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गंगा दशहरा कब है? जानें-पूजन विधि और मुहूर्त

नई दिल्ली : हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, Ganga Dussehra के दिन मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था. अपने पूर्वजों की आत्मा के उद्धार के लिए भागीरथ गंगा को पृथ्वी पर लेकर आए थे. गंगा दशहरा पर हर साल गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं. ऐसा कहते हैं कि इस दिन गंगा में स्नान करने से 10 तरह के पाप मिट जाते हैं. इस बार गंगा दशहरा गुरुवार, 9 जून को है और ये पहले से ज्यादा खास रहने वाला है.

ज्योतिष के जानकारों का कहना है कि Ganga Dussehra पर इस साल दो शुभ संयोग बन रह हैं. गंगा दशहरा पर रवि योग बन रहा है. इस दिन सूर्योदय के साथ ही रवि योग शुरू हो जाएगा. इस शुभ योग में पूजा-पाठ और मांगलिक कार्यों को करना बहुत ही शुभ माना जाता है. गंगा (Ganga) ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हस्त नक्षत्र में धरती पर उतरी थी. इस बार हस्त नक्षत्र 9 जून को सुबह 4 बजकर 31 मिनट से प्रारंभ होकर 10 जून को सुबह 4 बजकर 26 मिनट तक रहेगा.

इस बार गंगा दशहरा गुरुवार, 9 जून 2022 को मनाया जाएगा. ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि गुरुवार, 09 जून को सुबह 08 बजकर 21 मिनट से शुरू होकर शुक्रवार, 10 जून को सुबह 07 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी.

गंगा दशहरा के दिन पवित्र गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाने का विधान है. यदि आप गंगा के तट पर नहीं में असमर्थ हैं तो आस-पास के तालाब या नदी में भी मां गंगा का नाम लेकर डुबकी लगाई जा सकती है. डुबकी लगाते समय ‘ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः’ मंत्र का उच्चारण जरूर करें. आप चाहें तो घर में नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं.

गंगा दशहरा के दिन दान करने का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन दान-धर्म के कार्य करना बहुत ही शुभ माना जाता है. इस दिन 10 चीजों का दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है. पूजन सामग्री में भी 10 चीजों का इस्तेमाल करें. 10 प्रकार के ही फल और फूल का इस्तेमाल करें.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पृथ्वी पर बेहद प्रतापी राजा भागीरथ रहा करते थे। कहा जाता है उनके ऊपर अपने पूर्वजों को दोषों से मुक्त करवाने की एक बड़ी जिम्मेदारी थी। इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए उन्होंने मां गंगा की कड़ी तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर वह पृथ्वी पर आने के लिए तैयार हो गईं। लेकिन उन्होंने बताया कि जब वह स्वर्ग से पृथ्वी पर आएंगी तो उनकी गति पृथ्वी संभाल नहीं पाएगी।
राजा भागीरथ बेहद विचलित हो गए और भगवान शिव की अराधना करने लगे। इस बीच माता गंगा अपने गति को लेकर अहंकार में थीं। भागीरथ की श्रद्धा और तपस्या देखकर भगवान शिव उनसे प्रसन्न हो गए और उनकी परेशानी की वजह पूछने लगे। राजा भागीरथ ने शिवजी से अपनी व्यथा सुनाई जिसके बाद शिव जी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह उनकी समस्या का हल जरूर निकालेंगे

जब मां गंगा धरती पर आ रही थीं तब शिवजी ने उन्हें अपनी जटाओं में कस लिया था। भगवान शिव की जटाओं में कैद होकर वह विचलित हो गई थीं और छटपटाने लगी थीं। उन्होंने भगवान शिव से माफी मांगी फिर शिव जी ने उन्हें मुक्त कर दिया।

शिव जी की जटाओं से मुक्त होने के बाद वह धरती पर सात धाराओं में प्रवाहित हुईं। राजा भागीरथ के वजह से माता गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था इसीलिए उन्हें भागीरथी भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है जब मां गंगा धरती पर आई थीं तब 10 शुभ योग बने थे।

एक बार महाराज सगर ने व्यापक यज्ञ किया। उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला। इंद्र ने सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया। यह यज्ञ के लिए विघ्न था। परिणामतः अंशुमान ने सगर की साठ हजार प्रजा लेकर अश्व को खोजना शुरू कर दिया। सारा भूमंडल खोज लिया पर अश्व नहीं मिला।

फिर अश्व को पाताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा गया। खुदाई पर उन्होंने देखा कि साक्षात्‌ भगवान ‘महर्षि कपिल’ के रूप में तपस्या कर रहे हैं। उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है। प्रजा उन्हें देखकर ‘चोर-चोर’ चिल्लाने लगी।

महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्यों ही महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले, त्यों ही सारी प्रजा भस्म हो गई। इन मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था। भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने ‘गंगा’ की मांग की।

इस पर ब्रह्मा ने कहा- ‘राजन! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो? परंतु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।’

महाराज भगीरथ ने वैसे ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा। तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं। इसका परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका।

अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की आराधना में घोर तप शुरू किया। तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर मुड़ी।

इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके बड़े भाग्यशाली हुए। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, मुक्ति भी देती है। इसी कारण भारत तथा विदेशों तक में गंगा की महिमा गाई जाती है।

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