जोशीमठ : जोशीमठ में उपजे संकट का असर अब आर्मी पर भी पड़ सकता है। दरअसल इसी रूट के जरिए सेना सामरिक ठिकाने और सीमांत इलाके मलारी और नीति पास तक पहुंचती थी। सड़कों के खरब हो जाने और दरारों के चलते अब इस रूट पर भारी वाहनों को ले जाना खतरे से खाली नहीं है। बदरीनाथ हाईवे पर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के साथ सेना के लिए वैकल्पिक मार्ग तलाशना चुनौती बन सकता है। इस सीजन जब बदरीनाथ धाम के कपाट खुलेंगे तो पर्यटकों को जोशीमठ से होकर ही जाना होगा, लेकिन इस रूट की हालत अब बहुत अच्छी नहीं है। यह मार्ग कई स्थानों पर भू-धंसाव की चपेट में है। रोड अधिक दबाव सहने की भी स्थिति में नहीं है। इतनी जल्दी वैकल्पिक रूट तैयार भी नहीं हो सकता।
हेलंग-मारवाड़ी बाईपास के लिए कहा जा रहा है कि यही एक रूट है जो अगर तैयार किया जाए तो जोशीमठ बाईपास करके पर्यटकों को बदरीनाथ और माणा पहुंचाया जा सकता है। इससे जोशीमठ का लोड काफी कम होगा। लेकिन, यह रूट सेना के दृष्टिकोण से उपयुक्त नहीं है। सूत्रों के मुताबिक, सेना मौजूदा रूट जोशीमठ से ही बॉर्डर एरिया तक जाना चाहती है। चूंकि, सेना की सीमांत पोस्ट मलारी, नीति पास जैसे बेहद महत्वपूर्ण रणनीतिक लोकेशन तक जोशीमठ होकर ही जाया जा सकता है। इसलिए जोशीमठ-मलारी मार्ग ऑलवेदर रोड से अलग भारतमाला प्रोजेक्ट का हिस्सा है। सेना चाहती है कि ऐसा वैकल्पिक रूट हो जो जोशीमठ के आसपास से होकर गुजरे। अब तक जोशीमठ से मलारी और नीति पोस्ट तक पहुंचने के लिए जिस रूट के इस्तेमाल किया जा रहा था, वो भी धंसाव की चपेट में है। ऐसे में आर्मी के लिए बेहद जरुरी है कि सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इलाकों में पहुंच के लिए नया रूट बनाया जाए।
वैज्ञानिक संस्थानों की रिपोर्ट को लेकर डे-बाई-डे इनपुट देहरादून स्थित सचिवालय में आपदा प्रबंधन विभाग को भेजा जा रहा है। यहां रोजाना वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के बाद फोन पर ही वैज्ञानिकों से इनपुट लिया जा रहा है। सरकार इस बात का इंतजार नहीं करना चाहती कि सभी वैज्ञानिक जब वापस लौटेंगे तभी रिपोर्ट तैयार होगी। जोशीमठ में भू-तकनीकी संस्थानों की इस समय सबसे अहम भूमिका है। यही टीम तय करेगी कि जमीन खिसकने से रोकने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है। कौन-कौन से घर बचाए जा सकते हैं। कहां पर किस तरह से रेट्रोफिटिंग की जरूरत पड़ेगी।