बिहार

क्यों बिहार में होती है मिट्टी के हाथी और गजलक्ष्मी की पूजा, जानिए रहस्य

Patna:16 दिनों से चले आ रहे महालक्ष्मी पूजा विधान का आज 28 सितंबर को समापन हो रहा है. इस देवी मां लक्ष्मी के गजलक्ष्मी स्वरूप की पूजा की जाती है. बिहार व आसपास के अन्य राज्यों में देवी लक्ष्मी की पूजा गजलक्ष्मी स्वरूप में की जाती है. इसमें खास बात है कि मां की पूजा से पहले चिकनी मिट्टी से उनकी प्रतिमा बनाई जाती है. इसमें हाथी की भी प्रतिमा बनाई जाती है. जो इंद्र की सवारी ऐरावत का प्रतीक है. ऐरावत हाथी और मां लक्ष्मी आपस में भाई-बहन हैं. क्योंकि दोनों की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई है.

बिहार में हाथी की मान्यता इसलिए भी अधिक है, क्योंकि यहां के सोनपुर जिले में स्थित है प्राचीन गज उद्धार स्थल. मान्यता है कि यहीं पर भगवान विष्णु ने गज को ग्राह (मगरमच्छ) से बचाया था. इस दौरान यहां स्थित हरिहर नाथ मंदिर में दर्शन करने से पुण्य फल प्राप्त होता है. गजलक्ष्मी की पूजा करने की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है.

जब कुंती महल में किया गया अनुष्ठान
कथा के अनुसार आश्विन कृष्ण अष्टमी को गांधारी तथा कुंती ने अपने-अपने महलों में नगर की स्‍त्रियों सहित गजलक्ष्मी व्रत का आरंभ किया. इस दौरान गांधारी ने नगर की स‍भी प्रतिष्ठित महिलाओं को पूजन के लिए अपने महल में बुलवा लिया. माता कुंती के यहां कोई भी महिला पूजन के लिए नहीं आई. साथ ही माता कुंती को भी गांधारी ने नहीं बुलाया. इससे परेशान कुंती उदास हो गईं और पूजन की तैयारी भी नहीं की.

अर्जुन ने अपनी मां को उदास देखा तो सारा माजरा समझ गए. उन्होंने कहा- ‘हे माता! आप पूजन की तैयारी करें और नगर में बुलावा लगवा दें कि हमारे यहां स्वर्ग के ऐरावत हाथी की पूजा होगी. इधर माता कुंती ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया और पूजा की विशाल तैयारी होने लगी. अर्जुन ने अपने धर्म पिता का स्मरण कर बाण संधान द्वारा ऐरावत का आह्वान किया. ऐरावत देवी लक्ष्मी के भाई भी हैं.

स्वर्ग से उतरा हाथी ऐरावत
इधर सारे नगर में शोर मच गया कि कुंती के महल में स्वर्ग से इन्द्र का ऐरावत हाथी पृथ्वी पर उतारकर पूजा जाएगा. समाचार को सुनकर नगर के सभी नर-नारी, बालक एवं वृद्धों की भीड़ एकत्र होने लगी. उधर गांधारी के महल में हलचल मच गई. वहां एकत्र हुईं सभी महिलाएं अपनी-अपनी थालियां लेकर कुंती के महल की ओर जाने लगीं. देखते ही देखते कुंती का सारा महल ठसाठस भर गया.

देवी कुंती ने की ऐरावत की पूजा
माता कुंती ने ऐरावत को खड़ा करने हेतु अनेक रंगों के चौक पुरवाकर नवीन रेशमी वस्त्र बिछवा दिए. नगरवासी स्वागत की तैयारी में फूलमाला, अबीर, गुलाल, केशर हाथों में लिए पंक्तिबद्ध खड़े थे. जब स्वर्ग से ऐरावत हाथी पृथ्‍वी पर उतरने लगा तो उसके आभूषणों की ध्वनि गूंजने लगी. ऐरावत के दर्शन होते ही जय-जयकार होनी लगी.

इसलिए की जाती है हाथी की पूजा
सायंकाल के समय इन्द्र का भेजा हुआ हाथी ऐरावत माता कुंती के भवन के चौक में उतर आया, तब सब नर-नारियों ने पुष्प-माला, अबीर, गुलाल, केशर आदि सुगंधित पदार्थ चढ़ाकर उसका स्वागत किया. राज्य पुरोहित द्वारा ऐरावत पर महालक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करके वेद मंत्रोच्चारण द्वारा पूजन किया गया. नगरवासियों ने भी महालक्ष्मी पूजन किया. फिर अनेक प्रकार के पकवान लेकर ऐरावत को खिलाए और यमुना का जल उसे पिलाया गया.

ऐरावत के पूजन से मातालक्ष्मी भी प्रसन्न हुईं और गजलक्ष्मी स्वरूप ने देवी कुंती को ऐश्वर्य का आशीर्वाद दिया. इसक बाद पांडवों के कहने पर मिट्टी के हाथी को भी ऐरावत की पूजा की मान्यता प्रदान की. इसके बाद से परंपरा स्वरूप में मिट्टी का हाथी पूजा जाने लगा.

Related Articles

Back to top button