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सुप्रीम कोर्ट के संरक्षण के बाद भी महाराष्ट्र पुलिस ने की गिरफ्तारी

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण आदेश दिया था, इसके बावजूद उसे गिरफ्तार करके न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। महाराष्ट्र में लातूर का यह मामला जब सुप्रीम कोर्ट के सामने आया, तो जजों ने इसे आश्चर्यजनक और हैरतअंगेज करार दिया। उसे तत्काल रिहा करने के आदेश भी दिए गए हैं। न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की अवकाशकालीन पीठ के सामने यह मामला आया। कथित जालसाजी के एक मामले में पुलिस ने न केवल आरोपी के खिलाफ गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) हासिल किया, बल्कि बाद में उसे न्यायिक हिरासत में भी भेज दिया। वह भी तब जबकि शीर्ष अदालत ने पिछले साल 7 मई को उस व्यक्ति की एक याचिका पर नोटिस जारी किया था और कहा था कि इस बीच उसे लातूर में दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

न्यायालय ने निर्देश दिया कि यदि याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी किसी अन्य मामले में जरूरी नहीं है तो उसे आज ही रिहा किया जाए। इतना ही नहीं, इस आदेश पर अमल से संबंधित रिपोर्ट आज ही पेश की जाए। पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘…यह जानना दिलचस्प है कि इस अदालत के विशिष्ट अंतरिम आदेश के बावजूद कि अभियोजन ने याचिकाकर्ता के खिलाफ गैर-जमानती वारंट हासिल किया।

जब वह अदालत के सामने पेश हुआ तो प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 24 जून, 2022 को अपने आदेश में कहा कि गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण इस अदालत के आदेश से छह सप्ताह के बाद समाप्त हो गया।’ शीर्ष अदालत याचिकाकर्ता की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में उसने अपनी गिरफ्तारी का उल्लेख किया था और रिहाई के आदेश की अपील की थी।

पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि नोटिस का जवाब देने की जो तारीख सुप्रीम कोर्ट ने तय की थी, उसी को मानते हुए छह सप्ताह की अवधि निचली अदालत ने तय कर ली। न्यायालय ने कहा, ‘यदि मजिस्ट्रेट ने आदेश देते समय यही समझा है और यदि वह याचिकाकर्ता को न्यायिक हिरासत में लेने का एकमात्र कारण है, तो अभियोजन एजेंसी की प्रामाणिकता के साथ ही इस अदालत के आदेश को लेकर मजिस्ट्रेट की समझ चिंता का विषय है।’

पीठ ने मामले की सुनवाई के लिए 7 जुलाई की तारीख तय करते हुए कहा, ‘हालांकि, वर्तमान में हम इस मामले में कोई अन्य टिप्पणी नहीं कर रहे हैं और इस आवेदन पर जवाब दाखिल करने के लिए राज्य सरकार को कुछ समय देते हैं।’ पीठ ने यह भी कहा कि उसके (आज के) आदेश की जानकारी मेल के जरिए मजिस्ट्रेट को दी जाए और उसकी प्रति तत्काल उचित निर्देश के लिए राज्य सरकार के वकील को उपलब्ध कराई जाए।

न्यायालय ने मौखिक रूप से कहा, ‘यह आश्चर्यजनक और चौंकाने वाली सीमा से भी परे है, हमें अपने मजिस्ट्रेट को भी शिक्षित करना होगा।’ पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश वकील से कहा, ‘यह आपकी प्रामाणिकता पर भी सवाल उठाता है। आप गैर-जमानती वारंट कैसे प्राप्त कर सकते हैं?’ शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की हिरासत सीधे तौर पर शीर्ष अदालत के आदेश का उल्लंघन और अवज्ञा है।

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