भगवान कृष्ण ने यहां दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार किया था!
चमोली जिले के कर्णप्रयाग में पिंडर और अलकनंदा नदी के संगम पर कर्ण शिला मंदिर है, जो महाभारत के पात्र और कुंती के पुत्र कर्ण को समर्पित है. कथित तौर पर कर्ण के इसी मंदिर की वजह से कर्णप्रयाग को यह नाम मिला. मान्यता है कि आज जहां पर महाभारत के महान योद्धा और दानवीर कर्ण का मंदिर है, वह स्थान कभी जल के अंदर था और मात्र कर्ण शिला नामक एक पत्थर का कोना जल के बाहर था.
माना जाता है कि इसी कर्ण शिला पर भगवान कृष्ण ने अपनी हथेली का संतुलन बनाए रखते हुए कर्ण का दाह संस्कार किया था. एक दूसरी कहावत के अनुसार, कर्ण यहां अपने पिता सूर्य की आराधना किया करते थे. भगवान सूर्य कर्ण की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें अभेद्य कवच-कुंडल और अक्षय धनुष प्रदान किए थे.
वहीं कर्ण का दाह संस्कार यहां होने की वजह से इस स्थान पर पितरों को तर्पण देना भी महत्वपूर्ण माना जाता है. कर्ण के अलावा इस मंदिर में भूमिया देवता, राम-सीता, भगवान शिव और मां पार्वती के मंदिर भी हैं.