जानें ऐतिहासिक रंगनाथस्वामी मंदिर के बारे में जहां पीएम मोदी ने किया दर्शन
नई दिल्ली (विवेक ओझा): दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में श्रीरंगम में स्थित विश्व प्रसिद्ध श्री रंगनाथस्वामी मंदिर को भूलोक बैकुंठ भी कहते हैं। इस मंदिर को ‘श्रीरंगम मंदिर’, ‘तिरुवरंगम तिरुपति’, पेरियाकोइल’ जैसे कई नामों से जाना जाता है।
भगवान विष्णु को दक्षिण में श्री रंगनाथ स्वामी के नाम से जाना जाता है। श्री रंगनाथस्वामी मंदिर में भगवान विष्णु की शेषनाग की शैय्या पर लेते हुए विशाल मूर्ति है। यह मूर्ति भी उन्हीं को समर्पित है। विभीषण द्वारा स्थापित 1000 स्तंभों वाला श्री रंगनाथस्वामी मंदिर इतिहास के कई परतों के साथ जुड़ा हुआ है।
वैष्णव संप्रदाय के दार्शनिक रामानुजाचार्य वृद्धावस्था में सन 1117 ईस्वी में यहाँ आ गए थे। उस समय राजा विष्णुवर्धन ने रामानुजाचार्य को धन और आठ गाँवों की भूमि दान की। वे करीब 120 वर्ष की आयु तक यहाँ और यही उन्होंने देह-त्याग किया था। माना जाता है कि उनके मूल शरीर को मंदिर में दक्षिण-पश्चिम दिशा के एक कोने में आज भी संभालकर रखा गया है।
इस मंदिर से मैसूर के कट्टरपंथी मुस्लिम शासक टीपू सुल्तान का भी गहरा संबंध है। कहा जाता है कि टीपू सुल्तान का यहाँ के ब्राह्मणों से घनिष्ठता थी। युद्धों में टीपू सुल्तान की जीत के लिए यहाँ के ब्राह्मण नियमित पूजा-पाठ करते थे। अंग्रेजों के साथ हुए युद्ध में जीत हासिल होने के बाद टीपू सुल्तान ने मंदिर के ब्राह्मणों को धन्यवाद दिया था। इसके साथ ही उसने इन्हें उपहार में आर्थिक सहयोग भी दिया था।
श्री रंगनाथस्वामी मंदिर देश के सबसे विशाल मंदिरों में एक है। इसका क्षेत्रफल लगभग 156 एकड़ यानी 6,31,000 वर्गमीटर है। मंदिर का परिसर 7 प्रकारों और 21 गोपुरम (द्वार) को मिलाकर बना हुआ है। मंदिर के मुख्य गोपुरम को राजगोपुरम के नाम से जाना जाता है। यह द्वार 236 फीट यानी लगभग 72 मीटर ऊँचा है।
इस मंदिर का उल्लेख संगम युग (100 ईस्वी से 250 ईस्वी) के तमिल साहित्य और शिलप्पादिकारम (तमिल साहित्य के पाँच श्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक) में भी किया गया है। यह भी माना जाता है कि इस मंदिर के गर्भगृह को सर्वप्रथम 817 ईस्वी में हंबी नाम की एक नर्तकी ने बनवाया था। सन 894 ईस्वी गंग वंश के शासक थिरुमलायरा ने इसके निर्माण में सहयोग दिया।