‘लक्ष्मी’ व ‘सिद्धनाथ’ करेंगे कूनो में अफ्रीकी चीतों की निगरानी
भोपाल : श्योपुर जिले के कूनो पालपुर में चीतों के पुनर्वास से पार्क प्रबंधन की बड़ी चिंता इनकी सुरक्षा को लेकर है। इसके चलते प्रबंधन ने सतपुड़ा टाइगर रिजर्व (STR) के दो हाथियों 41 वर्षीय सिद्धनाथ व 10 वर्षीय लक्ष्मी (female elephant) को बीते एक माह से विशेष प्रशिक्षण देकर पार्क में तैनात किया है। यह दोनों हाथी चीतों की निगरानी के साथ उनके आसपास किसी हिंसक पशु को फटकने से भी रोकेंगे।
विभागीय सूत्रों के अनुसार, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के इन दोनों हाथियों को किसी भी वन्यप्राणी को काबू करने, गश्त करने व रेस्क्यू आपरेशन में महारथ हासिल है। इन कार्यों के लिए ये विशेष तौर पर प्रशिक्षित हैं। लक्ष्मी व सिद्धनाथ की इन्हीं खूबियों को देखते हुए उन्हें एक पखवाड़े पहले कूनो पहुंचाया गया। यहां इन्हें चीतों को क्वारेंटाइन रखने के लिए बनाए गए विशेष बाड़े के समीप तैनात किया गया है।
बताया जाता है कि कूनो में भी पिछले एक पखवाड़े के दौरान दोनों ही हाथियों के लिए विशेष रिफ्रेशर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया गया। नामीबिया से लाए जा रहे आठों चीते विशेष बाड़े में एक माह तक क्वारेंटाइन रहेंगे। इस दौरान लक्ष्मी व सिद्धनाथ भी कूनो में ही इनकी निगरानी करेंगे। बाड़े के अंदर या आसपास कोई अन्य वन्यप्राणी न आए इसके लिए सिद्धनाथ और लक्ष्मी लगातार गश्त भी करेंगे। बताया जाता है कि जरुरत पडऩे पर कूनो में इनकी तैनाती की अवधि बढ़ाई भी जा सकती है।
लक्ष्मी (10) व सिद्धनाथ (41) सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मढ़ई में जाना-पहचाना नाम है। ये वहां अपने चार साथियों अंजूगम (70) स्मिता (44)प्रिया(31)व विक्रमादित्य (4)के साथ रहते आए हैं। हाल ही में मढ़ई में हाथी महोत्सव मनाया गया। इसमें अन्य रिजर्व क्षेत्र के हाथी भी शामिल हुए,लेकिन कूनो में विशेष ड्यूटी पर होने के कारण लक्ष्मी व सिद्धनाथ इस महोत्सव में शामिल नहीं हो सके। एसटीआर की सबसे पुरानी हाथिनी अंजूगम की उम्र ही 70 साल है। इसे 25 साल पहले अर्थात 1997 में चूरना के जंगल से एसटीआर लाया गया था। अब यह काफी बुजुर्ग हो गई है। इसके चलते इसे जल्दी ही सेवानिवृत किया जाएगा।
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में 11 हाथी हैं। हाल ही में 20 प्रशिक्षित हाथी प्रदेश के सभी रिजर्व के लिए कर्नाटक से लाए गए। इनमें से 5 हाथियों को एसटीआर में लाया गया लेकिन एक पखवाड़े पहले लक्ष्मी व सिद्धनाथ की कूनो में तैनाती के बाद फिलहाल रिजर्व में 9 हाथी रह गए हैं। बाघों की सुरक्षा व देख-रेख में इनकी अहम भूमिका है। दरअसल, घने जंगल व बैक वाटर क्षेत्र में हाथियों से गश्त आसानी से हो जाती है। एसटीआर में बाघों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में बाघों की देख-रेख व रेस्क्यू करने में भी हाथी मददगार होते है।
कूनों में कल छोड़े जा रहे चीतों की निगरानी के लिए पार्क से लगे शिवपुरी व राजस्थान के बारां जिले के सीमा पर निगरानी चौकी भी बनाई जाएगी। पार्क में चीतों को सैटेलाइट कालर लगाकर ही लाया जा रहा है। इसकी मदद से प्रत्येक चार घंटे में उनकी लोकेशन ली जाएगी। इसके अलावा पार्क में बने विशेष बाड़े के नजदीक पांच टावर लगाए गए हैं। जिन पर उच्च गुणवत्ता वाले थर्मल इमेज कैमरे लगाए गए हैं। इनसे पांच वर्ग किमी क्षेत्र में दिन और रात चीतों पर नजर रखी जाएगी। दरअसल,कूनो पार्क का जंगल पड़ोसी जिले शिवपुरी और राजस्थान के जिले बारां से सटा हुआ है। यह जंगल राजस्थान के मुकुंदरा हिल टाइगर रिजर्व, रथंबोर नेशनल पार्क तक कारिडोर भी बनाता है। यह भी डर है कि जंगल में छोड़े जाने के बाद चीते इस कारिडोर पर न चल पड़ें, इसलिए शिवपुरी और बारां जिले की सीमाओं तक अस्थायी चौकी बनाकर नजर रखी जाएगी।
चीतों की निगरानी के लिए पन्ना नेशनल पार्क का तरीका भी अपनाया जाएगा। जंगल में खुला छोड़े जाने के बाद कई तरह से चीतों की निगरानी की जाएगी। उसमें से एक तरीका ट्रैकिंग दल भी है। प्रत्येक चीते के साथ एक दल चलेगा। यह डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर एंटीना लेकर चलेगा। इसकी मदद से चीते के घूमने की स्थिति का पता चलता रहेगा। यदि आधा घंटा से ज्यादा चीता एक ही स्थान पर है और उसके शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही है तो दल वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना देगा और मौके पर पहुंचकर देखेगा। पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की पुनस्र्थापना के दौरान यही तरीका अपनाया गया था।