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कन्या पूजन से होता है समस्त दोषों का नाश

हिंदू धर्म में छोटी बच्चियों को देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है। दुर्गा अष्टमी व महा नवमी पर उनकी पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार भगवान से प्रार्थना करने की तुलना में कन्याओं से करने पर शीघ्र मनोकामनाएं पूर्ण होती है। पूरे संसार में बच्चों को सबसे शुद्ध रूप माना गया है। इस लिए शुद्ध आत्मा के रूप में कन्या पूजा की जाती हैं। वैसे भी आदि शक्ति सर्वव्यापी है। वह हमारे अंदर ही वास करती है। कहते हैं हर स्त्री उस शक्ति का प्रतीक है और सफलता की ऊंचाइयां छू रही महिलाओं ने भी इस शक्ति को कभी न कभी अपने आसपास महसूस किया है। इससे प्रेरणा ली है और अपनी आस्था पर विश्वास रखकर बढ़ गई हैं अपने जीवन के पथ पर आगे, और आगे…।

सुरेश गांधी

नवरात्रि संसार को संचालित करने वाली आद्याशक्ति की आराधना का पर्व है। वह सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी हैं। चूंकि नवरात्रि इन्हीं जगतजननी को समर्पित है और भारतीय संस्कृति में कुमारियों को मां का साक्षात स्वरूप माना गया है, इसीलिए कन्या पूजन के बिना नवरात्रि व्रत को पूर्ण नहीं माना जाता। कन्या पूजन नवमी के दिन किया जाता है। हालांकि बहुत लोग कन्या का पूजन अष्टमी को भी करते हैं। कन्या पूजन से मां बहुत प्रसन्न होती हैं और मनोकामनाएं पूरी करती हैं। देवी पुराण में कहा गया है कि मां को जितनी प्रसन्नता कन्या भोज से मिलती है, उनको उतनी हवन और दान से भी नहीं मिलती। ज्योतिष में भी कन्या पूजन को बहुत फलदायी माना गया है। मतलब साफ है मां दुर्गा की आराधना सही मायने में प्रकृति या नारी के सभी गुणों की ही आराधना है। कन्या पूजन इसका एक उत्तम माध्यम है। मान्यताओं के अनुसार हर औरत में मां दुर्गा का वास होता है, साथ ही स्त्रियों और छोटी कन्याओं को सम्मान देने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं। ज्योतिषियों की मानें तो कन्या पूजन से समस्त दोषों का नाश होता है।

प्रत्येक पूजा पद्धति में एक शब्द ‘प्रतिगृह्यताम’ आता है, जिसका संबंध मनुष्य की अपेक्षा से है। मनुष्य ईश्वर से निवेदन करता है कि प्रभु मैं आपको एक निश्चित वस्तु अर्पित कर रहा हूं, उसके बदले आप मुझे मेरा मनचाहा प्रदान करें। इसी तरह नवरात्र में एक विशेष दिन शास्त्रों में कन्या के विभिन्न रूपों को भोग अर्पित करने का है। इस कर्म से साधक की सभी इच्छाएं पूरी होती है। यही वजह है कि नवरात्र में जितना दुर्गा पूजन का महत्व है, उतना ही कन्या पूजन का भी महत्व है। शास्त्रों में भी कन्या पूजन को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और शुभ माना गया है। मान्यता है कि दो वर्ष से दस वर्ष की आयु की विधि-विधान से पूजन कर नौ कन्याओं को भोजन कराने से समस्त दोषों का नाश होता है। अर्थात जो साधक अष्ठमी या नवमी को कन्या भोज कराता है उसकी न केवल पुण्य फल बल्कि माता का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यही वजह है कि नवरात्र के नौ दिनों तक मां दुर्गा के पूजन-वंदन व्रत की समाप्ति कन्या पूजन के साथ की जाती है। मान्यता है कि होम, जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होतीं, जितनी कन्या पूजन से। ऐसा कहा जाता है कि विधिवत, सम्मानपूर्वक कन्या पूजन से व्यक्ति के हृदय से भय दूर हो जाता है। साथ ही उसके मार्ग में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। उस पर मां की कृपा से कोई संकट नहीं आता। मां दुर्गा उस पर अपनी कृपा बरसाती हैं। शास्त्रों के अनुसार छोटी कन्याओं की पूजा करने से जातकों को उनकी पूजा का वास्तविक फल मिलता है। खासतौर पर नवरात्रि में नौ दिन व्रत रखने वालों को कन्याओं की पूजा करना चाहिए।

कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 2 अप्रैल से हुई थी और 10 अप्रैल को इसकी समाप्ति होगी। नवरात्रि में अष्टमी-नवमी का खास महत्व होता है। अष्टमी के दिन महागौरी और नवमी के दिन सिद्धिदात्री मां का पूजन किया जाता है। अष्टमी 9 अप्रैल को जबकि नवमी 10 अप्रैल को मनाई जाएगी। अष्टमी और नवमी दोनों दिन कन्या पूजन करना विशेष फलदायी माना जाता है। इसमें 2 से 11 साल की बच्चियों की पूजा की जाती है। माना जाता है कि अलग-अलग रूप की कन्याएं देवी के अलग-अलग स्वरूप को दर्शाती हैं। अष्टमी तिथि 09 अप्रैल शनिवार के दिन है। इसे दुर्गा अष्टमी भी कहते हैं। अष्टमी की शुरुआत 8 अप्रैल को रात 11 बजकर 05 मिनट से हो रही है। इसका समापन 9 अप्रैल की देर रात 1 बजकर 23 मिनट पर होगा। दिन का शुभ मुहूर्त 11 बजकर 58 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 06ः02 बजे तक है और सुकर्मा योग दिन में 11ः25 बजे से लग रहा है. दिन का शुभ मुहूर्त 11ः58 बजे लेकर दोपहर 12ः48 बजे तक है. आप इन शुभ समय में कन्या पूजन कर सकते हैं. कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं। नवमी तिथि 10 अप्रैल की रात्रि 1 बजकर 23 मिनट से शुरू हो रही है जो 11 अप्रैल सुबह 3 बजकर 15 मिनट पर समाप्त होगी। इस दिन रवि पुष्य योग, रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन है. इसलिए इस दिन सुबह से ही कन्या पूजन कर सकते हैं।

रखें इन बातों का ध्यान
इन दोनों दिन सूर्योदय से पहले उठें। अगर आप व्रत नहीं भी है तो भी उठकर स्नान करें और पूजा जरूर करें। पूजा के लिए साफ कपड़े पहनें। इस दिन शुभ मुहूर्त में ही पूजा करने का प्रयास करें। मुहूर्त बीतने के बाद पूजा का महत्व नहीं रह जाता है। संधि काल का समय दुर्गा पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है। संधि काल के समय 108 दीपक जलाए जाते हैं। अष्टमी के दिन संधि काल में ही दीपक जलाना शुभ माना जाता है। संधि काल का ध्यान रखें। हवन के बिना नवरात्रि की पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए इन दोनों में से किसी एक दिन हवन जरूर करें। अगर आपने नवरात्रि के पूरे व्रत रखे हैं तो आखिरी दिन किसी भी तरह की हड़बड़ी ना दिखाएं। कई लोग अष्टमी की रात 12 बजते ही व्रत पारण करना गलत माना जाता है। नवमी के दिन सुबह पूरे विधि-विधान के साथ ही व्रत खत्म करें. इस दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करनेके बाद पूरे विधि से हवन करें और कन्याओं को भोजन कराने के बाद ही इसका समापन करें। अष्टमी के दिन तुलसी जी के पास नौ दिये जलाकर और उनकी परिक्रमा करने से घर-परिवार में सुख समृद्धि आती है।

कन्या पूजन विधि
शास्त्रों के मुताबिक कन्याओं को एक दिन पूर्व ही उनके घर जाकर निमंत्रण दें। गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नामों के जयकारे लगाएं। अब इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छजगह बिठाएं। सभी के पैरों को दूध से भरे थाल में रखकर अपने हाथों से उनके पैर स्वच्छ पानी से धोएं। कन्याओं के माथे पर अक्षत, फूल या कुमकुम लगाएं फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं। भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामथर््य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पैर छूकर आशीष लें इस दिन हलवा, चना और पूड़ी बनाते हैं. मां दुर्गा स्वरूप कन्याओं को भोजन कराने के बाद दक्षिणा दें और खुशी खुशी उनको विदा करें, ताकि अगले साल फिर आपके घर मातारानी का आगमन हो।

राम नवमी
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को राम नवमी कहते हैं। नवमी तिथि का प्रारंभ 10 अप्रैल को 01ः23 एएम से हो रहा है, जो 11 अप्रैल को प्रातः 03ः15 बजे तक है। इस दिन सुकर्मा योग दोपहर 12ः04 बजे तक है। इस दिन रवि पुष्य योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग पूरे दिन है. इस दिन आप सुबह से ही कन्या पूजन कर सकते हैं। इस दिन का शुभ समय दिन में 11ः57 बजे से दोपहर 12ः48 बजे तक है।

