उत्तर प्रदेशराज्यलखनऊ

मायावती की महारैली और बहुजन चेतना का पुनर्जागरण

लखनऊ : राजधानी में रामाबाई मैदान गुरुवार सुबह से ही नीले झंडों और पोस्टरों की रंगत में रंगा हुआ था। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती की महारैली के लिए तैयार होने वाला यह स्थल पूरे प्रदेश की राजनीतिक चेतना का केंद्र बन गया था। या यूं कहे इस महारैली ने पूरी राजधानी का राजनीतिक परिदृश्य बदल दिया। नीले झंडों और पोस्टरों से सजा मैदान न केवल पार्टी के पुराने समर्थकों को आकर्षित कर रहा था, बल्कि युवा कार्यकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं में भी उत्साह और जोश का संचार कर रहा था। 15 लाख से अधिक की भीड़ ने इस बात का सबूत दिया कि नीला सैलाब सिर्फ एक प्रतीकात्मक प्रदर्शन नहीं, बल्कि बहुजन समाज की सक्रिय राजनीतिक चेतना का प्रतिफल है। इस अवसर पर उपस्थित लोगों की भीड़ ने यह संदेश दिया कि बहुजन समाज पार्टी अब केवल स्मृति दिवस और सम्मान समारोह तक सीमित नहीं है, बल्कि सत्ता की वापसी की तैयारी में सक्रिय है। इस मौके पर सीनियर रिपोर्टर सुरेश गांधी ने पार्टी के वरिष्ठ नेता महेंद्र पांडेय से रैली और आगामी चुनाव की रणनीति पर विस्तृत बातचीत की। पांडेय ने कहा कि यह रैली सिर्फ स्मृति दिवस का आयोजन नहीं, बल्कि बहुजन समाज का पुनर्जागरण है। साथ ही पांडेय ने रैली और पार्टी की आगामी रणनीति को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें साझा कीं, प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश।

प्रश्न : रैली से क्या संदेश मिला व आज की रैली को आप कैसे देखते हैं?
महेंद्र पांडेय : सुरेश जी, आज की रैली केवल एक राजनीतिक सभा नहीं थी। यह बहुजन समाज की नई चेतना का उद्घोष है। मायावती जी ने स्पष्ट कर दिया कि 2027 का विधानसभा चुनाव बसपा अकेले लड़ेगी। इसका मतलब है कि अब कोई गठबंधन या समझौता नहीं, बल्कि स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बहुजन राजनीति। रामाबाई मैदान में जो भीड़ उमड़ी, वह यह दर्शाती है कि जनता अब फिर से बसपा के साथ खड़ी है। यह हमारे लिए ऊर्जा और प्रेरणा का स्त्रोत है। पांडेय ने जोर देते हुए कहा कि रैली का सिंबलिक महत्व भी बहुत बड़ा है। कांशीराम की याद और उनकी विरासत को जीवित रखने का संदेश इस रैली ने पूरे प्रदेश में फैलाया है। यह केवल राजनीतिक बयानबाजी नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन का पुनर्जागरण है। रैली में शामिल हर वर्ग के लोग,युवा, महिला, वरिष्ठ और विभिन्न पेशेवर, इस आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए उत्साहित थे।

प्रश्न : विपक्षी दलों पर निशाना और योगी सरकार की सराहना, इसे आप किस रूप में समझते हैं?
महेंद्र पांडेय :
मायावती जी ने जो संतुलित दृष्टिकोण अपनाया, वह उनकी राजनीतिक परिपक्वता दिखाता है। उन्होंने योगी सरकार द्वारा कांशीराम स्मारक के मरम्मत कार्य की सराहना की, जो यह दिखाता है कि हम केवल विरोध नहीं करते, बल्कि जनता के हित में सकारात्मक कार्यों की मान्यता भी देते हैं। वहीं, सपा और कांग्रेस पर तीखा हमला दलित और पिछड़े समाज के उत्पीड़न की याद दिलाने के लिए था। सत्ता में रहते हुए सपा ने कांशीराम और महापुरुषों की विरासत की अनदेखी की और आज जब वे विपक्ष में हैं, तब ही उन्हें पीडीए याद आ रहा है। वहीं कांग्रेस पर आरोप लगाया गया कि मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू नहीं करना और बाबा साहब को भारत रत्न न देना यह साबित करता है कि कांग्रेस ने दलित हितों की अनदेखी की। बीजेपी पर पांडेय ने कहा कि आरक्षण बिल को संसद में लटकाना और केवल घोषणाओं तक सीमित रहना यह दिखाता है कि दलित और पिछड़े वर्ग को वास्तविक लाभ नहीं पहुंच रहा। यह साफ संदेश है कि बसपा ही समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों की सच्ची प्रतिनिधि पार्टी है।

