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महाकुंभ ने दिया दुनिया का सबसे बड़ा बाजार

पैंतालिस दिन और हर रोज करोड़ों की भीड़ यानी करोड़ों ग्राहक। महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बन गया। प्रयागराज, काशी और अयोध्या की त्रिवेणी में अमृत वर्षा के साथ खूब धन वर्षा हुई। लाखों लोगों को रोजगार मिला और करोड़ों-अरबों का कारोबार हुआ। वरिष्ठ पत्रकार अवंतिका की रिपोर्ट।

श्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक आयोजन महाकुंभ ने व्यापार और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित किया है। टूर एंड ट्रैवल, होटल और होम स्टे करोबार, लाखों फुटकर दुकानें, टैक्सी, रेलवे और हवाई सेवा, खान-पान के रेस्टोरंट और भोजनालय, सबने लाखों-करोड़ों का कारोबार किया। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) की मानें तो इस बार के महाकुंभ ने तीन लाख करोड़ रुपये यानी 360 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का व्यापार किया, जिससे यह भारत के सबसे बड़े आर्थिक आयोजनों में से एक बन गया। सीएआईटी के महासचिव और सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि यह आयोजन आस्था और अर्थव्यवस्था के गहरे संबंध को दर्शाता है। ये शुरुआती आंकड़े हैं। कुल कारोबार का आकलन किया जा रहा है।

उधर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा कि महाकुंभ से राज्य की अर्थव्यवस्था को तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक की वृद्धि में मदद मिलेगी। सीएम योगी ने विधानसभा के बजट सत्र के दौरान कहा कि राज्य एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहा है। वैसे शुरू में अर्थशास्त्री इस बात को लेकर सशंकित थे कि सरकार ने करोड़ों रुपये इस आयोजन पर खर्च किए हैं और इससे लाखों करोड़ कमाने का जो सपना देख रही है, वो बिखर जायेगा। अर्थशास्त्र के प्रोफेसर सुनील कुमार सिन्हा, जो पहले फिच ग्रुप कंपनी के इंडिया रेटिंग्स में प्रधान अर्थशास्त्री रहे हैं, का कहना था कि ‘कुंभ में आने वाले अधिकांश श्रद्धालु समूहों में यात्रा करते हैं और समाज के निचले तबके से आते हैं तथा उनके पास स्वयं पर खर्च करने के लिए 58 डॉलर भी नहीं होते हैं।’

उनकी बात सच है कि अधिकांश श्रद्धालु निचले तबके के होते हैं लेकिन ये श्रद्धालु पॉप-अप इकोनॉमी को बूस्ट करते हैं। महाकुंभ जैसे मेले एक अस्थायी अर्थव्यवस्था के रूप में काम करते हैं, जिसे पॉप-अप इकोनॉमी कहते हैं। मेला क्षेत्र में सैकड़ों पॉप-अप दुकानें और अस्थायी व्यापारिक केन्द्र खोले जाते हैं, जो सभी प्रकार के सामान, खाद्य पदार्थ, धार्मिक सामग्री, स्वास्थ्य सेवाएं और पर्यटन संबंधित सेवाएं प्रदान करते हैं। यह छोटे व्यापारियों, होटल मालिकों, रेस्टोरेंट्स, ट्रांसपोर्ट कंपनियों और अन्य संबंधित व्यवसायों के लिए एक बड़ा अवसर होता है। महाकुंभ में भी इन 45 दिनों में हुआ व्यापार वर्षों के बराबर था।

बुनियादी ढांचे में 7500 करोड़ का निवेश
महाकुंभ को सफल बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रयागराज के सड़क, फ्लाईओवर और अंडरपास के निर्माण एवं सुधार पर 7500 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इस राशि में से 1500 करोड़ रुपये विशेष रूप से महाकुंभ की व्यवस्थाओं के लिए आवंटित किए गए थे। इससे न केवल प्रयागराज में, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी यातायात और नागरिक सुविधाओं में सुधार हुआ है। प्रयाग में आयोजित महाकुंभ ने वैश्विक पटल पर सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया और केवल देश ही नहीं, विदेशों से भी लोग बड़ी तादाद में आए। इस मेले का असर विभिन्न सेक्टरों पर पड़ा है और उनमें बूम देखने को मिला है। सबसे ज्यादा मुनाफा पर्यटन, होटल और आवास सेवाएं, खाद्य और पेय पदार्थ उद्योग, परिवहन और लॉजिस्टिक्स, पूजा सामग्री, धार्मिक वस्त्र और हस्तशिल्प, हेल्थकेयर और वेलनेस सेवाएं मीडिया, स्मार्ट टेक्नोलॉजी, सीसीटीवी, टेलीकॉम और मनोरंजन उद्योग सेक्टर में हुआ।

