ऋषिकेश: लॉकडाउन के चलते तीर्थनगरी ऋषिकेश की आबोहवा पूरी तरह से शुद्ध हो गई है। वायु प्रदूषण का स्तर सामान्य से भी नीचे पहुंच गया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा की गई जांच में इस बात की पुष्टि हुई है।
ऋषिकेश में वायु प्रदूषण को बढ़ाने वाले कई कारण रहे हैं। इनमें कंक्रीट के बढ़ते जंगल और सड़कों पर वाहनों की बढ़ती संख्या प्रमुख कारण रही है। वायु प्रदूषण के कारण लोग सांस की बीमारी से परेशान रहे हैं। वैश्विक महामारी घोषित कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिए सरकार ने 14 अप्रैल तक लॉकडाउन घोषित किया है। जिसके तहत लोगों के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी है। पिछले 16 दिनों से वाहन ना चलने चलने और यहां होने वाले निर्माण कार्य पूरी तरह से रोक है। इससे ऋषिकेश क्षेत्र को वायु प्रदूषण से भी मुक्ति मिली है।
बड़ी बात यह है कि इस क्षेत्र में में वायु प्रदूषण का जो न्यूनतम स्तर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा निर्धारित किया गया है इससे भी नीचे स्तर पर प्रदूषण पहुंच गया है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार इससे लोगों को फायदा होगा।
सामान्य से नीचे पहुंचा वायु प्रदूषण
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, देहरादून के क्षेत्रीय अधिकारी अमित पोखरियाल के अनुसार, समय-समय पर प्रमुख शहरों के वायु प्रदूषण की जांच की जाती है। लॉक डाउन के बाद प्रदूषण का स्तर जांच करने के लिए बीते मंगलवार को ऋषिकेश में इसकी जांच कराई गई। जांच के बाद पता चला है कि यहां वायु प्रदूषण का स्तर सामान्य से भी नीचे स्तर पर पहुंच गया है। यह राहत देने वाली बात है।
सांस के रोगियो को राहत
निर्मल हॉस्पिटल के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. अमित अग्रवाल के मुताबिक, वाहनों के धुएं और कारखानों से निकलने वाला कार्बन डाइऑक्साइड सांस की बीमारी पैदा करता है। मौसम की बीमारी एलर्जी, अस्थमा और सांस को वायु प्रदूषण बढ़ाता है। वर्तमान में वायु प्रदूषण कम होने से विशेष रूप से सांस और अस्थमा के रोगियों की संख्या में गिरावट आई है। शुद्ध हवा घर में बैठे लोगों के लिए लाभदायक है।
यह है मानक
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों के मुताबिक ऋषिकेश क्षेत्र में पीएम-10 पर्टिकुलर मैटर यानी धूल के कण (कणिका तत्व) 100 माइक्रोन ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होना चाहिए। आम दिनों में पीएम-10 का स्तर 150 से 200 के बीच था जो अब घटकर 53.25 पहुंच गया है।