अन्तर्राष्ट्रीयदस्तक-विशेष

भारत की अहमियत समझने को बाध्य है मालदीव

विवेक ओझा

मालदीव के राष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद मुइजू 6-10 अक्टूबर को भारत की राजकीय यात्रा पर रहे। राष्ट्रपति मुइजू की यह भारत की पहली द्विपक्षीय यात्रा थी। मालदीव और भारत के हालिया तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए यह एक बेहतर निर्णय है जिससे आपसी संबंधों में विश्वास और सहयोग की नई सिरे से शुरुआत हो। मालदीव के कई निर्णय ऐसे रहे हैं जो भारत के साथ उसके रक्षा, कूटनीतिक संबंधों, हिन्द महासागर की सुरक्षा, क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरणों को प्रभावित करते रहे हैं जिससे दोनों देशों के पर्यटन संबंधों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसके बाद खासकर मालदीव पर दबाव था कि वो भारत जैसे देश के साथ दुश्मनी मोल न ले। मुइजू के भारत विरोधी स्टैंड पर मालदीव की जनता तक ने असंतोष दिखाया। समझदार आवाम हमेशा जानती है कि इंडिया आउट जैसे कैंपेन मालदीव की अर्थव्यवस्था को ही गर्त में ले जायेंगे। मुइजु ने भी इंडिया आउट जैसे कैंपेन को अपने चुनाव जीतने का हथियार बनाया था, भारतीय कंपनियों, सैनिकों को देश से बाहर करने, हाइड्रोग्राफिक समझौतों को रद्द करने में रुचि दिखाई और चीन और टर्की जैसे देशों के साथ रक्षा संबंधों को बढ़ाना शुरू कर दिया था। चीन के द्वारा मालदीव को अपने यहां सैन्य प्रशिक्षण पसंद आया, चीन से हथियार खरीदने का पैक्ट भी उसे नागवार न गुजरा लेकिन कुछ ही समय में मालदीव की माली हालत पतली होने लगी क्योंकि उसे उस तरह का सतत और समावेशी तरीके का सहयोग समर्थन चीन या अन्य देशों से नहीं मिल पा रहा था जैसा भारत से निर्बाध रूप से मिलता था। कोई भी देश कितना भी वैचारिक स्तर पर तुष्टिकरण करने की आदत सीख ले, अच्छे और पुराने विश्वसनीय सहयोगियों को दरकिनार करने लगे, लेकिन जब क्रूर वास्तविकताएं सामने आती हैं तो सारी कट्टरता को एक साइड रखना पड़ता है।

मालदीव के मामले में भी यही है। भारत से एकतरफा दुश्मनी मोल लेने के बाद मालदीव ने भीषण जल संकट देखा, तिब्बत के पठार से 1500 टन पानी तक मंगाना पड़ गया था, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की मार पहले से ही झेलनी पड़ रही थी, पर्यटकों के स्तर पर भी आर्थिक क्षति पहुंची। ऐसे में मुईजू का यह सोचना स्वाभाविक ही है कि भारत के साथ रिश्तों को नए सिरे से परिभाषित किया जाए और इसी लिए पीएम मोदी के तीसरे कार्यकाल में शपथ ग्रहण समारोह में मुईजु ने भाग लिया और अब एक बार फिर से उन्होंने भारत की द्विपक्षीय यात्रा की है। इससे पहले वे जून 2024 में प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए भारत आए थे। विदेश मंत्री की हाल की मालदीव यात्रा के बाद राष्ट्रपति डॉ.मुइजू की भारत यात्रा इस बात का प्रमाण है कि भारत मालदीव के साथ अपने संबंधों को कितना महत्व देता है तथा इससे दोनों देशों के बीच सहयोग और मजबूत जन-जन संबंधों को और गति मिलने की उम्मीद है। मालदीव हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत का प्रमुख समुद्री पड़ोसी है और प्रधानमंत्री के ‘सागर’ (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) के दृष्टिकोण और भारत की ‘पड़ोसी पहले नीति’ में एक विशेष स्थान रखता है।

क्यों महत्वपूर्ण है मालदीव भारत के लिए
भारत और मालदीव के बीच नृजातीय, भाषाई, सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यावसायिक संबंध लंबे समय से विद्यमान रहे हैं। भारत के पश्चिमी तट से मालदीव की भौगोलिक नजदीकी ने दोनों देशों के संबंधों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह भारत के मिनिकॉय द्वीप से मात्र 70 नॉटिकल मील, और भारत के पश्चिमी तट से मात्र 300 नॉटिकल मील दूर हैं। भारत के कुछ द्वीप ऐसेहैं जिनकी मालदीव से दूरी मात्र 700 किलोमीटर है। उल्लेखनीय है कि मालदीव 1200 प्रवाल द्वीपों वाला 90 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला देश है जो विश्व के समुद्री जहाजों के लिए महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग है। भारत और चीन दोनों चाहते हैं कि उनकी नौसैनिक रणनीति के दायरे में यह इलाका रहे। मालदीव अपने अनन्य आर्थिक क्षेत्र के चलते भारत के लिए ब्लू इकॉनोमी के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार देश की भूमिका निभा सकता है। महासागरीय अर्थव्यवस्था और सुरक्षा की दृष्टि से मालदीव भारत के लिए सामरिक और आर्थिक महत्व रखता है।

