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केसीआर समय से पहले करा सकते हैं तेलंगाना में चुनाव, भाजपा ने भी बदली अपनी रणनीति

नई दिल्ली : भाजपा मिशन दक्षिण के अगले लक्ष्य तेलंगाना के लिए व्यापक रणनीति पर तेजी से अमल करने में जुट गई है। उसे आशंका है कि इस बार भी मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव समय से पहले चुनाव करा सकते हैं, ताकि सत्ता विरोधी माहौल को कम किया जा सके। हालांकि, उनकी राह में एक बड़ी बाधा कांग्रेस है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस भले ही कमजोर दिखे, लेकिन तेलंगाना में वह अभी भी सत्तारूढ़ टीआरएस के बाद दूसरी बड़ी पार्टी है। कांग्रेस के सामाजिक समीकरण और राज्य के युवा नेतृत्व को भाजपा गंभीरता से ले रही है।

भाजपा ने हैदराबाद में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर तेलंगाना का राजनीतिक माहौल गरमा दिया है। विधानसभा के कार्यकाल के मुताबिक तेलंगाना में चुनाव अगले साल के आखिर में होने हैं, लेकिन इस बात की चर्चा जोर पकड़े हुए है कि सत्तारूढ़ टीआरएस के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव छह महीने पहले अगले साल कर्नाटक के विधानसभा चुनाव के साथ तेलंगाना के चुनाव भी करा सकते हैं।
दरअसल, उस समय भाजपा दक्षिण में अपनी सत्ता वाले कर्नाटक को बरकरार रखने में व्यस्त होगी तो तेलंगाना पर उसका जोर थोड़ा कम होगा, जिसका लाभ केसीआर उठाना चाहेंगे। इसके साथ सत्ता विरोधी माहौल को भी थोड़ा बहुत कम किया जा सकेगा।

पिछली बार केसीआर ने छह महीने पहले करा लिए थे चुनाव
गौरतलब है कि पिछली बार केसीआर ने विधानसभा चुनाव लगभग छह महीने पहले करा लिए थे, ताकि लोकसभा चुनाव के समय मोदी लहर के चलते तेलंगाना प्रभावित न हो। तेलंगाना की राजनीति में भाजपा इस समय सबसे तेजी से बढ़ती हुई पार्टी है और वह टीआरएस के लिए चुनौती बनती जा रही है, लेकिन भाजपा की राह में सबसे बड़ी बाधा कांग्रेस है। कांग्रेस राज्य में कमजोर हुई है, लेकिन उसकी जड़ें पूरे राज्य में फैली हुई है। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में उसके पास कार्यकर्ता और समर्थक वर्ग है, जबकि भाजपा को ग्रामीण क्षेत्रों में अभी काफी मेहनत करनी है। ऐसे में टीआरएस के खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल के कांग्रेस और भाजपा में बंटने की भी संभावना है।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रेवंथ रेड्डी हैं, जो सामाजिक और राजनीतिक रूप से काफी अच्छी पकड़ रखते हैं। वह राज्य के प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं और पार्टी को आर्थिक रूप से भी मजबूत किए हुए हैं। हालांकि उसकी बड़ी कमजोरी उसका राष्ट्रीय नेतृत्व है, जिसकी बहुत ज्यादा पकड़ राज्य में नहीं दिखती है। ऐसे में भाजपा अपने राष्ट्रीय नेतृत्व के दम पर और डबल इंजन सरकार के नारे पर जमीन मजबूत करने की कोशिश में है।

राज्य के दो प्रमुख भाजपा नेता केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी और प्रदेश अध्यक्ष बंडी संजय पर ही दारोमदार टिका हुआ है। हालांकि दोनों नेताओं में बहुत ज्यादा पटरी नहीं बैठती है। राज्य के राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा भी गरम है कि चुनाव के ठीक पहले कई नेता दल बदल कर सकते हैं। इनमें टीआरएस, कांग्रेस और भाजपा तीनों ही प्रभावित हो सकते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा सबसे ज्यादा असर टीआरएस और कांग्रेस पर पड़ सकता है। राज्य में हैदराबाद में एआईएमआईएम का काफी प्रभाव है, लेकिन वह हैदराबाद के बाहर बहुत ज्यादा असर नहीं रखती है।

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