धर्मशाला में विधानसभा के गेट और चारदीवारी पर लगे दिखे खालिस्तान के झंडे
नई दिल्ली. सुबह की बड़ी खबर के अनुसार धर्मशाला (Dhramshala) में हिमाचल प्रदेश विधान सभा के मुख्य द्वार और दीवारों पर आज यानी रविवार सुबह खालिस्तान के झंडे (Khalistan Flags) बंधे मिले हैं। इस घटना बाबत कांगड़ा के एसपी खुशहाल शर्मा ने बताया कि, “यह घटना देर रात या अल सुबह की भी हो सकती है। हमने विधानसभा गेट से खालिस्तान के झंडे फिलहाल हटा दिए हैं। यह पंजाब के कुछ पर्यटकों की हरकत हो सकती है। हम आज मामले पर केस दर्ज करने जा रहे हैं।
इस कृत्य पर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि यह एक शरारत पूर्ण कृत्य है जो गलत संदेश दे रहा है। साथ ही मुख्यमंत्री ने कहा कि, दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे और इस घटना को अंजाम देने वाले लोगों को कतई छोड़ा नहीं जाएगा। जयराम ठाकुर ने साथ ही कहा, “रात के अंधेरे में यह किया हिम्मत है तो दिन में कर के दिखाएं। यह एक कायरता पूर्ण हरकत है हम दोषियों को नहीं बख्सेंगे।” वहीं सोशल मीडिया में वायरल 12 सेकेंड के एक वीडियो में दिख रहा है कि तपोवन स्थित विधानसभा भवन के बाहर गेट और दीवार पर खालिस्तानी झंडे लगे हैं और इन पर अंग्रेजी में खालिस्तान भी लिखा हुआ है। इधर मामले कि संगीनता को देखते हुए पुलिस फिलहाल पूरे मामले की जांच में जुट गई है और स्थानीय नागरिकों से भी पूछताछ कर रही है कि आखिर किसने ये झंडे लगाए। फिलहाल माले की विवेचना हो रही है।
दरल जब 1947 में अंग्रेज भारत को दो देशों में बांटने की योजना बना रहे थे। तभी कुछ सिख नेताओं ने अपने लिए अलग देश खालिस्तान की मांग की थी। उन्हें लगा कि अपने अलग मुल्क की मांग करने के लिए ये सबसे उपयुक्त समय है। आजादी के बाद इसे लेकर हिंसक आंदोलन चला। जिसमें कई लोगों की जान भी गई थी। इसके बाद 1950 में अकाली दल ने पंजाबी सूबा आंदोलन के नाम से आंदोलन चलाया गया। लेकिन भारत सरकार ने साफतौर पर पंजाब को अलग करने से मना कर दिया था। तब ये पहला मौका था जब पंजाब को भाषा के आधार पर अलग दिखाने की कोशिश हुई थी। इस तरह अकाली दल का जन्म हुआ था। कुछ ही वक्त में इस पार्टी ने बेशुमार लोकप्रियता हासिल कर ली। अलग पंजाब के लिए इसके द्वारा जबरदस्त प्रदर्शन शुरू हुए थे।
इसके बाद तो अलग सिख देश की आवाज लगातार उठती रही। कई आंदोलन भी होते रहे। 1970 के दशक में खालिस्तान को लेकर कई चीजें हुईं थी। 1971 में गजीत सिंह चौहान ने अमेरिका जाकर वहां के अखबार में खालिस्तान राष्ट्र के तौर पर एक पेज का विज्ञापन प्रकाशित कराया और इस आंदोलन को मजबूत करने के लिए चंदा मांगा था। बाद में 1980 में उसने खालिस्तान राष्ट्रीय परिषद बनाई और उसका मुखिया बन गया था। लंदन में उसने खालिस्तान का देश का डाकटिकट भी जारी किया था। इससे पहले 1978 में जगजीत सिंह चौहान ने अकालियों के साथ मिलकर आनंदपुर साहिब के नाम संकल्प पत्र जारी किया था, जो अलग खालिस्तान देश को लेकर था।
अब हालाँकि खालिस्तान आंदोलन को खत्म हुए दो दशक से ज्यादा हो चले हैं। लेकिन आज भी पाकिस्तान ना केवल सिखों को इसके लिए उकसाने की कोशिश करता रहता है बल्कि कनाडा और यूरोप में बसे सिखों के कई संगठन अब भी इसे गाहे बगाहे इस मामला हवा देने की कोशिश करते रहते हैं। करतारपुर साहिब में भी जिस तरह से खालिस्तान के पक्ष में पोस्टर लगाए गए और पाकिस्तान ने अलगाववादी सिख नेताओं को इसमें बुलाया, उससे जाहिर है कि पाकिस्तान की मंशा अब भी उतनी अच्छी नहीं है। अब तो इसकी आवाज धर्मशाला तक भी जा रही है।