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जानें नारद मुनि ने भगवान विष्‍णु को क्‍यों दिया था श्राप? जानिए पौराणिक कथा से इसके पीछे की वजह

नई दिल्ली : नारद जयंती इस साल 6 मई यनि आज मनाई जा रही है। इस दिन, भक्त सूर्योदय से पहले स्नान करते हैं और नारद मुनि के लिए एक दिन का उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा भी करते हैं। इस दौरान उन्हें चंदन, तुलसी के पत्ते, अगरबत्ती, फूल और मिठाई चढ़ाई जाती है। यह त्योहार ज्यादातर उत्तर भारत में मनाया जाता है। हालांकि, दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों में भी इसे मनाया जाता है।

कर्नाटक में कई नारद मुनि मंदिर में इस दिन नारद जयंती समारोह आयोजित किया जाता है। इस दिन व्रत के लिए, दाल और अनाज से परहेज किया जाता है। जबकि दूध, दूध से बने उत्पाद और फल भक्तों द्वारा खाए जाते हैं। नारद जयंती पर लोग दान भी करते हैं, गरीबों को खाना खिलाते हैं और उनके बीच कपड़े बांटते हैं।

भगवद् गीता के अनुसार, नारद मुनि अपने पिछले जन्म में गंधर्व थे और उन्हें पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप मिला था। उनका जन्म एक नौकर के पुत्र के रूप में हुआ था जो संत पुजारियों के लिए काम करता था। नारद ने समर्पण के साथ पुजारियों की सेवा की और उनसे प्रसन्न होकर उन्होंने उन्हें भगवान विष्णु का प्रसाद अर्पित किया और उन्हें आशीर्वाद दिया।

नारद ने खुद को इन पुजारियों द्वारा सुनाई गई भगवान विष्णु की कहानियों में डूबा पाया और अपनी मां के गुजर जाने के बाद आत्मज्ञान की तलाश में जंगल में घूमने लगे। ध्यान में एक पेड़ के नीचे बैठे, नारद ने भगवान विष्णु के दर्शन किए, जो उनके सामने प्रकट हुए। ऐसा कहा जाता है कि नारद ने अपना शेष जीवन भगवान विष्णु की भक्ति में व्यतीत किया और उनकी मृत्यु के बाद, भगवान ने उन्हें ‘नारद’ के आध्यात्मिक रूप का आशीर्वाद दिया।

श्री नारायण के वरदान से नारद मुनि को वैकुण्ठ सहित तीनों लोकों में बिना किसी रोक-टोक के विचरण करने का वरदान प्राप्त था लेकिन ऐसा क्या हुआ कि अपने सबसे प्रिय विष्णु जी को ही उन्होंने श्राप दे दिया। रामायण के एक प्रसंग के अनुसार नारदजी को अहंकार आ गया था कि उन्होंने काम पर विजय प्राप्त कर ली है। श्रीहरि ने उनका अभिमान तोड़ने के लिए अपनी माया से एक नगर का निर्माण किया, जिसमें एक सुंदर राजकन्या का स्वयंवर चल रहा था। उस स्वंयवर में नारद जी भी पहुंच गए और कन्या को देखकर अपनी सुध-बुध खो बैठै। कन्या से शादी करने के लिए नारदजी ने विष्णु जी से सुंदर रूप मांगे।

अपने भक्त नारद की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने उन्हें बंदर का मुंह दे दिया और खुद स्वंयवर में पहुंचकर राजकुमारी को ब्याह कर ले गए। नारद जी न जैसे ही अपना मुंह पानी में देखा तो वह क्रोधित हो उठे और विष्णु को शाप दिया कि उन्हें भी पत्नी वियोग सहना पड़ेगा। कहते हैं त्रेतायुग में नारद जी के श्राप के कारण ही विष्णु के अवतार श्रीराम को माता सीता से वियोग सहना पड़ा था।

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