Jharkhand : जयराम महतो- सियासी खेल का नया टाइगर!

झारखंड की विधानसभा में नंगे पांव आने वाले लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा के मुखिया जयराम महतो झारखंड की सियासत में हमेशा चर्चा में रहने वाले शख्स हैं। अंग्रेजी के मशहूर लेखक मुल्कराज आनंद और केन्याई लेखक न्गुनी वा थ्योंगो’ओ पर पीएचडी कर रहे जयराम ने बीते विधानसभा चुनाव में झारखंड में अपनी ताकत का अहसास करा दिया। जयराम के सियासी पेच और उनके तेवरों पर वरिष्ठ पत्रकार उदय चौहान की रिपोर्ट।
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 नतीजों के बाद जिस नेता की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, वह हैं लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा यानी जेएलकेएम सुप्रीमो जयराम महतो जिन्हें अक्सर टाइगर कहा जाता है। डुमरी सीट से पहली बार विधानसभा सदस्य के रूप में चुने गए झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा के जयराम महतो नंगे पांव ही सदन पहुंचे। विधानसभा पहुंच कर उन्होंने सबसे पहले सदन की चौखट पर माथा टेका। नंगे पांव ही सदन पहुंचने के बारे में जयराम महतो ने कहा, ‘यह हमारी आस्था का केंद्र है और आस्था के केंद्र में जब भी कोई पहुंचता है तो नंगे पांव ही जाता है ना।’ फिर वे बोले- ‘सदन में हमारा अंदाज वही रहेगा, जिस अंदाज के लिए हम जाने जाते हैं।’
इसे आप जयराम महतो का नाटकीय सियासी अंदाज कह सकते हैं लेकिन झारखंड के सियासी आसमान में जिस तरह से नए राजनीतिक दल झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा का उदय हुआ, उसने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा है। एक ऐसा दल जिसने अपनी पहली ही पारी में झारखंड के कई सियासतदानों के होश उड़ा दिए। कइयों को अपनी सियासी ज़मीन खिसकती नजर आ रही है। इस दल की स्थापना जयराम महतो ने 2024 में की और बहुत ही कम समय में चुनावों में जिस प्रकार का प्रदर्शन किया है, वह ऐतिहासिक है। भाषा विवाद से उपजे इस दल ने वैसे तो लोकसभा चुनाव में ही कई सीटों पर अपना असर छोड़ दिया था और यह संदेश दे दिया था कि विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर होना तय है। ऐसा हुआ भी, कई सीटों पर परिणाम बिलकुल चौंकाने वाले आए। जनता ने एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर जयराम को भरपूर समर्थन दिया। भले ही चुनाव में जेएलकेएम का एक ही उम्मीदवार और वह भी सिर्फ जयराम महतो ही डुमरी विधानसभा चुनाव से जीत कर सदन में पहुंचे।
बीजेपी की हार वाले सवाल पर जयराम महतो ने कहा, ‘बीजेपी अपनी उदासीनता के कारण हारी है। वह अपनी दिल्ली की नीति के कारण ही झारखंड में हारी है।’ उनकी अब आगे की रणनीति क्या रहेगी, इस पर जयराम बोले, ‘यह तो उनका व्यवहार तय करेगा। हेमंत सोरेन सरकार में हैं, जिन विषयों को हम उठाएंगे, जिन विषयों को हम रखेंगे, अगर उस दिशा में काम होगा, उसमें कोई व्यवधान नहीं होगा, तो इस बारे में सोचा जाएगा। नहीं तो भविष्य के गर्भ में बहुत कुछ होता है।’ झारखंड विधानसभा चुनाव में जहां एनडीए और इंडिया गठबंधन के नेता रोजगार, महंगाई जैसे मुद्दों के साथ चुनाव लड़ रहे थे, वहीं झारखंड चुनाव में जयराम लोकल मुद्दों को उठाकर आदिवासियों के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाने में जुटे थे। जयराम आम आदमी के बीच जाकर सीधे लोगों से बात कर रहे थे और छोटी-छोटी सभाओं को संबोधित कर रहे थे। जयराम कुर्मी महतो हैं जो कि झारखंड के तीन प्रमुख महतो गुट में से एक है। इसके अलावा अन्य ग्रुप तेली और कोइरी हैं। कुर्मी महतो की आबादी झारखंड में करीब 15 प्रतिशत है, जबकि आदिवासी 26-27 प्रतिशत हैं।
खुद को झारखंडी बता जयराम ने बढ़ाई सियासी पैठ
