‘न्याय केवल कानूनों तक सीमित नहीं’, पूर्व CJI बालाकृष्णन बोले- मानवता और करुणा ही सच्ची अभिव्यक्ति

नई दिल्ली : पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने कहा है कि न्याय कोई अमूर्त अवधारणा नहीं, जो केवल कानूनों या अदालतों तक सीमित हो, बल्कि यह एक जीवित सिद्धांत है, जो समानता, निष्पक्षता और प्रत्येक व्यक्ति के सम्मान में झलकता है। उन्होंने कहा कि न्याय की सच्ची भावना समाज में समान व्यवहार और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने से प्रकट होती है। बालाकृष्णन बुधवार को इंटरनेशनल ज्यूरिस्ट्स पीस प्राइज 2025 प्रदान किए जाने के अवसर पर बोल रहे थे। यह पुरस्कार कैथोलिक चर्च के प्रमुख पोप लियो XIV को शांति, अंतरधार्मिक सद्भाव और मानव गरिमा को बढ़ावा देने में उनके योगदान के लिए दिया गया। यह सम्मान नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में प्रदान किया गया, जिसमें न्याय, मानवाधिकार और धर्म के क्षेत्र से जुड़ी कई हस्तियां मौजूद थीं।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्याय केवल अदालतों या विधानों में नहीं रहता, बल्कि यह हर उस कार्य में प्रकट होता है जहां इंसानियत, करुणा और समानता की भावना होती है। उन्होंने कहा कि न्याय एक जीवित सिद्धांत है जो समानता, निष्पक्षता और हर व्यक्ति के प्रति सम्मान के रूप में व्यक्त होता है। न्याय व्यवस्था का उद्देश्य केवल विवाद सुलझाना नहीं बल्कि समाज में संतुलन, शांति और गरिमा की रक्षा करना है। उन्होंने आगे कहा कि पोप लियो XIV ने अपने जीवन में इस सिद्धांत को कर्म के रूप में जिया है। उनकी अपीलें हिंसा और भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में रही हैं। उन्होंने दया, क्षमा और उपेक्षित वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए जो कार्य किए हैं, उनसे दुनियाभर के लोग प्रेरित हुए हैं।