मालदीव भौगोलिक रूप से विश्व के सबसे बिखरे देशों में से एक है। यह भू क्षेत्र और जनसंख्या की दृष्टि से एशिया का सबसे छोटा देश है। समुद्र तल से इस देश की ऊंचाई बहुत ही कम है। हिन्द महासागर में मालदीव की सामरिक स्थिति भारत के हितों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। हिन्द महासागर में मालदीव के क्षेत्र में स्थित अंतरराष्ट्रीय समुद्री जहाजी मार्ग मध्य पूर्व के तेल की आपूर्ति भारत जापान और चीन को करते हैं। मात्रात्मक दृष्टि से भारत का 97 प्रतिशत से अधिक और मूल्यात्मक दृष्टि से 75 प्रतिशत से अधिक अंतरराष्ट्रीय व्यापार हिन्द महासागर में बैठे मालदीव के अंतरराष्ट्रीय ट्रेड शिपिंग लेन्स के जरिए होता है। मालदीव भारत के लिए ब्लू इकोनॉमी अथवा सागरीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अंडमान निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप के तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए भी यह जरूरी है।

8 जून, 2019 को भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा सत्ता में आने के बाद पहली विदेश यात्रा के रूप में मालदीव को चुना गया। मालदीव की नवनिर्मित संसद मजलिस को पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा संबोधित किया गया। भारत ने कहा कि मालदीव के साथ उसका संबंध इतिहास से भी पुराना है। मालदीव ने 1970 के दशक में जिस भारत प्रथम की नीति अपनाई थी उसी नीति को ऊर्जा देने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री ने मालदीव के साथ दक्षिण एशिया में राज्य प्रायोजित आतंकवाद से निपटने के मिल जुल कर कार्य करने की बात की। इसके साथ ही भारत मालदीव के बीच हाइड्रोग्राफी, हेल्थ सेक्टर, समुद्री मार्ग से पैसेंजर और कार्गो सेवाएं, कस्टम्स के क्षेत्र में क्षमता निर्माण और सिविल सेवा प्रशिक्षण के क्षेत्र में सहयोग हेतु समझौता हुआ। दोनों देशों के बीच वाणिज्यिक और असैन्य जहाजों के आवाजाही के बारे में सूचना के आदान प्रदान के लिए व्हाइट शिपिंग इंफॉर्मेशन के विनिमय के लिए तकनीकी समझौता हुआ है। इस समझौते का महत्व भारत अमेरिका के सैन्य सूचना विनिमय हेतु हुए कामकेसा पैक्ट जैसा है।

अब्दुल्ला यामीन की राजनीति का प्रभाव
भारत मालदीव को अपने पड़ोसी प्रथम की नीति का महत्वपूर्ण अंग मानता है और उसने मालदीव के प्रति इस प्रकार का सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपना रखा है जिससे मालदीव इंडिया फस्र्ट पॉलिसी के तहत कार्य कर सके। चीन को हिन्द महासागर में प्रतिसंतुलित करने के लिए मालदीव के साथ ठोस गठजोड़ को भारत आवश्यक समझता है। 2018 में मालदीव के नए राष्ट्रपति की नियुक्ति के पूर्व मालदीव के विभिन्न राष्ट्रपतियों ने अपने विदेश संबंध में भारत की जगह चीन को प्राथमिकता दी। वर्ष 2017 में मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता सम्पन्न किया था। मालदीव दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के बाद दूसरा राष्ट्र है जिसने चीन के साथ ऐसा समझौता किया है। यहां यह विचारणीय है कि मालदीव को दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते के भाग होने के नाते दक्षिण एशिया में अपनी आर्थिक नीतियों के प्रभाव के बारे में सोचना वांछनीय था लेकिन चीन से अधिक से अधिक ऋण प्राप्ति की आशा में अब्दुल्ला यामीन के समय में चीन के पक्ष में एक के बाद एक कई निर्णय लिए गए। सितंबर, 2014 में चीन उन्मुख अब्दुल्ला यामीन के नेतृत्व में मालदीव ने चीन के वन बेल्ट वन रोड पहल पर हस्ताक्षर किया था। इस समय मालदीव चीन के कूटनीतिक संबंधों को मजबूती दी गई। मालदीव ने चीन के समुद्री रेशम मार्ग परियोजना का भी समर्थन किया। उसे चीन की मोतियों की लड़ी की नीति का अंग पहले से ही माना जा रहा था। इसी क्रम में यामीन सरकार ने चीन की कंपनियों को मालदीव में निवेश करने हेतु समझौते किए।

मालदीव की जरूरतों को समझता है भारत
भारत ने सदैव अपने पड़ोसी देशों से बेहतर आर्थिक संबंध बनाने के लिए अनुकूल वातावरण विकसित करने का प्रयास किया है। भारत ने मालदीव जैसे पड़ोसी देशों को व्यापारिक सुविधाएं देने और उनके आर्थिक लाभ के पक्ष में भी काम किया है। चूंकि मालदीव अपने आर्थिक सं वृद्धि के लिए पर्यटन उद्योग पर बड़े पैमाने पर आश्रित है। कोविड महामारी से बचाने के लिए कोविशील्ड वैक्सीन देने की बात हो या ऑपरेशन नीर चलाकर जल संकट से बाहर निकालने की बात हो भारत ने हमेशा अपना पड़ोसी धर्म निभाया है। लाइन ऑफ क्रेडिट, ऋण सुविधा, करेंसी स्वैप, रूपे कार्ड के स्तर पर सहयोग की बात हो, भारत अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नही हटता। अब जरूरत इस बात की है कि मालदीव भी इस तरीके के अशर्त सहयोग को समझे और मिल-जुलकर दक्षिण एशिया और हिन्द महासागर की सुरक्षा में अपना योगदान करे।

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