जयराम महतो इस साल की शुरुआत में राजनीतिक परिदृश्य में उभरे। उन्होंने सभी मतभेदों को दरकिनार किया और खुद को ‘झारखंड का लड़का’ के तौर पर पेश किया। उनकी लोकप्रियता में एक बड़ा योगदान सोशल मीडिया पर उनके वीडियो का है, जहां उनके बहुत सारे फॉलोअर्स हैं। वीडियो में वे राजनीतिक जागरूकता के अलावा राजनेताओं द्वारा हासिल किए गए पैसे, लोगों की गरीबी और झारखंड में बाहरी लोगों को सरकारी नौकरी से जुड़े मामलों पर बात करते नज़र आते हैं। डुमरी निर्वाचन क्षेत्र से झामुमो की बेबी देवी को हराने वाले 29 वर्षीय जयराम महतो ने कहा, ‘सपने देखना चाहिए और युवाओं को बड़े सपने देखने चाहिए। विधायक बनने से मेरे साथ-साथ युवाओं के लिए भी रास्ते भी खुल गए हैं।’

71 सीटों पर लड़ी जेएलकेएम
अपने पहले विधानसभा चुनाव में जेएलकेएम ने झारखंड की 81 सीटों में से 71 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। जयराम डुमरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीत हासिल की। उल्लेखनीय है कि इसी सीट पर उन्होंने लोकसभा चुनाव में भी बढ़त हासिल की थी, ताकि राजनीतिक रूप से मजबूत हो सकें, क्योंकि इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों के उम्मीदवार बिहार के मूल निवासी थे।
भाषा को लेकर किया था पहला आंदोलन
जयराम महतो ने कई कार्यक्रमों में कहा है कि उनका बचपन भले ही कठिन रहा हो, लेकिन राजनीतिक चेतना उन्हें कॉलेज में ही मिली। तभी उन्हें झारखंड में अपने जैसे लोगों की बेबसी का एहसास हुआ। साल 2022 की शुरुआत में जब हेमंत सरकार ने झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाओं के माध्यम से जिला स्तरीय चयन प्रक्रिया में मगही, भोजपुरी और अंगिका को क्षेत्रीय भाषाओं के रूप में शामिल करने के लिए एक अधिसूचना जारी की, तो जयराम अपने संगठन झारखंडी भाषा संघर्ष समिति के माध्यम से, बोकारो, धनबाद, गिरिडीह और कोडरमा जिलों में ‘भाषा विरोध’ का चेहरा बन गए। राज्य सरकार के इस फैसले ने लोगों के एक वर्ग के बीच नाराजगी पैदा कर दी, खासकर बोकारो और धनबाद में।
2024 में किया था पार्टी का गठन
जयराम और अन्य लोगों ने भोजपुरी और मगही को शामिल करने को आदिवासियों और मूलवासियों के अधिकारों का उल्लंघन माना। विरोध प्रदर्शनों की सफलता यह रही कि जयराम को एक नेता के रूप में पहचान मिल गई। बाद में सरकार द्वारा अधिसूचना वापस लेने में उनकी अहम भूमिका रही। हालांकि यही लोकसभा चुनावों से पहले 2024 की शुरुआत में जेएलकेएम के गठन का कारण बनी। चुनाव के बाद अपने अनुभव पर जयराम का कहना है कि धुरविरोधी राजनेता और राजनीतिक पार्टी के सारे दल एकजुट होकर साम, दाम, दंड भेद लगा कर उन्हें रोकने के प्रयास में थे लेकिन जनता के लिए किये गये आंदोलन और ज्वलंत मुद्दों पर मुखर होने के कारण लोगों का विश्वास जीतने में मैं सफल रहा। सदन के अंदर उनकी भूमिका के बारे में पूछे जाने पर जयराम ने कहा कि छात्रों के मुद्दे, विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी व अपनी पार्टी के मुद्दों के साथ खड़े रहेंगे। राज्य की बेहतरी के लिए पॉलिसी रहेगी, तो समर्थन रहेगा, नहीं तो अकेले सदन में मुद्दों पर संघर्ष जारी रखेंगे।
वहीं, भविष्य की राजनीति पर अपने फैसले के बारे में जयराम कहते हैं कि पांच साल तक अकेले रहेंगे, बाद में परिस्थिति के अनुसार फैसला लिया जायेगा। सिद्धांत और सत्ता अलग विषय है। सिद्धांत से जनता का हीरो बन सकते हैं, लेकिन जनता के काम के लिए सत्ता जरूरी है। यह चुनाव सिद्धांत के साथ लड़ा गया है, लेकिन आज भी मैं सत्ता को महत्व नहीं देता। समय, पार्टी व जनता की मांग को देखते हुए जो निर्णय होगा, किया जायेगा। फिलहाल यह भविष्य के गर्भ में है। झारखंड में आने वाले समय में चुनावी रणनीति के विषय में जयराम महतो का कहना है कि चुनाव लड़ना और सत्ता-सुख हमारा लक्ष्य नहीं है। हम अपने सहपाठियों के साथ अधिकार की मांग को लेकर सड़क पर निकले हैं। संघर्ष, बलिदान, यातना व आंदोलन के बल पर यहां तक पहुंचे हैं। विरासत में जो आंदोलन मिला था, आज वह जनता के विश्वास के रूप में दिख रहा है।

