद के मसले पर दुनिया एक साथ आ रही है और एकजुट होकर जवाब दे रही है। हालांकि बहुपक्षीय मंचों का कई बार बेजा इस्तेमाल भी हुआ है। उन्होंने कहा कि इन मंचों के जरिए कई बार आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों को बचाया गया है।

जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र के मंच पर छोटे देशों की भी आवाज सुने जाने की वकालत की। उन्होंने कहा, ‘हमें न सिर्फ सबकी हिस्सेदारी बढ़ाने की जरूरत है बल्कि वैश्विक संस्थाओं का प्रभाव भी बढ़ाना चाहिए ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरों में भरोसा कायम हो सके। यदि ऐसा होगा तो फिर लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के देशों को प्रतिनिधित्व मिलेगा और वह निर्णयों में भागीदार होंगे।’ उन्होंने कहा कि इन देशों के भविष्य के बारे में कोई भी फैसला उनकी सहभागिता के बिना नहीं हो सकता।

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