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केजरीवाल और ओवैसी प्रदेश में भी कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी !

भोपाल : गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का खेल बिगाड़ने वाली आम आदमी पार्टी (AAP) और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) की नजरें अब मध्य प्रदेश पर जा टिकी हैं, जहां अगले साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं। ये दोनों दल इस साल जुलाई-अगस्त में हुए लोकल इलेक्शन में मिले रिस्पॉन्स से गदगद हैं।

हालांकि, गुजरात में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाले संगठन ने गुजरात विधानसभा चुनावों में सिर्फ पांच सीटों पर ही जीत दर्ज की है और AIMIM को एक भी सीट नहीं मिली लेकिन दोनों दलों की उपस्थिति ने मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को 17 सीटों पर सिमटने को मजबूर कर दिया है। आलम यह है कि कांग्रेस विधानसभा में अब विपक्षी पार्टी का दर्जा पाने से भी दूर रह गई है।

गुजरात में जहां आम आदमी पार्टी 12.92 फीसदी यानी करीब 13 फीसदी वोट शेयर हासिल करने में सफल रही और राष्ट्रीय पार्टी का भी दर्जा पाने में सक्षम हो गई, वहीं AIMIM 0.29 फीसदी वोट ही हासिल कर सकी लेकिन उसने मुस्लिम वोटों की बंदरवाट करवा दा, जिससे कई सीटों पर कम मार्जिन से कांग्रेस उम्मीदवारों की हार हुई है।

हालांकि, मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी कांग्रेस, राज्य में द्विध्रुवीय राजनीति का हवाला देते हुए AAP और AIMIM की उपस्थिति को ज्यादा महत्व नहीं दे रहे हैं लेकिन छह महीने पहले हुए निकाय चुनावों ने उन्हें अंदर से परेशान कर रखा है।

इस साल जुलाई-अगस्त में मध्य प्रदेश में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में AAP और AIMIM दोनों ने तीसरी ताकत के तौर पर दावा ठोंका था, जो पहले समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के कब्जे वाली जगह थी, जिसका राज्य में प्रभाव था। आप ने निकाय चुनावों में एंट्री करते हुए 6.3 फीसदी वोट शेयर हासिल करने का दावा किया है, जबकि AIMIM पार्षदों की सात सीटें जीतने में कामयाब रही है। वहीं, बसपा और सपा का प्रदर्शन खराब रहा है।

केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी आप, जो 2012 में अस्तित्व में आई, ने शहरी निकाय चुनावों में 6.3 प्रतिशत वोट हासिल किए। उसके 14 महापौर उम्मीदवारों में से एक सिंगरौली से जीता और ग्वालियर और रीवा में तीसरे स्थान पर रहा। राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने कहा कि ग्वालियर में पार्टी को लगभग 46,000 वोट मिले और उन्होंने साबित कर दिया कि वे एक ताकत हैं।

10 साल पुरानी पार्टी ने नगरीय निकाय चुनाव में पार्षद पद के लिए करीब 1500 उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से 40 जीते, जबकि 135-140 उपविजेता रहे। पार्टी नेताओं ने कहा कि बिना पार्टी सिंबल के हुए पंचायत चुनावों में आप समर्थित उम्मीदवारों ने जिला पंचायत सदस्यों के 10 पदों, 23 जनपद सदस्यों, 103 सरपंचों और 250 पंचों पर जीत हासिल की थी।

यहां गौर करने वाली बात है कि आप ने 2014 के चुनाव में राज्य की सभी 29 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और 2 फीसदी वोट शेयर हासिल किया था। इसके चार साल बाद 2018 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को 1 प्रतिशत वोट शेयर मिला था, जो 2022 के स्थानीय निकाय चुनावों में बढ़कर 6 प्रतिशत से अधिक हो चुका है।

उधर, एआईएमआईएम ने लोकल बॉडी इलेक्शन में 51 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें दो महापौर पदों के लिए (खंडवा और बुरहानपुर में) और शेष सात शहरों में निगम पार्षदों के उम्मीदवार थे।

मध्‍य प्रदेश में करीब 8 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं और राज्य की करीब दो दर्जन विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल हैं। इसके अलावा एक दर्जन सीट पर मुस्लिम मतदाता हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। बावजूद इसके मौजूदा समय में राज्य में विधानसभा के 230 विधायकों में सिर्फ एक ही मुस्लिम विधायक है। मुस्लिम कांग्रेस के परंपरागत वोटर्स रहे हैं लेकिन आप और ओवैसी की एंट्री से यह वोट बैंक कांग्रेस से छिटक रहा है।

इस बीच, गुजरात में शानदार जीत से उत्साहित बीजेपी नेताओं को उम्मीद है कि मध्य प्रदेश में भी भगवा संगठन शानदार प्रदर्शन करेगा, जब नवंबर-दिसंबर 2023 में चुनाव होंगे। गौरतलब है कि 230 सदस्यीय राज्य विधानसभा में फिलहाल बीजेपी के 127 और कांग्रेस के 96 विधायक हैं। 2018 के चुनावों में बीजेपी को 109 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 114 सीटों पर जीत मिली थी लेकिन बाद में कांग्रेस के कई विधायकों ने 2020 में इस्तीफा देकर दल-बदल कर लिया था। पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 40.89 फीसदी और बीजेपी को 41.02 फीसदी वोट शेयर मिले थे।

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