युवाओं और महिलाओं के बीच पॉपुलर हैं जयराम महतो
जयराम महतो को युवाओं व महिलाओं का सबसे ज्यादा समर्थन मिला है। जिस प्रकार के मुद्दे उन्होंने उठाए, उसका अच्छा प्रभाव युवाओं पर पड़ा। उन्होंने कोयलांचल के इलाके में विस्थापन का मुद्दा उठाया। उनकी रैलियों में भारी संख्या में महिलाएं हिस्सा लेती हैं। राज्य सरकार को अक्सर एसएससी और जेपीएससी के मुद्दे पर घेरते रहे हैं। खासतौर पर युवाओं को विश्वास है कि वे झारखंड में बदलाव लाएंगे। इसके साथ ही वह जनमुद्दों पर भी आम लोगों के साथ खड़े दिखाई देते हैं। राजनेताओं में जयराम सबसे अलग हैं। वे अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर कर चुके हैं। वे वर्तमान में भारतीय लेखक मुल्कराज आनंद और केन्याई लेखक न्गुनी वा थ्योंगो के तुलनात्मक साहित्य पर ‘शोषण’ विषय पर पीएचडी कर रहे हैं। जयराम के राजनीतिक संदेश में भी शोषण या शोषण का भाव अंतर्निहित है। अपने अधिकांश भाषणों में वे हक (अधिकार) की बात करते हैं और बताते हैं कि झारखंड के लोगों को किस तरह से हक से वंचित रखा गया है। वे खास तौर पर कु़र्मियों की बात करते हैं, जिनकी जमीनों का खनन के लिए दोहन किया जा रहा है।
सुदेश पर भारी पड़े जयराम
आदिवासी बाहुल्य झारखंड की आबादी में करीब 15 फीसदी से अधिक कुर्मी जाति की भागीदारी है। आदिवासी के बाद इस सबसे प्रभावशाली जाति के वोट बैंक पर आजसू और सुदेश महतो का मजबूत प्रभाव था। आजसू के इस वोटबैंक से बीजेपी और एनडीए को बड़ी उम्मीद भी थी। यही वजह है कि एनडीए में सुदेश 81 सीटों वाले झारखंड में बार्गेन कर 10 सीटें लेने में सफल भी रहे थे। सुदेश के सामने कुर्मी पॉलिटिक्स की पिच पर जयराम महतो की चुनौती थी। कुर्मी समुदाय से आने वाले इन दो नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई में इस बार जयराम महतो भारी पड़े। सुदेश की आजसू को एक सीट पर जीत मिली। आजसू का वोट शेयर 3.54 फीसदी रहा। एक ही सीट पर जयराम की पार्टी भी जीती लेकिन वोट शेयर के लिहाज से जेएलकेएम, आजसू से कहीं आगे रही। जेएलकेएम को 6.12 फीसदी वोट मिले। जयराम महतो की पार्टी दो सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। कई सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों को जीत-हार के अंतर से अधिक वोट मिले। चर्चा तो इसे लेकर भी हो रही है कि झारखंड के चुनावी मैदान में अगर जयराम महतो नहीं होते तो चुनाव नतीजे कुछ और भी हो सकते थे।
जयराम ने बिगाड़ा सियासी समीकरण
जानकारों का मानना है कि जयराम के चुनावी मैदान में आने से सबसे ज्यादा नुकसान एनडीए का हुआ। दरअसल, जयराम जिस कुर्मी वोटबैंक की राजनीति करते हैं, उसे सुदेश महतो की पार्टी का कोर वोटर माना जाता था। सुदेश की पार्टी एनडीए में शामिल है और ऐसा माना जा रहा था कि भाजपा को उनके साथ गठबंधन का फायदा मिल सकता है। जयराम के चुनावी मैदान में आ जाने से एनडीए में कुर्मी वोटबैंक में सेंध लगी और इसका असर नतीजों पर भी पड़ा। उत्तरी और दक्षिणी छोटा नागपुर क्षेत्र में जहां एनडीए को अच्छी बढ़त का भरोसा था, वहां जेएलकेएम ने अपनी जोरदार चुनावी मौजूदगी दर्ज कराई। बेरमो सीट पर जेएलकेएम के जयराम दूसरे स्थान पर रहे और इस सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार पूर्व सांसद रवींद्र पांडेय को लड़ाई से ही बाहर कर दिया। गोमिया और चंदनकियारी सीट पर भी जेएलकेएम दूसरे नंबर पर रही। सिल्ली सीट पर सुदेश महतो का विजयरथ रोकने में भी जेएलकेएम की मौजूदगी का अहम रोल रहा।
वोटों की सेंधमारी
सिल्ली विधानसभा सीट से एनडीए की ओर से आजसू प्रमुख सुदेश महतो चुनाव मैदान में थे। सुदेश को इस सीट पर 49 हजार 302 वोट मिले और वह दूसरे स्थान पर रहे। जेएमएम उम्मीदवार अमित महतो ने सुदेश को 23 हजार 867 वोट के अंतर से हराया। इस सीट पर जेएलकेएम उम्मीदवार को 41 हजार 725 वोट मिले जो जीत-हार के अंतर से कहीं अधिक है।