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जन मन की बात: पतंजलि की कोरोना पर बनी दवा पर रोक

उमेश यादव

सस्ती लोकप्रियता का प्री प्लान या लाइसेंस के लिये अधूरा ज्ञान!

जब कभी कोई बड़े बैनर की फ़िल्म बनती है तो कई बार बैक डोर से उस फिल्म की पटकथा या अन्य किसी बात को लेकर विवाद हो जाने का जिस प्रकार से चलन काफी अरसे से चल रहा है।उसके पीछे फ़िल्म प्रोडक्शन से जुड़े लोगों का मोटिव यही रहता है किस तरह सस्ती लोकप्रियता हासिल की जाए। अगर इससे कुछ लोग नाराज होंगे तो बड़ी संख्या में लोग फ़िल्म को देखकर अपना मौन समर्थन देंगे। अक्सर कई बड़ी फिल्मों में ऐसा देखने को मिला भी।

हालांकि फिल्म के प्रोडक्शन से जुड़े लोग इस बात को बार बार नकारते रहते जिससे उनकी छवि स्वच्छ बनी रहे। तमाम फिल्मों में विवादों के पीछे सस्ती लोकप्रियता के उपरोक्त कारण को इनकार नही किया जा सकता।

ठीक कुछ वैसे ही बाबा रामदेव जी की कोरोना पर बनी दवा में नजर आ रहा है।हो सकता है कि इसमें उपरोक्त जैसे करण न हो। फिर भी अगर ध्यान दे तो बाबा जी ने जैसे ही पतंजलि द्वारा कोरोना पर बनी दवा को लेकर प्रेस कांफ्रेंस की उसके कुछ घण्टों में ही दवा के प्रचार पर आयुष मंत्रालय ने रोक लगाई।

अब इस रोक का मीडिया में इतना प्रचार हुआ। घण्टों बहस चली उतना प्रचार तो बाबा जी की प्रेस कांफ्रेंस से नही हुआ होगा जब दवा लांच हुई थी। और खास बात यह देखिए कि अगले दिन ही आयुष मंत्रालय द्वारा जारी एक पत्र को बाबा जी ने मीडिया में दिखा कर तमाम अटकलों पर विराम लगा दिया।

अब शुरू हुआ बाबा जी पक्ष में जनता का सोशल कैम्पेन जो लगातार जारी है।जनता की नजरों में बाबा जी दुनिया के सबसे बड़े हीरो बन गए।दुनिया में योग और आयुर्वेद की अलग पहचान दिलाने के कारण मैं भी बाबाजी का ह्रदय से आभार प्रकट करता हूँ।उनकी खोज को नमन करता हूं,भले ही बाबाजी ने इसे व्यापार बनाकर कितना भी पैसा क्यों न कमाया हो।

खैर आज नही तो कुछ दिनों में कागजी कार्यवाही पूरी होते ही दवा मार्केट में आ ही जाएगी। खास बात यह कि बाबा जी कोई अनाड़ी तो नहीं है और उनकी पतंजलि कंपनी के साइंटिस्ट और डॉक्टर जो कोरोना पर रिसर्च करके दवा बनाने का दावा कर सकते है वह भी इतना अज्ञानी तो नहीं होंगे कि लाइसेन्स के लिये जरूरी कागजी कार्यवाही की जानकारी से ही अज्ञान हो।

दवा के प्रचार पर रोक लगने के बाद बाबा जी ने खुद प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि उन्हें यह नही पता था कि आयुष मंत्रालय को भी जानाकरी देनी होती है।और राजस्थान के एक संस्थान से ट्रायल की बात बताते हुए अन्य तमाम जानकारी दी।ऐसी बातें शायद ही किसी की समझ में आये।शायद यह सब सस्ती लोकप्रियता के लिये एक प्री प्लान ही नजर आ रहा है।

पूरी दुनिया के बड़े बड़े चिकित्सक दवा नहीं खोज पा रहे है और तमाम वैज्ञानिकों का मानना है कि इस पर दवा बनाने में कॉफी समय लग सकता है ऐसे में यह दवा कितना कारगर होगी वक्त ही बता पायेगा। बात 500 रुपये में सस्ती दवा बन जाने की नहीं है। बात आमजनमानस में विश्वास की है। बीमारी के नाम पर तमाम कंपनियों द्वारा प्रलोभन भरे विज्ञापनों से जिस तरह आम जनता को लूटा जाता है वैसा इसमें भी देखने को न मिले।

जब कोरोना पर कोई विशेष दवा नही बनी है।उन्ही पुरानी दवाओं से ही करीब 96-97 प्रतिशत से अधिक लोग ठीक हो जा रहे है। तो ऐसे में 500 वाली दवा एक माह तक खाने के बाद उतने प्रतिशत रिजल्ट की बात सामने न आये तो यह पैसा भी बेस्ट ही जाएगा। 135 करोड़ आबादी वाले देश में ही केवल 500 रुपयों का गणित लगा तो तो कंपनी कितना पैसा कमा लेगी। विदेश से जो इनकम होगी उसकी तो कल्पना ही नहीं।

जय हिंद

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