ज्योतिषाचार्यो की सलाह
अगर बुध ग्रह आपकी कुंडली में बुरा फल दे रहा है, तो आपको कन्या पूजन करना चाहिए। वृष, मिथुन, कन्या, मकर और कुंभ बुध की मित्र राशियां हैं, इसलिए इन राशियों के जातकों को कन्या पूजन का विशेष लाभ मिलता है। शास्त्रों अनुसार, दो से दस वर्ष की कन्याओं का पूजन करना चाहिए। नौ कन्याओं का पूजन सर्वोत्तम माना गया है। धर्मज्ञों का कहना है कि संख्या के अनुसार कन्या पूजन का फल मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कन्या पूजन में 9 कन्याओं का पूजन किया जाता है। हर कन्या का अलग और विशेष महत्व होता है। एक कन्या की पूजा करने से ऐश्वर्य, दो कन्याओं से भोग व मोक्ष दोनों, तीन कन्याओं के पूजन से धर्म, अर्थ व काम तथा चार कन्याओं के पूजन से राजपद मिलता है। पांच कन्याओं की पूजा करने से विद्या, छह कन्याओं की पूजा से छह प्रकार की सिद्धियां, सात कन्याओं से सौभाग्य, आठ कन्याओं के पूजन से सुख- संपदा प्राप्त होती है। नौ कन्याओं की पूजा करने करने से संसार में प्रभुत्व बढ़ता है।

उम्र के अनुसार कन्याओं का देवी स्वरूप
श्रीमद्देवीभागवत महापुराण के तृतीय स्कंध के अनुसार दो वर्ष की कन्या को कुमारी कहते हैं। तीन साल की कन्या को त्रिमूर्ति कहा जाता है। चार साल की कन्या को कल्याणी कहलाती है। पांच साल की कन्या रोहिणी, छः साल की कन्या कालिका कहलाती है। सात साल की कन्या को चण्डिका, आठ साल की कन्या को शांभवी कहा जाता है। नौ साल की कन्या को दुर्गा का स्वरूप मानते हैं। दस साल की कन्या को सुभद्रा नाम दिया गया है।

कन्या पूजन का महत्व
धर्म ग्रंथों के अनुसार, कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है। एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छः की पूजा से छ प्रकार की सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की पूजा से संपदा और नौ की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है। मान्यता यह भी है कि पहले दिन एक कन्या और इस तरह बढ़ते क्रम में नवें दिन नौ कन्याओं को नौ रात्रि के नौ दिनों में भोजन करवाने से मां आदि शक्ति की कृपा प्राप्त होती है।

कन्या के विभिन्न रूप
कन्या भोजन में दो से लेकर दस वर्ष की कन्याओं को भोजन कराना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। दो वर्ष की कन्या को कौमारी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इनके पूजन से दुख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है। त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है। चार वर्ष की कन्या कल्याणी नाम से संबोधित की जाती है। कल्याणी की पूजा से सुख-समृद्धि मिलती है। पांच वर्ष की कन्या ‘रोहिणी‘ कही जाती है। रोहिणी के पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है। छह वर्ष की कन्या को ‘कालिका‘ कहा जाता है। कालिका की अर्चना से विद्या और राजयोग की प्राप्ति होती है। सात वर्ष की कन्या को ‘चण्डिका‘ कहा जाता है। चण्डिका की पूजा-अर्चना और भोजन कराने से ऐश्वर्य मिलता है। आठ वर्ष की कन्या को ‘शाम्भवी‘ कहा जाता है।

शाम्भवी की पूजा-अर्चना से लोकप्रियता प्राप्त होती है। नौ वर्ष की कन्या ‘दुर्गा‘ की अर्चना से शत्रु पर विजय मिलती है। तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं। दस वर्ष की कन्या ‘सुभद्रा‘ कही जाती है। जिनके पूजन से मनोरथ पूर्ण होते हैं और सुख मिलता है। इन नौ कन्याओं के अलावा इनके साथ एक बालक को भी बैठाने का प्राविधान है। यदि आप सामर्थ्यवान हैं, तो नौ से ज्यादा या नौ के गुणात्मक क्रम में भी जैसे 18, 27 या 36 कन्याओं को भी आमंत्रित कर सकते हैं। यदि कन्या के भाई की उम्र 10 साल से कम है तो उसे भी आप कन्या के साथ आमंत्रित कर सकते हैं। यदि गरीब परिवार की कन्याओं को आमंत्रित कर उनका सम्मान करेंगे, तो इस शक्ति पूजा का महत्व और भी बढ़ जाएगा। यदि सामर्थ्यवान हैं, तो किसी भी निर्धन कन्या की शिक्षा और स्वास्थ्य की यथायोग्य जिम्मेदारी वहन करने का संकल्प लें। कन्या पूजन के समय पूरे परिवार को एकत्र रहना चाहिए।

