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बिना रसायन स्ट्रॉबेरी उत्पादन में लखनवी भी ले रहे है रूचि, छत पर भी होगा व्यवसायिक उत्पादन 

लखनऊ: स्ट्रॉबेरी की खेती एवं विपणन पर केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में लखनऊ  वासियों ने छत पर स्ट्रॉबेरी की खेती में रुचि दिखाई. स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए कम मिट्टी की आवश्यकता होती है और इसे छोटी सी जगह में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है. शौकीनों के लिए यह एक आकर्षक फल है परंतु कुछ लोग छत पर इसका व्यवसायिक उत्पादन करने करने के इच्छुक हैं. कार्यशाला में कानपुर, बाराबंकी, कौशांबी, जालौन और लखनऊ के आसपास के किसानों ने भाग लिया. महिलाएं भी काफी संख्या में थी जो आमतौर पर शौक के लिए स्ट्रॉबेरी उगाना चाहती हैं.

कार्यशाला में कुछ प्रतिभागियों ने अपने जीवन में अब तक स्ट्रॉबेरी के पौधे नहीं देखे थे इसलिए उन्हें सफल उत्पादन के लिए प्रायोगिक रूप से खेत में पौधों के साथ कई टिप्स दिए. स्ट्रॉबेरी एक संवेदनशील फसल है और इसे लगाने से लेकर उपभोक्ता तक पहुंचने के विभिन्न स्तर पर सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है. कार्यशाला में उन प्रतिभागियों को भी बुलाया गया जिन्हें संस्थान द्वारा प्रशिक्षण देने के कारण उत्पादन से लेकर विवरण तक का अनुभव है. स्ट्रॉबेरी आपूर्ति श्रृंखला में  संलग्न लोगों ने भविष्य में लखनऊ के आस पास इसके खेती की अच्छी संभावना पर चर्चा की. स्ट्रॉबेरी का विपणन इसकी लाभदायक खेती के लिए कई बार सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है, अपूर्ण बाजार श्रृंखला किसानों को निराश करती है और आने वाले वर्षों में किसान  इस फसल का विकल्प चुनने लगता है.

कार्यशाला का उद्देश्य किसानों को रोपण सामग्री के वास्तविक स्रोत, विशेषताओं और विश्वसनीयता के मुद्दों के बारे में मार्गदर्शन करना था.  आईसीएआर-सीआईएसएच से डॉ अशोक कुमार ने उत्पादन के लिए संशोधित तकनीक के बारे में विस्तार से बताया, जिसे वे सिक्किम की परिस्थितियों में अभ्यास कर रहे थे. संस्थान द्वारा प्रशिक्षित किसान धीरेंद्र सिंह ने अच्छी मात्रा में स्ट्रॉबेरी का उत्पादन शुरू कर दिया है और पैकेजिंग और विपणन के बारे में भी काफी अनुभव  प्राप्त कर लिया है. किसानों का एक नेटवर्क विकसित करने की आवश्यकता है, ताकि कम मात्रा में उपज का भी अच्छा मूल्य मिल सके. ज्यादातर कुछ किलो स्ट्रॉबेरी के साथ एक किसान उच्च मूल्य वाले बाजार में प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं होता है. स्ट्रॉबेरी की खेती में रोपण सामग्री महत्वपूर्ण है और किसानों को अच्छी रोपण सामग्री प्राप्त करने के लिए हिमाचल प्रदेश या पुणे जाना पड़ता है, इसमें अधिक लागत शामिल है और कम पौधों की  आवश्यकता वाले किसान को खर्च वहन करने में असुविधा होती है. डॉ वाईएस परमार (यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, सोलन, हि.प्र) के सहयोग से गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है. स्थानीय स्तर पर स्ट्राबेरी के पौधों के उत्पादन के लिए प्रणाली विकसित करने की कोशिश की जा रही  है. संश्तन ने काकोरी में कुछ किसानों के खेतोँ में प्रदर्शन रोपण पहले ही पूरा हो चुका है और कुछ अनुसूचित जाति के किसान रेहमंखेरा और रायबरेली रोड परिसर में स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. इसके साथ 32 गांवों के प्रतिनिधियों को कुछ स्ट्राबेरी के पौधे उपलब्ध कराए जाएंगे ताकि उन्हें अपने खेत में इस नई फसल को उगाने का अनुभव हो सके. इससे उन्हें इस नयी फसल की समझ के साथ आने वाले वर्षों में स्ट्रॉबेरी की खेती के प्रबंधन के लिए जोखिम उठाने में मदद मिलेगी जिसके लिए तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है.
डॉ राजन ने छोटे फलों के उपयोग के बारे में चर्चा की, जो प्रीमियम बाजारों के लिए ग्रेडिंग के लिए उपयोग में नहीं लाये जाते हैं. किसानो को अधिक लाभ देने के लिए स्ट्रॉबेरी उत्पादकों का एक नेटवर्क विकसित करने की आवश्यकता है जो छोटे आकार के बेकार समझे जाने वाले फलों को मूल संवर्धन के लिए एकत्रित करके एक स्थान पर ला सकें. फ्रीज किए स्ट्रॉबेरी पल्प के उत्पादन के लिए इन फलों का अच्छी तरह से उपयोग किया जा सकता है और निकट भविष्य में इसका अच्छा व्यावसायीकरण हो सकता है क्योंकि उपभोक्ता कृत्रिम रंग के बुरे प्रभावों से अवगत हो रहे हैं. आइसक्रीम, मिल्क शेक, केक और अन्य उत्पादों में स्ट्रॉबेरी फल के रंग और सुगंध के लिए रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है.
रसायनों के बिना स्ट्रॉबेरी उत्पादों को निकट भविष्य में लखनऊ के बाजार में जगह मिलेगी क्योंकि उपभोक्ता खाद्य उत्पादों में प्रयुक्त रसायनों के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूक हो रहे हैं. फलों का परिवहन इसकी शीघ्र खराब होने वाली प्रकृति के कारण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है इसलिए हम शहर के आस पास के क्षेत्रों में खेती को बढ़ावा दे रहे हैं ताकि फलों को दूर के बाजार में पहुचने में ज्यादा समय न लगे. वर्तमान में स्ट्रॉबेरी बाजार केवल उच्च आय वर्ग के लिए सीमित है और इसकी खेती के तहत बढ़े हुए क्षेत्र और विपणन नेटवर्क विकसित होने के कारण निकट भविष्य में अन्य लोगों को भी सस्ती कीमत पर फल उपलब्ध होना संभव है.

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