स्थानीय व्यापार को मिला प्रोत्साहन
कुंभ में स्थानीय व्यापार को बढ़ावा मिला, क्योंकि महाकुंभ थीम पर आधारित उत्पादों जैसे डायरी, कैलेंडर, जूट बैग और स्टेशनरी की मांग में भारी इज़ाफा हुआ है। बताया जा रहा है कि इसका श्रेय ब्रांडिंग को जाता है। मेला शुरू होने से पहले शुरुआती अनुमानों में 40 करोड़ लोगों के आने और करीब 2 लाख करोड़ रुपये के व्यापारिक लेन-देन का अनुमान लगाया गया था। लेकिन 26 फरवरी को कुंभ के समापन तक लगभग 60 करोड़ लोगों ने महाकुंभ में डुबकी लगाई और उनसे 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक के व्यापार होने की खबर है। कुंभ के कारण केवल प्रयागराज में ही नहीं, बल्कि 150 किमी के दायरे में स्थित शहरों और कस्बों में भी व्यापार में जबरदस्त बढ़ोत्तरी देखने को मिली। मेले में आये लोगों ने अयोध्या और काशी जाने का सुनहरा मौका नहीं गंवाया। इन श्रद्धालुओं के कारण वहां जाने वाली ट्रेनें, फ्लाइट सब पूरी तरह पैक रहीं।

हवाई किरायों ने भरी ऊंची उड़ान
महाकुंभ के लिए बहुत ज्यादा तादाद में लोगों के आने की वजह से प्रयागराज के लिए उड़ानों की बुकिंग और हवाई किराए में कई गुना वृद्धि देखने को मिली और इसने कई रिकार्ड भी तोड़े। कई महानगरों से प्रयागराज आने का हवाई टिकट पेरिस या लंदन के हवाई किराए से भी महंगा था। दिल्ली-प्रयागराज उड़ानों के लिए हवाई टिकट की कीमतों में 21 प्रतिशत तक बढ़त देखने को मिली। ट्रैवल पोर्टल इक्सिगो के विश्लेषण के अनुसार, भोपाल और प्रयागराज के बीच एकतरफा हवाई किराया पिछले साल के 2,977 रुपये से बढ़कर 17,796 रुपये था। वहीं नई दिल्ली और कोलकाता जैसे शहरों से प्रयागराज के लिए हवाई टिकट 20,000 से 35,000 रुपये ($230 से $405) तक रहे जो कि 7,000 रुपये ($81) के मानक किराये से कई गुना अधिक हैं। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस तरह का नवीनतम रिकॉर्ड 21 फरवरी को दर्ज किया गया था, जब एक ही दिन में 236 विमानों ने उड़ान भरी। इनके माध्यम से 24,512 यात्री हवाई अड्डे पर आए और गंतव्य को गए। उन्होंने कहा कि सामान्य दिनों में, हवाई अड्डे से लगभग 20 पूर्व निर्धारित उड़ानें होती हैं, जिनमें एक हजार से भी कम यात्री होते हैं।

तिलक लगाकर लाखों की कमाई
कुंभ में तिलक लगाने का बिजनेस भी जमकर चला। जहां इसमें लागत बहुत कम है वहीं मुनाफा अच्छा-खासा है। मेले में तिलक लगाने वाले एक शख्स किशना ने बताया कि एक इंसान को तिलक लगाने का उन्होंने 10 रुपए लिया। उन्होंने करीब 1 हजार लोगों को प्रतिदिन तिलक लगाया। इसी तरह 45 दिन में उनकी कमाई करीब 4.5 लाख रुपए के आसपास रही।

