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‘चैत्र नवरात्रि’ के पहले दिन मां शैलपुत्री की होगी पूजा, जानिए देवी के इस स्वरूप की महिमा

नई दिल्ली: आज से ‘चैत्र’ महीने की नवरात्रि यानी ‘चैत्र नवरात्रि’ (Chaitra Navratri) आरंभ हो गया है। नवरात्रि के 9 दिनों में मां के 9 रूपों की पूजा- अर्चना की जाती है। मां के हर रूप का अपना अलग ही महत्व है। माता रानी की असीम कृपा पाने के लिए श्रद्धालु गण नौ दिन तक व्रत-उपवास करते हैं। ‘नवरात्रि’ का यह पावन पर्व देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीको से मनाया जाता है। खासतौर से, गुजरात और बंगाल में ‘नवरात्रि’ की अलग ही रौनक देखने को मिलती है।

‘नवरात्रि’ के पहले दिन घट-स्थापना के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप ‘शैलपुत्री’ की पूजा-अर्चना की जाती है। ये अपने दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल धारण करती हैं। ये पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। पर्वत को ‘शैल’ भी कहा जाता है, इसलिए ये ‘शैलपुत्री’ कहलाती हैं। यही भगवान शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती हैं। आइए जानें मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप ‘शैलपुत्री’ की पूजा का शुभ-मुहर्त और पूजा-विधि-

मां दुर्गा के पहले स्वरूप ‘मां शैलपुत्री’ को सौभाग्य और शांति की देवी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि, उनकी पूजा से सभी सुख प्राप्त होते हैं, और मनोवांछित फल की भी प्राप्ति होती है। साथ ही मां शैलपुत्री हर तरह के डर और भय को भी दूर करती हैं, और देवी मां की कृपा से व्यक्ति को यश, कीर्ति और धन की प्राप्ति होती है। माता के इस रूप में उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल हैं। मां शैलपुत्री नंदी बैल पर सवार होकर संपूर्ण हिमालय पर विराजमान मानी जाती हैं, इसलिए उन्हें ‘वृषोरूढ़ा’ भी कहा जाता हैं।

‘नवरात्रि’ के पहले दिन कलश स्थापना करके मां दुर्गा की पूजा शुरू करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद मां शैलपुत्री की पूजा करें। उन्हें लाल फूल, सिंदूर, अक्षत, धूप आदि चढ़ाएं। फिर माता के मंत्रों का उच्चारण करें, ‘दुर्गा चालीसा’ का पाठ करें, पूजा के अंत में गाय के घी के दीपक या कपूर से आरती करें। ‘मां शैलपुत्री’ को सफेद रंग बेहद प्रिय है इसलिए उन्हें सफेद रंग की बर्फी का भोग लगाएं। आप चाहें तो सफेद रंग के फूल भी अर्पित कर सकते हैं। इसके बाद भोग लगे फल और मिठाई को पूजा के बाद प्रसाद के रूप में लोगों में बांटें। जीवन की सभी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए एक पान के पत्ते पर माता को लौंग, सुपारी और मिश्री रखकर भी अर्पित करें।

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