धनबाद: विश्व दिव्यांग दिवस पर गुरुवार को धनबाद के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने पांच वर्ष से गायब पुत्र को उसके बूढ़े पिता को सौंप उस बूढ़े बाप को एक नई जिंदगी और बुढ़ापे का सहारा दिया।
दरअसल, भूली रंगूनी बस्ती निवासी अमृत दास का पुत्र सुरेश दास मानसिक रूप से दिव्यांग था। अमृत दास की बेटी भी बीमार थी। पांच वर्ष पूर्व अमृत अपनी बीमार पुत्री का इलाज कराने रांची गया हुआ था। इसी बीच दिव्यांग सुरेश घर से बाहर चला गया।
माता-पिता दिव्यांग को ढूंढते-ढूंढते थक गए थे, परंतु वह नहीं मिला। थक हारकर उन्होंने जिला विधिक सेवा प्राधिकार से अपने पुत्र को ढूंढने में मदद करने की विनती की।
प्राधिकार के चेयरमैन सह प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश बसंत कुमार गोस्वामी के निर्देश पर अवर न्यायाधीश सह सचिव डालसा अरविंद कच्छप ने दिव्यांग सुरेश को ढूंढने के लिए विधि स्वयं सेवकों की एक टास्क टीम का गठन किया।
छत्तीसगढ़ विधिक सेवा प्राधिकार एवं बिलासपुर प्रशासन के सहयोग से दिव्यांग सुरेश को बिलासपुर से रेस्क्यू किया गया। स्थानीय लोगों ने सुरेश को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया था। स्थानीय प्रशासन के सहयोग से दिव्यांग को कांस्टेबल सुशील सिंह राजपूत छत्तीसगढ़ से गुरुवार की सुबह धनबाद लेकर आए।
सिविल कोर्ट धनबाद में प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश बसंत कुमार गोस्वामी ने दिव्यांग सुरेश को उसके पिता के हवाले किया और उसके इलाज के पूरी मुकम्मल व्यवस्था का आदेश जिला प्रशासन को दिया।
अपने पुत्र को पाकर अमृत दास के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह अपने गुमशुदा बेटे को गले लगा कर रोने लगे और न्यायधीश को शुक्रिया कहा कि आज न्यायालय नहीं होता तो मैं अपने पुत्र को सही सलामत नहीं पाता।
इस मौके पर प्रधान न्यायाधीश गोस्वामी ने कहा कि समाज सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। जिला विधिक सेवा प्राधिकार समाज के हर तबके के लोगों को हर प्रकार की कानूनी सहायता देने के लिए प्रतिबद्ध है।
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम ‘उम्मीद’ के तहत इस दिव्यांग को रेस्क्यू किया गया है। विश्व दिव्यांग दिवस पर एक वृद्ध पिता को डालसा के सहयोग से उसका पुत्र मिल गया, यह हम लोगों के लिए भी खुशी की बात है। उन्होंने बताया कि इसके पूर्व भी वर्ष 2012 में उन्होंने झारखंड से गायब 19 बच्चों को केरल से रेस्क्यू कराया था और उसके परिजनों को सौंपा था।
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