छत्तीसगढ़राज्य

वनांचलों में बसे ग्रामीण आदिवासी जनजातियों के लिए महुवा वृक्ष बना रोजगार का साधन

दंतेवाड़ा : दंतेवाड़ा का नाम सुनकर लोगों के जहन में नक्सलवाद, आर्थिक सामाजिक, पिछड़ापन, घने जंगल दुर्गम पहाड़ी एवं नदी-नालों में बसे गांव आ जाते हैं। परंतु प्रकृति ने इन्ही घनी जंगलों की गोद में महुआ का पेड़ वरदान स्वरूप दिया है। महुआ विशेष रूप से जिले के ग्रामीण जीवन का सांस्कृतिक एवं आर्थिक आधार है। यह न केवल दैनिक जीवन में भोजन और पेय के लिए उपयोग किया जाता है, बल्कि इसे बेचकर आर्थिक आय भी प्राप्त किया जाता है। जंगलों से बीनकर घरों में रखा हुआ महुआ एक संपत्ति के समान होता है, जिसे कभी भी नगदी में बदला जा सकता है। वर्षों से ग्रामीण महुआ संग्रहित कर कम दामों में व्यापारियों को बेच देते है।

अब शासन की योजनाओं एवं जिला प्रशासन की पहल से जिले महिलाओं का जन-जीवन बदल रहा है। जिला प्रशासन के सहयोग एवं मार्गदर्शन में क्षेत्र की किशोरी एवं महिलाएं नए-नए सफल प्रयोग कर रोजगार सृजन करने का काम कर रहें है। ऐसा ही नया और बेहतर कार्य दंतेवाड़ा वन परिक्षेत्र केन्द्रीय काष्ठागार दंतेवाड़ा के प्रसंस्करण केन्द्र व प्रशिक्षण केन्द्र में महुआ के स्वादिष्ट- हलवा, चंक्स, जैम, जेली, कुकीज, बनाकर व्यापार कर रही है। वर्तमान में 30 महिलाएं कार्य कर रही हैं जिनके द्वारा व्यापार कर 1,35,000 रुपए का लाभ कमा चुकी है।

बाजार में झ्महुआझ् के हलवा, चंक्स, जैम, जेली, कुकीज के ज्यादा मांग एवं स्वास्थ्य वर्धक ( कैलोरी, प्रोटीन, फैट, शुगर, आयरन एव विटामिन सी ) होने के कारण जिला प्रशासन द्वारा डी0एम0एफ0 फण्ड से झ्महुआझ् से खाद्य पदार्थों के हेतु प्रसंस्करण केन्द्र व प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की गई है। इन इकाइयों के अधिक उत्पादन के लिए मशीनों की सुविधा दी गई है। वन विभाग के द्वारा इन महिलाओं को प्रशिक्षित कर महुआ को प्रसंस्करण कर इनके पाँच उत्पादों (हलवा, चंक्स, जेम, जेली एवं लड्डू, कुकीज) बना रहे है। वर्तमान में प्रतिदिन प्रति उत्पाद 20 कि0ग्रा0 हैं. इस तरह प्रतिदिन 100 किग्रा तक उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है। इन उत्पादों के पैकेजिंग मटेरियल प्रारंभिक स्तर देश के विभिन्न शहरों (मुंबई, हैदराबाद, रायपुर) से मंगाए जा रहे है।

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