उत्तराखंड

करवा चौथ में मिट्टी का ही करवा क्यों? जानें इसके पीछे की मान्यता..

नई दिल्ली (गौरव ममगाई): करवा चौथ, सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे खास पर्व है, महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर अपने पति की सलामती की प्रार्थना करती हैं. पति पत्नी को जल ग्रहण कराकर व्रत पूरा कराते हैं, लेकिन क्या आपने सोचा है कि इसमें करवा ही उपयोग क्यों होता है? इसके ही नाम पर पर्व का नाम करवा-चौथ क्यों पड़ा ?

उत्तराखंड विद्वत सभा के अध्यक्ष आचार्य विजेंद्र प्रसाद ममगाईं के अनुसार, करवा का आशय मिट्टी से है. मिट्टी पंचतत्व (धरती, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से मिलकर बनी है. इसी प्रकार मनुष्य का शरीर भी पंचतत्व से बना होता है. मान्यता है कि करवा का उपयोग करने से करवे के पंचतत्व गुण मनुष्य में प्रवेश करते हैं, जो उसकी आयु को बढ़ाते हैं.

आचार्य ममगाईं ने बताया कि पौराणिक मान्यताएं हैं कि मां सीता व मां द्रोपदी ने यह व्रत ग्रहण किया था. उन्होंने ही करवा का उपयोग किया, तभी से यह परंपरा शुरू हुई.

जानेंकैसे बनता है ‘करवा’

पहले मिट्टी को पानी से भिगोकर आकार देते हैं, तब हवा (वायु) व धूप में सुखाते हैं. इसके पश्चात् आग में तपाया जाता है, इस तरह पंचतत्व से मिलकर करवा तैयार होता है. मान्यता है कि करवा चौथ में भगवान ब्रह्मा का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

कब रखा जाएगा व्रतः

आचार्य ममगाईं के अनुसार, करवा चौथ का लग्न 31 अक्टूबर रात लगभग 9.30 बजे से शुरू होगा, जो 1 नवंबर रात 9 बजकर 20 मिनट तक रहेगा. करवा चौथ व्रत 1 नवंबर को रखा जाएगा. कहा कि व्रती मां पार्वती के साथ भगवान गणेश को दूर्वा और गुड़ के लड्डू चढ़ाएं, इससे मनोकामना पूर्ण होती है.

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