टूर, ट्रैवल और होटल इंडस्ट्री में आया बूम
महाकुंभ के सभी अमृत स्नान पूरे होने के बाद भी तीर्थराज प्रयाग में श्रद्धालुओं के आने के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। प्रयागराज के होटल्स, होम स्टे और मेला क्षेत्र में बने लग्जरी कॉटेज की 26 फरवरी और उसके बाद की तारीख के लिए भी प्री-बुकिंग देखने को मिली। एक अनुमान के अनुसार महाकुंभ के चलते करोड़ों की संख्या में आये इन तीर्थयात्रियों से प्रयागराज में होटल और रेस्टोरेंट इंडस्ट्री को 30 से 40% का बूस्ट मिला है। इसके साथ ही टूर और ट्रैवल एजेंसियों ने भी भारी मुनाफा कमाया।

श्रद्धालुओं की पहली पसंद बना होम स्टे
ज्यादातर श्रद्धालुओं ने प्रयागराज के अलावा अयोध्या और काशी को भी अपने पर्यटन प्लान में शामिल किया था। हर जगह लोगों को ठहरने के लिए जगह चाहिए थी। रामलला के दर्शन के लिए आने वाले लाखों श्रद्धालु की पहली पसंद होम स्टे बने। होटलों के बढ़े हुए किराए के चलते अधिकतर यात्रियों ने कम लागत में आरामदायक ठहराव हेतु होम स्टे बुक कराया था। फरवरी के अंत तक करीब 70 लाख श्रद्धालु अधिकृत ऐप के माध्यम से होम स्टे बुक करा चुका थे। गौरतलब है कि योगी सरकार ने अयोध्या मंदिर को ध्यान में रखते हुए वहां होम स्टे योजना शुरू की थी, जिससे न केवल दर्शनार्थियों को किफायती आवास मिले बल्कि स्थानीय लोगों को भी आर्थिक लाभ मिले और यह बजट फ्रेंडली होम स्टे महाकुंभ में भी यात्रियों की पहली पसंद बने। पहले महीने में संचालकों की आमदनी 30-35 हजार रुपये होती थी, लेकिन अब यह कई गुना बढ़ चुकी है। श्रद्धालु 1500 से 2500 रुपये में आसानी से होम स्टे प्राप्त कर सकते हैं।

पलट प्रवाह से काशी के कारोबारियों की हुई चांदी
महाकुंभ के पलट प्रवाह ने धर्मनगरी काशी में अर्थशास्त्र का नया अध्याय लिखा है। जहां पर्यटन कारोबार ने तो बम-बम किया ही वहीं अलग-अलग धंधा करने वाले कारोबारियों, यहां तक कि ठेले-खोमचे लगाने वालों से लेकर रिक्शा-ईरिक्शा चालक, साड़ी और हस्तशिल्प विके्रताओं और नाविकों की जेबें भी जमकर भरीं। एक महीने में ही करीब दो करोड़ लोगों के धार्मिक यात्रा पर आने और करीब सात हजार करोड़ से ज्यादा रुपये बनारसियों की झोली में आने का अनुमान है। काशी में भव्य और दिव्य विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद से दमकते बाबा दरबार में रोजाना आस्था का सागर उमड़ने से पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए थे। लेकिन प्रयागराज में महाकुंभ स्नान कर बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या ने नया रिकॉर्ड बनाया है। काशी विश्वनाथ मंदिर प्रबंधन के आंकड़ों के मुताबिक महाकुंभ के दौरान प्रतिदिन औसतन छह लाख श्रद्धालुओं ने बाबा का दर्शन किया।