सही अर्थो में हो सम्मान
कन्याओं को देवी का रूप माना गया है। पर मां आदिशक्ति की सच्ची आराधना सिर्फ नवरात्र में कन्या पूजन मात्र से संभव नहीं है। हमें असल जिंदगी में भी कन्याओं को उतना ही सम्मान देना सीखना होगा। तभी सही अर्थो में मां आदिशक्ति की पूजा-अर्चना का फल हमें मिल पाएगा और मां सही मायने में प्रसन्न होंगी। अर्थात कन्याओं और महिलाओं के प्रति हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी। देवी तुल्य कन्याओं का सम्मान करें। इनका आदर करना ईश्वर की पूजा करने जितना पुण्य देता है। शास्त्रों में भी लिखा है कि जिस घर में औरत का सम्मान किया जाता है वहां भगवान खुद वास करते हैं।

प्रकृति का रुप है नारी
नारी को प्रकृति भी माना गया है, क्योंकि नारी का स्वरूप ठीक प्रकृति जैसा ही है। प्रकृति अपने वात्सल्य से कभी किसी को वंचित नहीं करती। प्रकृति जननी है, प्रकृति में अपार धैर्य है, किसी भी कष्ट को बिना किसी विरोध के सह लेने की अदम्य क्षमता है उसमें। अब यदि प्रकृति के इन गुणों का महिलाओं की खासियत से तुलना की जाए, तो आप पाएंगी कि प्रकृति के सारे गुण नारी के भीतर भी समाहित हैं। ये गुण ही नारी की असली शक्ति हैं। इन्हीं गुणों को पहचानकर और उसका सही क्षेत्र में इस्तेमाल करने से ही महिलाएं घर हो या बाहर, हर जगह अपनी उपस्थिति और सफलता दर्ज करवा रही हैं।

संकल्प लेने का है नवरात्र
नवरात्रि के नौ दिन इस ब्रह्मांड में आनंदित रहने का एक अवसर है। ब्रह्मांड तीन मौलिक गुणों सत, रज और तम से बना है। हमारा जीवन भी इन्हीं गुणों से संचालित है। कहीं न कहीं हमारे जीवन में इनका समावेश है। अगर देखें तो नवरात्रि के पहले तीन दिन तमोगुण के लिए हैं। दूसरे तीन दिन रजो गुण के और आखिरी तीन दिन सत्व गुण के लिए हैं। हमारी चेतना इन तमोगुण और रजोगुण के बीच बहती हुई सतोगुण के आखिरी तीन दिन में खिल उठती है। नवरात्र की यह यात्रा हमारे बुरे कर्मों को खत्म करने के लिए है। यही वह उत्सव है, जिसके द्वारा महिषासुर(जड़ता) शुंभ-निशुंभ ( गर्व और शर्म) और मधु कैटभ (अत्यधिक राग द्वेष) को नष्ट किया जा सकता है। वे एक दूसरे के पूर्णतः विपरीत है। फिर भी एक एक दूसरे के पूरक हैं। जड़ता, नकारात्मकता और मनोविकृतियां रक्तबीजासुर की तरह है। कुतर्क वितर्क और धुंधली दृष्टि को केवल प्राण और जीवन शक्ति ऊर्जा के स्तर को ऊपर उठाकर ही दूर किया जा सकता है। नवरात्रि इसके लिए अवसर देता है। आपके अंदर ऊर्जा का संचार करता है। इस स्थूल संसार के भीतर ही सूक्ष्म संसार समाया हुआ है। लेकिन उनके बीच अलगाव की भावना महसूस होना ही द्वंद का कारण है। एक ज्ञानी के लिए पूरी सृष्टि जीवंत है। देवी मां या शुद्ध चेतना ही सब नाम और रूप में व्याप्त है। हर नाम और हर रूप में एक ही देवत्व को जानना ही नवरात्रि है।

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