दस्तक-विशेष

आपदा के सबक : ग्लेशियर झीलों का अध्ययन, भूस्खलन क्षेत्रों की र्मैंपिंग

दस्तक ब्यूरो, देहरादून

उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित ग्लेशियरों के टूटने अथवा अन्य कारणों से वहां झीलें भी बन रही हैं। केदारनाथ के ठीक ऊपर स्थित चौराबाड़ी ग्लेशियर में बनी झील को जून 2013 की जलप्रलय का प्रमुख कारण मानी गई थी। इससे सबक लेते हुए अब ग्लेशियर झीलों का चरणबद्ध ढंग से अध्ययन कराया जा रहा है। इसे लेकर केंद्र एवं राज्य की चार एजेंसियों के विशेषज्ञों की टीम तय की गई है। प्रथम चरण में संवेदनशील श्रेणी में शामिल पिथौरागढ़ की चार और चमोली की एक ग्लेशियर झील के अध्ययन के लिए यह टीम जुलाई में संबंधित क्षेत्रों में जाकर आवश्यक उपकरण भी लगाएगी। इसमें देखा जाएगा कि वर्तमान में इन झीलों में कितना पानी है, गहराई कितनी है और इनके टूटने की स्थिति में कौन सा क्षेत्र प्रभावित हो सकता है। विशेषज्ञों की टीम सितंबर में दोबारा यहां अध्ययन करेगी और फिर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। आपदा की दृष्टि से देखें तो संपूर्ण उत्तराखंड बेहद संवेदनशील है। वर्षाकाल में अतिवृष्टि व बादल फटने की घटनाओं से जगह-जगह भूस्खलन जोन बने हैं। सरकार इन सभी भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों की र्मैंपग कराने जा रही है। संवेदनशील व अति संवेदनशील श्रेणी में आने वाले क्षेत्रों में र्मैंपग के आधार पर उपचारात्मक कार्य किए जाएंगे। यही नहीं, विश्व बैंक पोषित प्रोजेक्ट के तहत इन क्षेत्रों में भूस्खलन के दृष्टिकोण से अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने की योजना है। इसके लिए इंटरफेरोमेट्रिर्क ंसथेटिक-एपर्चर राडार जैसी आधुनिकतम तकनीक का उपयोग किया जाएगा। ड्रोन व सेटेलाइट आधारित इस तकनीक से भूस्खलन से पहले चेतावनी मिल सकेगी।

उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अंतर्गत गठित उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र ने भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों के उपचार की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। इस क्रम में नैनीताल के बलियानाला और मसूरी के ग्लोगी में उपचारात्मक कार्य प्रारंभ किए जा रहे हैं। नैनीताल में नैना पीक और हरिद्वार में मंसा देवी क्षेत्र में भूस्खलन के न्यूनीकरण को अध्ययन कराया जा रहा है। बदरीनाथ धाम की यात्रा के सबसे अहम पड़ाव जोशीमठ (ज्योतिर्मठ) में पिछले वर्ष भूधंसाव की घटना के बाद सरकार ने राज्य के पर्वतीय क्षेत्र के 15 शहरों की धारण क्षमता का आकलन कराने का निर्णय लिया है। इसके लिए एजेंसी तय कर दी गई है, जो चरणबद्ध ढंग से कार्य करेगी। इस साल पहले चरण में पांच शहरों की धारण क्षमता का आकलन किया जाएगा। इन शहरों में नैनीताल, अल्मोड़ा, गोपेश्वर, चमोली व उत्तरकाशी शामिल हैं। गत वर्ष सोलानी नदी का तटबंध टूटने से हरिद्वार जिले के विभिन्न क्षेत्रों में भारी क्षति हुई थी। इससे सबक लेते हुए आपदा प्रबंधन विभाग अब सभी मैदानी क्षेत्रों में फ्लड मैनेजमेंट सिस्टम विकसित करने की दृष्टि से अध्ययन करा रहा है। इसके अलावा सूचनाएं सही ढंग से मिल सकें और समय पर चेतावनी जारी हो सके, इसकी कसरत चल रही है। इसके साथ ही अन्य कई कदम भी अब तक उठाए जा चुके हैं। तीर्थाटन और पर्यटन की दृष्टि से ढांचागत सुविधाएं विकसित करने पर सरकार जोर दे रही है।

इससे साफ है कि आने वाले दिनों में राज्य में तीर्थयात्रियों व पर्यटकों का दबाव बढ़ना तय है। यद्यपि, आपदा प्रबंधन के लिहाज से तो काफी कुछ कदम बढ़ाए जा रहे हैं, लेकिन भीड़ नियंत्रण और प्रबंधन के दृष्टिकोण से अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। यही नहीं, भीड़ बढ़ने पर राज्यभर में यातायात व्यवस्था भी चरमरा जाती है। इसके पीछे एक बड़ा कारण है वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था न होना। यद्यपि, सरकार ने पार्किंग के लिए कवायद शुरू की है, लेकिन इसमें तेजी लाने की दरकार है। राज्य आपदा प्रबंधन सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष विनय रुहेला ने कहा कि प्रदेश में आपदा प्रबंधन को लेकर सरकार गंभीरता से कदम उठा रही है। आपदा न्यूनीकरण के लिए जो भी प्रयास हो सकते हैं, किए जा रहे हैं। आपदा प्रबंधन में संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता हो, इस पर ध्यान केंद्रित किया गया है। सूचना तंत्र को सशक्त बनाने को कदम उठाए गए हैं। यही नहीं, आमजन को भी आपदा प्रबंधन के दृष्टिगत जागरूक किया जा रहा है। ल्ल

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