प्रश्न : मायावती जी ने ‘सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय’ का फॉर्मूला दोहराया, इसका क्या असर हो सकता है?
महेंद्र पांडेय :
यह फॉर्मूला 2007 में जब बसपा ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी, तब भी प्रभावी रहा। मायावती जी की यह नीति केवल दलितों तक सीमित नहीं, बल्कि सभी जातियों और वर्गों के लिए समान अवसर और सम्मान सुनिश्चित करती है। यही वजह है कि जनता का विश्वास अब भी बरकरार है। 2027 में बसपा को इस मॉडल के जरिए पूरे प्रदेश में जनसमर्थन मिलने की पूरी संभावना है। यह संदेश साफ है, सत्ता का उद्देश्य केवल सत्ता नहीं, बल्कि समाज परिवर्तन है।

प्रश्न : 2027 की तैयारी और कार्यकर्ताओं की भूमिका क्या होगी?
महेंद्र पांडेय :
मायावती जी ने कार्यकर्ताओं से स्पष्ट कहा कि चुनाव की तैयारी छोटे-छोटे संवादों और ग्राम स्तरीय बैठकों के जरिए होगी। यह पुराना लेकिन अत्यंत प्रभावी तरीका है। बसपा का संगठन मजबूत है और हम इसे हर गांव और मोहल्ले तक पहुंचाएंगे। इसका उद्देश्य सिर्फ चुनाव जीतना नहीं, बल्कि कांशीराम और बाबा साहब के सपनों को जीवित करना है। कार्यकर्ता अब पूरी निष्ठा और ऊर्जा के साथ जनता को बसपा की नीतियों और उपलब्धियों से अवगत कराएंगे। पार्टी संगठन प्रदेश के हर गांव और मोहल्ले में सक्रिय रूप से कार्य करेगा। यह रणनीति हमें सिर्फ चुनावी सफलता ही नहीं, बल्कि बहुजन समाज की एकजुटता भी सुनिश्चित करेगी। इसके अलावा मायावती जी ने पार्टी संगठन को मजबूत करने के लिए आकाश आनंद को बड़ी जिम्मेदारी दी, जो स्वागत योग्य कदम है। आकाश आनंद जैसे कर्मठ नेता के आने से पार्टी की संगठनात्मक क्षमता और सक्रियता दोनों बढ़ेंगी। इससे कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार होगा और 2027 की तैयारी और मजबूत होगी।

प्रश्न : क्या यह रैली बसपा के लिए निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है?
महेंद्र पांडेय :
सुरेश जी, यह सिर्फ रैली नहीं, बहुजन चेतना का पुनर्जागरण है। मायावती जी की स्पष्ट रणनीति, संगठनात्मक अनुशासन और वैचारिक दृढ़ता इसे निर्णायक मोड़ बना सकती है। यदि दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग पुनः बसपा के साथ जुड़ते हैं, तो 2027 का चुनाव केवल यूपी की सत्ता के लिए नहीं, बल्कि समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों के लिए सम्मान और न्याय की लड़ाई के रूप में भी याद किया जाएगा।

प्रश्न : सियासी समीकरण और संभावनाएं क्या है?
महेंद्र पांडेय :
उनका मानना है कि आज की रैली और मायावती का भाषण बसपा को राजनीतिक मोर्चे पर निर्णायक स्थिति दे सकते हैं। यदि दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग फिर से बसपा के साथ खड़ा होता है, तो 2027 का चुनाव केवल यूपी की सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों के लिए सम्मान और न्याय की लड़ाई बन जाएगा। नीले झंडे के तहत बहुजन चेतना फिर से प्रदेश में अपनी शक्ति का एहसास कराएगी। इसके केंद्र में है मायावती का संकल्प और कार्यकर्ताओं की प्रतिबद्धता।

आज की रैली और महेंद्र पांडेय की प्रतिक्रिया दोनों स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि बसपा फिर से सक्रिय राजनीति में लौट आई है। मायावती ने स्पष्ट कर दिया कि अब वह “गठबंधन नहीं, अपने दम पर बहुजन सत्ता” की ओर बढ़ रही हैं। यह रैली और उसके प्रभाव आने वाले महीनों में उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण को बदल सकते हैं। नीले झंडे के तहत बहुजन चेतना फिर से प्रदेश में अपनी शक्ति का एहसास कराएगी, और इसके केंद्र में है मायावती का संकल्प और कार्यकर्ताओं की प्रतिबद्धता। भाषण में सपा और कांग्रेस पर तीखा प्रहार, योगी सरकार की सीमित सराहना, और 2007 के अनुभव को दोहराने की रणनीति, यह सब सुरुचिपूर्ण सियासी संतुलन को दर्शाता है। मायावती की यह रणनीति केवल चुनावी नहीं, बल्कि वैचारिक और सामाजिक पुनर्निर्माण पर आधारित है। आने वाले महीनों में इसका असर उत्तर प्रदेश की राजनीति में स्पष्ट रूप से दिखाई देगा।

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