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ममता बनर्जी ने मोदी से बंगाली को शास्त्रीय भाषा सूची में शामिल करने का किया आग्रह

नई दिल्ली (विवेक ओझा): एक राष्ट्रीय भाषा और पश्चिम बंगाल की आधिकारिक राज्य भाषा होने के अलावा, बंगाली राष्ट्रीय स्तर पर दूसरी और विश्व स्तर पर 7वीं सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इस बात को आधार बनाकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर बंगाली भाषा को शास्त्रीय भाषा ( Classical language) घोषित कराने का आग्रह किया है। इसके साथ ही उन्होंने दक्षिण 24 परगना जिले के सागर द्वीप समूह में गंगासागर मेले ( Gangasagar mela) को राष्ट्रीय मेला घोषित करने में प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप का अनुरोध किया है। ममता बनर्जी ने कहा है कि गंगासागर मेले के आयोजन में भारी खर्च होता है और वर्तमान में इसे केंद्र सरकार से किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता के बिना पूरी तरह से राज्य सरकार के खजाने से वित्त पोषित किया जाता है। इसलिए अब केंद्र सरकार की सहायता देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी कार्यवाही करें।

ममता बनर्जी का मानना है कि बंगाली भाषा उन सभी मानदंडों को पूरा करती है जिसके आधार पर किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का मानना है कि बंगाली शास्त्रीय भाषा के रूप में वर्गीकृत होने के सभी चार मानदंडों को भी पूरा करती है। ममता बनर्जी द्वारा मोदी को लिखे गए पत्र में यह कहा गया है कि पत्र में कहा गया है, पुरातात्विक खोजों से प्राप्त साक्ष्य, शिलालेख, प्राचीन संस्कृत और पाली ग्रंथों के संदर्भ और सातवीं शताब्दी से पहले के बंगाली साहित्य का एक बड़ा हिस्सा इसकी शास्त्रीय विरासत को रेखांकित करता है। बंगाली की शास्त्रीय स्थिति का मामला इसके समृद्ध ऐतिहासिक विकास द्वारा समर्थित है जिसमें मौखिक और लिखित दोनों परंपराएं शामिल हैं।

भारत में कितनी शास्त्रीय भाषाएं हैं :

भारत में शास्त्रीय भाषाएँ
वर्तमान में छ: भाषाओं को वर्ष 2004- 2014 तक शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया जो इस प्रकार हैं-

तमिल (2004)
संस्कृत (2005)
कन्नड़ (2008)
तेलुगू (2008)
मलयालम (2013)
ओडिया (2014)

शास्त्रीय भाषा के वर्गीकरण का आधार:

फरवरी 2014 में संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) द्वारा किसी भाषा को ‘शास्त्रीय’ घोषित करने के लिये निम्नलिखित दिशा निर्देश जारी किये-

इसके प्रारंभिक ग्रंथों का इतिहास 1500-2000 वर्ष से अधिक पुराना हो।

प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक हिस्सा हो जिसे बोलने वाले लोगों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता हो।

साहित्यिक परंपरा में मौलिकता हो।
शास्त्रीय भाषा और साहित्य, आधुनिक भाषा और साहित्य से भिन्न हैं इसलिये इसके बाद के रूपों के बीच असमानता भी हो सकती है।

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