तीर्थयात्रियों की उमड़ी भीड़ के चलते सराफा और दवा की थोक मंडियों में कारोबार भले ही ढीला रहा पर दो हजार छोटे-बड़े होटल, होम स्टे, पीजी और गेस्ट हाउस संचालकों को जबरदस्त फायदा हुआ है। सामान्य दिनों में दो हजार में मिलने वाले होटल के कमरे पांच से सात हजार में बुक हुए। ऑटो-ईरिक्शा वालों ने सौ की जगह छह सौ रुपये वसूला। नाविक भी पीछे नहीं रहे। नाव से गंगा आरती दिखाने के लिए प्रति तीर्थयात्री दो-दो हजार रुपये वसूले। रेस्टोरेंट, ट्रैवल एजेंसी, फेरी-पटरी व्यवसाई, माला-फूल और पूजन सामग्री बेचने वाले भी कमाकर ‘लाल’ हो गए हैं। बाबा विश्वनाथ और घाटों के फोटो फ्रेम, लकड़ी के खिलौने, गंगाजली लोटा, पीतल और तांबे बर्तन, गुलाबी मीनाकरी तथा अन्य हस्तशिल्प उत्पाद की अच्छी बिक्री हुई। पटरी व्यवसायियों की आय सामान्य दिनों में हजार से लेकर बारह सौ होती थी, वह इन दिनों तीन गुना से ज्यादा बढ़ गयी थी। वहीं बात करें आटा, सूजी, बेसन, मैदा, दाल, रिफाइंड तेल और घी की तो एक महीने में करीब दो हजार करोड़ का कारोबार हुआ। विश्वेश्वरगंज थोक मंडी में रोजाना 20 ट्रक आटा, आठ ट्रक चावल और इतनी ही दाल खप गयी।

दातुन बेचकर चमकाई किस्मत
आकाश कुमार यादव नाम का लड़का इन दिनों सोशल मीडिया पर छाया हुआ है। इसने कुंभ में दातुन बेचकर 4-5 दिन में 50 हजार रुपये कमाए। आकाश ने बताया कि उसकी प्रेमिका ने उसे आइडिया दिया कि वो कुंभ जाए और वहां पर दातुन बेचे। निवेश कुछ भी नहीं और कमाई ही कमाई। उसकी पॉप्युलेरिटी को देखकर एक रियल्टी शो में उसे मुंबई भी बुलाया गया।

जमकर भागा टैक्सी का मीटर
श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ का असर टूर एंड ट्रैवल इंडस्ट्री में भी देखने को मिला। हालात ये रहे कि लोगों को हायर टैरिफ देने के बाद भी आसानी से टैक्सी नहीं मिली। टैक्सी ड्राइवर लंबे रूट पर बुकिंग ले रहे थे। प्रयागराज से दिल्ली, कानपुर, नोएडा, लखनऊ, गोरखपुर, भोपाल आदि के लिए खूब बुकिंग हुई। इसमें कार से लेकर मिनी बसें तक शामिल हैं। प्राइवेट टैक्सी चलाने वाले नीलेश ने बताया कि कई बार उन्हें लोगों को मना करना पड़ा। इस इंडस्ट्री के अनआर्गेइज्ड होने के कारण कुल लाभ बता पाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन एक बात तो पक्की है कि फायदा बहुत हुआ है।

रेलवे की भी खूब कमाई

महाकुंभ के दौरान उत्तर मध्य रेलवे (एनसीआर) ने 11 जनवरी से 19 फरवरी तक टिकट बिक्री से ही 137 करोड़ रुपये की कमाई की है। मेला खत्म होने तक एनसीआर के चार स्टेशनों से आय का यह आंकड़ा 160 करोड़ पार कर गया। पूर्वोत्तर रेलवे ने झूंसी, रामबाग एवं उत्तर रेलवे ने प्रयाग एवं फाफामऊ जंक्शन के टिकट बिक्री के आंकड़े जारी नहीं किए हैं। इन चारों स्टेशनों से भी टिकट बिक्री से तकरीबन 100 करोड़ आय की उम्मीद है। मजे की बात है कि जितने टिकट बिके, उससे कहीं ज्यादा मुफ्त यात्रा करने वाले बताए जा रहे हैं।

भारतीय रेलवे ने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले में लाखों तीर्थयात्रियों को लाने-ले जाने में अहम भूमिका निभाई। देशभर से यहां आने वले लोगों की सुगम और आरामदायक यात्रा सुनिश्चित करने के लिए 14,000 से अधिक ट्रेनें चलाई गईं। लगभग 92 प्रतिशत ट्रेनें मेल, एक्सप्रेस, सुपरफास्ट, पैसेंजर और मेमू सेवाएं थीं, जिनमें 472 राजधानी और 282 वंदे भारत ट्रेनें भी चल रही थीं। इनमें से भी लगभग आधी ट्रेनें उत्तर प्रदेश से शुरू हुईं। कुल मिलाकर, अनुमान है कि डेढ़ महीने के दौरान 12 से 15 करोड़ श्रद्धालुओं ने ट्रेन से यात्रा की।

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