दस्तक-विशेष

जेपी जयंती विशेष: बक्सर में जन्मे जेपी सिर्फ सिताब दियारा के ही नहीं देश के “लोकनायक” बने

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

“जेपी आंदोलन के से देश में हलचल पैदा हुई और 1977 में हुए चुनाव में पहली बार लोगों ने कांग्रेस को सत्ता से दूर कर दिया. इन्दिरा गांधी का गुमान टूट गया. उम्मीद थी जेपी सत्ता की बागडोर संभालेंगे, पर फक्कड़ संत सत्ता लेकर क्या करता निकल पड़ा, भूदान आंदोलन पर. देश सेवा, मानव सेवा और कुछ नहीं.”“बा मुद्दत बा मुलाहिजा होशियार, अपने घरों के दरवाजे बंद कर लो, बंद कर लो सारी खिड़कियां, दुबक जाओ कोने में, क्योंकि एक अस्सी साल का बुढ़ा अपनी कांपती लड़खड़ाती आवाज में, डगमगाते कदमों के साथ हिटलरी सरकार के खिलाफ निकल पड़ा है सड़कों पर….”

धर्मवीर भारती की ये रचना ऐसे हीं नहीं याद आई. ये याद आई है उस मौके पर जिस पर याद करने के लिए इसे लिखा गया होगा. अस्सी के दशक में इसे तब लिखा गया जब इन्दिरा गांधी का हिटलरी गुमान देश को एक और गुलामी की ओर ले जा रहा था, और बुढ़े जेपी ने उसके खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंका था. जी हां आज उसी जेपी की जयंती है. बिहार आंदोलन वाला जेपी, संपूर्ण क्रांती वाला जेपी, सरकार की चुलें हिला देने वाला जेपी, पूरे देश को आंदोलित करने वाला जेपी और सत्ता को धूल चटाने वाला जेपी. जयप्रकाश नारायण. एक ऐसा नेता जिसने संपूर्ण आंदोलन की कल्पना की. संपूर्ण मतलब सामाजिक, राजनीतिक, बौद्धिक, और सांस्कृतिक आंदोलन.

जेपी का जन्मस्थली सिकरौल (बक्सर)

11 अक्टूबर 1902 को बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडल के सिकरौल लख पर जेपी का जन्म हुआ था. दरअसल उनके पिता हरसु लाल श्रीवास्तव यहां नहर विभाग में जिलदार के पद पर कार्यरत थे. इतना ही नहीं जेपी की प्रारंभिक शिक्षा भी यहीं से हुई थी. इनके पैतृक गांव के बारे में बताया जाता है कि जेपी के दो भाईयों की मौत प्लेग से हो गई थी, सो इनका पूरा परिवार सदमें रहा करता था. एक बार फिर से प्लेग फैल गया तो हरसु लाल अपनी पत्नी को सिकरौल लख जहां पोस्टेड थे लेकर चले आए, जहां एक बालक ने जन्म लिया नाम पड़ा जय प्रकाश नारायण, जो आगे चलकर जेपी के नाम से मशहूर हुआ. रही बात प्रारंभिक शिक्षा की तो अपने दो पुत्रों को खोने के भय से जेपी के माता-पिता अपने इस लाल को सुरक्षित रखने के लिए बहुत दिनों तक अपने गांव नहीं लौटे इसलिए इनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा भी सिकरौल लख के एक सरकारी स्कूल में हुई थी. मगर इस स्थान के बारे में किसी ने सरकारी स्तर पर पहल नहीं कि, जबकि स्थानीय लोगों को इस बात का मलाल जरूर रहता है कि इतनी बड़ी हस्ती जेपी के जन्मस्थली पर आखिर क्यों नज़र-ए-इनायत नहीं होती.

जेपी का पैतृक गांव सिताब दियारा (छपरा)

बिहार के छपरा जिले के सिताब दियारा जेपी का पैतृक गांव है. इस जगह पर इनकी स्मृतियों को सहेजने की पूरी कोशिश की गई है. लेकिन इनके जन्मस्थली को लेकर बिहार और यूपी के सिताब दियारा के बीच विवाद हमेशा से रहा है. हलांकि इन सभी से इतर अगर सही मायने में देखी जाए तो जेपी अपनी अलग कार्यशैली से हमेशा सुर्खियों में बने रहे. पहले छपरा आने-जाने में बहुत कठिनाई हुआ करती थी लेकिन अब छपरा का आवागमन सुगम हो गया है.

