देहरादून (गौरव ममगाईं)। इन दिनों उत्तराखंड में भू-कानून की मांग को लेकर प्रदेशव्यापी आंदोलन चल रहा है। भू-कानून, एक ऐसा ज्वलंत मुद्दा है जिसकी मांग उत्तराखंड राज्य के गठन के समय से ही जोरों पर रही है। मांग है कि उत्तराखंड के जल, जंगल व जमीन पर प्रदेशवासियों का अधिकार बना रहे, यहां के संसाधनों पर बाहरी व्यक्तियों की बुरी नजर न पड़ सके। आंदोलनकारियों व प्रदेशवासियों की इस मांग से राजनेता भी भली-भांति वाकिफ रहे हैं। कई सरकारों में प्रयास भी हुए, लेकिन दुर्भाग्य से कोई इस दर्द की दवा न दे सका।
तभी तो वर्ष 2000 में राज्य का गठन होने के बाद वर्ष 2002 में बनी पहली निर्वाचित एनडी तिवारी सरकार ने इसका संज्ञान लिया और शुरुआती तौर पर इस दिशा में प्रयास हुआ। इसके भी कई सरकारों ने इस पर भूमि खरीद की सीमा को घटाया, लेकिन प्रदेशवासी इससे भी संतुष्ट नहीं हो सके।
यह मामला तब और गरमा गया, जब त्रिवेंद्र सरकार ने भूमि खरीद की सीमा को हटा दिया। इसके पीछे उद्योगों को बढ़ावा देने का तर्क दिया। हालांकि, देर सवेर वर्तमान धामी सरकार ने इस दिशा में सकारात्मक रूख जरूर दिखाया है। सीएम पुष्कर सिंह धामी ने राज्य आंदोलनकारी व प्रदेशवासियों की जनभावनाओं का सम्मान करते हुए सख्त भू-कानून बनाने के लिए 2022 में विशेषज्ञ समिति का गठन किया, इस समिति द्वारा तैयार किये ड्राफ्ट के अध्ययन के लिए अब अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में समिति गठित कर दी है। यह समिति ड्राफ्ट का अध्ययन कर फाइनल ड्राफ्ट तैयार करेगी, जिसके बाद इसे कानून का रूप दे दिया जायेगा। वहीं, दो दिन पहले सीएम पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड के मूल निवासियों के लिए स्थायी प्रमाण पत्र की बाध्यता को खत्म करने की नई व्यवस्था को भी लागू करा दिया है।
उत्तराखंड में भू-कानून का इतिहासः
– राज्य गठन के पश्चात् यहां वर्ष 2003 में एनडी तिवारी सरकार ने उत्तर-प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम-1950 में संशोधन किया था, जिसमें बाहरी व्यक्तियों को 500 वर्ग मीटर से ज्यादा भूमि लेने पर रोक लगाई गई थी।
– 2008 में पूर्व सीएम बीसी खंडूडी ने इस सीमा को घटाकर 250 वर्ग मी. कर दिया.।
– वर्ष 2018 में भाजपा सरकार में ही पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस सीमा को हटा दिया था।
यह बात सही है कि प्रदेश में अभी तक की सरकारें राज्य आंदोलनकारी व प्रदेशवासियों की जनभावनाओं के अनुरूप उचित कदम उठाने में पीछे रही हैं, लेकिन वर्तमान सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इस दिशा में गंभीर व सार्थक प्रयास जरूर शुरू किये हैं। भू-कानून व मूल निवास के गंभीर मुद्दे पर सीएम धामी ने तुरंत कार्रवाई करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि धामी सरकार की नीति व नीयत पूरी तरह से आंदोलनकारी व उत्तराखंडवासियों के पक्ष में है। जाहिर है कि सीएम धाम के इस रूख के बाद लंबे समय बाद न्याय की आस जगी है।