19 साल तक रहती है शनि की महादशा, जानिए इसके नुकसान और फायदे
नई दिल्ली : शनिदेव को न्याय और दण्ड का देवता माना जाता है। ज्योतिष (Astrology) की माने तो शनि देव की महादशा (Mahadasha), साढ़े साती या ढैय्या हर व्यक्ति के जीवन को एक बार जरूर प्रभावित करती है। इनकी वक्र दृष्टि की वजह से लोगों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन शनिदेव की महादशा 19 (Mahadasha of Shani Dev) साल तक रहती है।
ऐसे में लोग शनिदेव को प्रसन्न करने और उनकी सजा से बचने के लिए उनकी पूजा (Worship) करते हैं, लेकिन आपको बता दें कि शनिदेव की पूजा के समय आपको कुछ सावधानियां जरूर बरतनी चाहिए, वरना उनकी पूजा करने वाला भी उनके कोप का शिकार बन सकता है।
ज्योतिषियों के मुताबिक शनि की महादशा 19 वर्ष तक चलती है। इसलिए नकारात्मक प्रभाव होने पर शनि लंबे समय तक आर्थिक कष्ट देने लगते हैं। शनि नकारात्मक हो तो साढ़े साती या ढैया में घोर दरिद्रता देता है। कुंडली में बेहतर योग के बावजूद अगर कर्म शुभ न हों तो शनि धन की खूब हानि करवाता है।
शनिवार को पहले पीपल वृक्ष के नीचे सरसों का चौमुखी दीपक जलाएं। इसके बाद वृक्ष की कम से कम तीन बार परिक्रमा करें. परिक्रमा के बाद शनिदेव के तांत्रिक मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें- मंत्र होगा – “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः”. आखिर में किसी निर्धन व्यक्ति को सिक्कों का दान करें।
ना देखें शनिदेव की आंखों को
अगर आप भी शनिदेव की पूजा करने मंदिर गए हैं तो पूजा के दौरान शनिदेव की आंखों में न देखें और शनिदेव की मूर्ति के ठीक सामने न खड़े हो। ऐसे में जब आप उनकी पूजा करें तो अपनी या तो अपनी आंखें बंद रखें या फिर उनके चरणों की तरफ देखें। मान्यताओं के अनुसार, शनिदेव की आंखों में आंखें डालकर देखने से शनिदेव की दृष्टि सीधे आप पर पड़ती है।
शनिदेव की पूजा के दौरान कभी भी तनकर खड़े ना हों। साथ ही कहा जाता है कि जब भी आप शनिदेव की पूजा करके वहां से हटें तो जिस अवस्था में खड़े थे उसी अवस्था में पीछे की तरफ होते आएं। शनिदेव को पीठ नहीं दिखानी चाहिए। ऐसा करने से शनिदेव नाराज हो सकते हैं।
शनिदेव की पूजा के दौरान रंगों का भी ध्यान रखना चाहिए। पूजा के दौरान लाल रंग के कपड़े पहनने से बचें। ऐसे में आप उनके प्रिय रंग जैसे नीले और काले वस्त्र पहन सकते हैं।
अगर शनिदेव को तेल अर्पित करने जा रहे हैं तो तांबे के बर्तन का इस्तेमाल ना करें। हमेशा लोहे के बर्तन का ही उपयोग करें। ऐसा इसिलए क्योंकि तांबा सूर्य का कारक है और सूर्यदेव और शनिदेव आपस में परम शत्रु हैं।
शनिदेव की पूजा के दौरान दिशा का भी खास ख्याल रखना चाहिए। आमतौर पर लोग पूर्व की ओर मुख करके पूजा करते हैं। लेकिन शनिदेव पश्चिम के स्वामी कहे जाते हैं। इसलिए इनकी पूजा करते वक्त साधक का मुंह पश्चिम की तरफ होना चाहिए।