…जब चर्चित हुए जेपी

अक्टूबर 1920 में जेपी की शादी प्रभावती से हुई, विवाहोपरांत प्रभावती कस्तुरबा गांधी के साथ गांधी आश्रम में रहने लगी थीं. इसके बाद जेपी भी डॉ.राजेंद्र प्रसाद और अनुग्रह नारायण सिंह द्वारा स्थापित बिहार विद्यापीठ में शामिल हो गए. 1929 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम परवान पर था, उसी वक्त जेपी गांधी-नेहरु के संपर्क में आए. 1932 में गांधी-नेहरु के जेल जाने के बाद कमान को संभाल लिया, लेकिन उनको भी उसी वर्ष मद्रास से गिरफ्तार कर नासिक जेल भेज दिया गया. उस समय जेल में कई महत्वपूर्ण लोगों से इनकी मुलाकात हुई, इनकी चर्चाओं का ही नतीजा रहा कि कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी का जन्म हुआ.

जेपी की दूर दृष्टि सोच

राष्ट्रीय मुद्दों के साथ-साथ जेपी अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रीय मुद्दों की भी समझ थी. 1934 में चुनाव में कांग्रेस के हिस्सा लेने का विरोध किया. वहीं लोकनायक ने 1939 में दूसरे विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों का विरोध करते हुए 1943 में वे गिरफ्तार हुए. गांधी जी ने कहा जेपी छूटेंगे तभी फिरंगियों से कोई बात होगी. 1946 में वे रिहा हुए. 1960 में अब जेपी लोकनायक बन चुके थे. इन्दिरा गांधी की नीतियों की खुले आलोचना की और आंदोलन शुरु हो गया. अंग्रेजी हुकूमत की याद ताजा हो गई. अपने ही लाड़लों पर बर्बर लाठियां गिरने लगीं, गोलियों ने कइयों का सीना छलनी कर दिया. बुढ़े जेपी पीटे गए, जेल गए. देश जेपीमय हो गया. वो जिधर चले देश चल पड़ा. सन् 1975 में घबराई सरकार ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी.

जेपी आंदोलन यानि दूसरा आजादी के लिए आंदोलन

जेपी आंदोलन ने देश में पनपी अव्यवस्था के खिलाफ जनता का आक्रोश था. कांग्रेस सरकार के द्वारा देश में मोनोपोली, भ्रष्टाचार के कारनामे से लोग त्रस्त थे. जेपी ने लोगों की मानसिकता को समझा और उनकी आवाज को आंदोलन के रुप में परिवर्तित किया. कांग्रेस को पीछे धकेलने में यह आंदोलन काफी अहम साबित हुआ था. इसके बाद समाजवादी, गांधीवादी, जनसंघी और कम्युनिस्टों सहित विपक्षी दलों की आस जाग उठी कि वो भी केंद्रीय राजनीति का हिस्सा बनकर सरकार बना सकते हैं. आगे चलकर जेपी का आंदोलन, जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का देशव्यापी आधार बनकर उभरा. जयप्रकाश नारायण पर यही आरोप भी है कि उन्होंने 1974 के आंदोलन से माध्यम से आरएसएस और जनसंघ को मुख्यधारा की राजनीति में वैधता दिलवाई और आज अगर देश पर हिंदूवाद का खतरा है तो उसकी जड़ में 1974 का वह आंदोलन और 1977 की सरकार में उनके नेताओं की भागीदारी है. जेपी आंदोलन से उपजे नेताओं ने बीसवीं सदी के अंतिम दशक में नेतृत्व के लिए आगे आए. समाजवादी विचारधारा को केंद्र में रखकर देश में व्यवस्था परिवर्तन के लिए शुरु की गई राजनीति बाद में जातीय और व्यक्तिगत राजनीति के दोषों को स्वीकार कर ली. जिस कांग्रेसी सत्ता के दोषों का विरोध करते हुए जेपी के अनुयायियों ने राजनीति शुरु की थी सत्ता सुख के लिए कांग्रेसी मिजाज के साथ साझा राजनीति करने लगी. वही आरएसएस से उपजी भारतीय जनता पार्टी ने जेपी की विचारधारा को कितना अपनाया यह भविष्य में पता चलेगा लेकिन उसने कांग्रेसी के सत्ता मिजाज और जेपी के सत्तालोभी अनुयायियों को परास्त कर देश की राजनीति को अपने हाथों में लिय़ा है.

जयप्रकाश जी रखो भरोसा टूटे सपनों को जोड़ेंगे, चिताभष्म की चिनगारी से अंधकार के गढ़ तोड़ेंगे

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